अगर हम देश की वर्तमान राजनीति की बात निष्पक्ष सोच के साथ करें तो इससे साफ नजर आता है कोई अपना अहम जिन्दा रखना चाहता है तो कोई अपनी स्वार्थी महत्त्वाकांक्षा। अगर कोई लोकतंत्र की बात करे तो एक आम जन यही कहेगा वो तो कब का मर चुका है, बस हमें तो ऐसा नजर आ रहा है कि एक राजा के कई पुत्र होने के कारण वे सत्ता के लिए उत्तराधिकार का युद्ध में विजय प्राप्त करना चाहते हैं। आम जन तो केवल पहले कि तरह मूक-बधिर सी नजर आती है और मीडिया अब बस पूर्व काल के पुरोहित की तरह नजर आता है। वह कहीं अपना दायित्व निभाता नजर आता है तो कहीं दायित्वों से दूर भागता नजर आता है।
वर्तमान राजनीतिक दलों में जिस प्रकार का वाक् युद्ध चल रहा उससे तो भारतीय राजनीति का नैतिक पतन साफ नजर आ रहा है।
अब आप ही बताइए क्या जनता को पता नहीं कि कौन ईमानदार है और कौन बेइमान। बस एक अंधी दौड़ है जिसमें स्वार्थी लोग अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूरा कर रहे हैं।
अगर ये पार्टियां स्वार्थी नहीं है तो फिर क्यों नहीं उन लोगों को पार्टी से दूर कर देती जिन पर अदालतों में केस चल रहे हैं। वे चुनाव लड़ते हैं और यहां तक कि मंत्री तक बन जाते हैं। इसके कई उदाहरणों से आप परिचित हैं। हमारे पूर्व रेलमंत्री जी आज हवालात में है जबकि अपराध, मंत्री बनने से पहले के थे, पर स्वार्थ के चलते उन पर अरोप सिद्ध होने तक मंत्री बन चुके थे। अब क्या सजा मिले तो कोई फर्क नहीं।
वर्तमान में गठबंधन सरकारों में भी ऐसा देखने को मिल रहा है, जब कभी नई सरकार बनती है तो मीडिया में खबरें जोरों पर होती है कि सरकार में इतने फीसदी मंत्री व विधायक आपराधिक प्रवृति में लीन। जिन पर रेप, मर्डर और सांप्रदायिक हिंसा जैसे गंभीर मामले चल रहे हैं।
आजादी के बाद कोई भी पार्टी देश में अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सकी क्यों?
शायद पार्टी के निजी स्वार्थ के चलते योग्य उम्मीदवार अपना दावा प्रस्तुत नहीं कर सके या फिर पार्टी के नियम-कायदे कमजोर होने पर आपराधिक प्रवृति वाले लोगों के भय से पार्टी कमान उन्हें मौका देने को मजबूर है। कई पार्टियां तो वंश परम्परा को पूर्ण रूप से बढ़ावा दे रही है, ऐसे में कई अनुभव और योग्य नेता वंशवाद के भेंट चढ़ जाते हैं।
भारतीय राजनीति में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। जिसके लिए हमें उदाहरण देने की जरूरत नहीं, क्योंकि खुद पार्टियां ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं।
हाल ही मोदी सरकार के खिलाफ अनेक राजनीतिक पार्टियां अपने हित साधने के लिए एकजुट हो रही हैं। यह आयोजन देश की राजधानी दिल्ली में हो रहा है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी मेगा रैली का आयोजन कर रही है। इसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री प्रमुख वक्ता हैं।
खास बात यही कि इस महा रैली के आयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल हैं जो आज उस पार्टी के साथ नजर आ रहे हैं जब उन्होंने अन्ना हजारे के साथ लोकायुक्त के गठन के लिए अनशन किया था। यानि जिस पार्टी की सरकार थी तब विरोध और अब उसी के संग गठबंधन।
लोकतंत्र की रक्षा के खातिर या भाजपा के खातिर है यह रैली
भाजपा के खिलाफ विपक्ष की महारैली से ठीक पहले दिल्ली में यूथ ऑफ डेमोक्रेसी नाम की ओर से लगाए गए पोस्टर्स में लिखा है, ‘दीदी यहां खुलकर मुस्कुराइए, आप लोकतंत्र में हैं।’
वहीं एक अन्य पोस्टर पर लिखा है, ‘दीदी यहां आपको लोगों को संबोधित करने से कोई नहीं रोकेगा।’ यह बताने की जरूरत नहीं है कि ममता बनर्जी के लिए लगाए गए ये पोस्टर किस ओर इशारा कर रहे हैं।
वैसे तो कोई भी राजनीतिक पार्टी कम नहीं है जो दूसरी पार्टी वर्चस्व तोड़ने में, क्योंकि पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी के रोड शो और रैलियों को रोकने की हर संभव कोशिश कर रही हैं। वह कभी अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टरों को रैली स्थल पर लैंडिंग की इजाजत नहीं देतीं, तो कभी रोड शो पर ही प्रतिबंध लगा देती हैं। ऐसे में भाजपा का कहना है कि पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र नहीं बचा है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री की लखनऊ यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जिसके बाद भाजपा को विरोध का सामना करना पड़ा।
इस महा रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के साथ आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू प्रमुख वक्ता होंगे। यह अलग बात है कि रैली के बाबत आप ने उन सभी विपक्षी नेताओं को निमंत्रण भेजा है, जो पिछले महीने तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष बनर्जी की ओर से आयोजित की गई भाजपा विरोधी रैली में शिरकत करने आए थे। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में बहुत कम समय बचा है, ऐसे में यह रैली राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन के सहयोगियों को चुनौती देने के लिए एक महागठबंधन बनाने के लिए विपक्षी नेताओं को साथ लाएगी।
महागठबंधन से तो ऐसा लगता है जैसे हर किसी पार्टी को खुश करने के लिए अब बड़ी पार्टियों की नीति बन गई है। ताकि खुद सुरक्षित रह सकें, लोकतंत्र तो एक बहाना है। आज का आम जन यही सोचता होगा कि किस पार्टी को सही माने और किसे गलत, कहीं लोकतंत्र के नाम पर यह छलावा तो नहीं। यह तो आने वाला वक्त ही बता पाएगा।
खैर, देश की सत्ता कोई भी संभाले, आम जन की जरूर सुनें उस राजा की तरह जो अपनी प्रजा का दुख जानने के लिए खुद ही बिना अधिकारियों को बताए हाल जानने कहीं भी चला जाता था। तभी सरकार का वास्तविक प्रयोजन सिद्ध हो सकता है नहीं तो झूठा दिखावा करने से कोई फायदा नहीं।
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