रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को पिछले 7 महीने के अंदर आज एक और बड़ा झटका लगा है। दिसंबर में आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के निजी कारणों से जाने के बाद आज बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पद से इस्तीफा दिया है। आचार्य ने 23 जनवरी 2017 को 3 साल के लिए डिप्टी गवर्नर पद पर ज्वाइन किया।
यह दूसरे किसी बड़े अधिकारी का इस्तीफा है जिसने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद छोड़ दिया हो। डॉ. विरल आचार्य के जाने से संभवत: विदेशी विश्वविद्यालयों में इंडियन पॉलिसी और आर्थिक नीतियां बनाने वाले भारतीय अधिकारियों की संख्या में इजाफा होगा। अटकलें लगाई जा रही हैं कि रोड्स स्कॉलर संजीव सान्याल, वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार, आचार्य की जगह ले सकते हैं।
आचार्य, पूर्व गर्वनर डॉ. रघुराम राजन और उर्जित पटेल के रास्ते पर चलने वाले अधिकारी रहे हैं। दोनों ने बैंकिंग प्रणाली को साफ करने, इनफ्लेशन को रोकने के लिए नए आइडिया को पेश करने और केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के बाद पद छोड़ा है।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे विरल डिप्टी गवर्नर बनने वाले सबसे कम उम्र के अधिकारी थे। जब आरबीआई और सरकार फंड के नाम पर राज्य सराकरों को कोस रही थी तब आचार्य केंद्रीय बैंक की भूमिका का बचाव करने वालों में से थे।
आचार्य ने पिछले अक्टूबर में कहा, “एक सरकार का फैसले लेने का समय बहुत कम होता है, जैसे कि टी-20 मैच। हमेशा किसी न किसी प्रकार के आगामी चुनाव होते रहते हैं – राष्ट्रीय, राज्य, मध्यावधि आदि। इसके विपरीत, एक केंद्रीय बैंक एक टेस्ट मैच की तरह खेलता है, उसे हर पारी जीतनी है, लेकिन महत्वपूर्ण रूप से यह ध्यान रखना है कि वह जीवित रहे ताकि अगली पारी खेल सकें” ।
असंगठित क्षेत्र को बढ़ते देख आचार्य का मानना था कि, “कमजोर सरकारी संस्थानों के सामने किसी भी तरह की एजेंसियां स्थापित करना जो केंद्रीय बैंक के दायरे से बाहर अपना लेनदेन करती हैं, इससे केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता कमजोर होती है।”
पटेल के जाने के बाद, आचार्य ही शायद एक ऐसी आवाज थी जिसके कारण राज्य के कई कमजोर बैंक फिर से कर्ज देना शुरू कर सकते थे। कुछ रिपोर्ट के मुताबिक विरल आचार्य अब न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के सेटर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर पद पर ज्वाइन करेंगे।
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