व्यक्तित्व

आज जिस हिन्दी को आप जानते हैं उसमें इस हस्ती का बहुत बड़ा योगदान है

हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का देहांत आज ही के दिन सन् 1938 में हुआ था। आज जिस हिन्दी को आप जानते हैं, समझते हैं, पढ़ते हैं उसमें इस हस्ती का बहुत बड़ा योगदान रहा।

इन्होंने ही आधुनिक हिंदी को एक नया रास्ता दिया। इन्हीं के योगदान की वजह से साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ (1900–1920) के नाम से जाना जाता है।

mahaveer dwivedi

17 वर्षों तक उन्होंने सरस्वती पत्रिका का संपादन किया। आपको बता दें कि उन्होंने सरस्वती पत्रिका में जाने के लिए रेलवे की नौकरी छोड़ दी थी। हिन्दी नवजागरण में उनकी भूमिका को आज भी याद किया जाता है।

हिन्दी ही थी जिससे स्वतंत्रता के लिए लोगों को जोड़ा जा सकता था और स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई राह द्विवेदी जी ने ही दी। देशहित में काम करने के उनके जज्बे को एक घटना से समझा जा सकता है। जब वे रेलवे में काम कर रहे थे तब उन्हें 200 रूपए महीने सैलरी मिलती थी। फिर सरस्वती पत्रिका में काम करने के लिए उन्हें 20 रूपए ही महीने मिला करते थे। साहित्य के लिए उनके त्याग को इसी से समझा जा सकता है।

ये सच है, जो लोग हिन्दी बोलते हैं, समझते हैं उन सभी को आचार्य महावीर द्विवेदी के बारे में जरूर पता होना चाहिए। इतिहास नहीं बल्कि आज जो हम हैं जिस साहित्य को लोग पढ़ते हैं उस आधुनिक हिन्दी साहित्य के वो जनक थे। फिर भी बहुत कम लोग उन्हें जानते हैं उनके योगदान को समझते हैं।

हिन्दी के पहले लेखक ही महावीर द्विवेदी थे। अगर बात उनके द्वारा लिखे गए साहित्य की करें तो जातीय परंपरा का गहन अध्ययन किया और इस परंपरा को आलोचनात्मक दृष्टि से भी देखा। उनके संग्रह में कविता, कहानी, आलोचना, कटाक्ष, अनुवाद आदि हर तरह के साहित्य शामिल रहे।

महावीर द्विवेदी ने हमेशा यही चाहा कि वे अपने साहित्य से स्वतंत्रता आंदोलन को तेज कर सकें, लोगों तक पहुंच सके। ऐसे तो उन्होंने हर तरह के साहित्य को पढ़ा, समझा, अनुवाद किया परंतु उनके साहित्य में हमेशा एक तरह की वैज्ञानिक दृष्टि देखने को मिलती थी।

Mahaveer-Prasad-Dwivedi

उनके द्वारा संस्कृत के कई महान उपन्यासों का आधुनिक हिन्दी में अनुवाद किया। कालिदास कृत रघुवंश, कुमारसंभव, मेघदूत, किरातार्जुनीयप्रमुख आदि का अनुवाद भी उनके द्वारा किया गया।

अब उनके द्वारा कृत्यों की बात की जाए तो शायद हम और आप लिखते और पढ़ते थक भी जाएं। हर क्षेत्र में उनके लेखन को सराहा जाता है। भाषा को सरल करने में भी उनका बड़ा योगदान रहा। उनके साहित्य में ना तो संस्कृत के कठिन शब्द हैं और ना ही उर्दू के अप्रचलित अल्फ़ाजों का इस्तेमाल हुआ। द्विवेदी ने खड़ी बोली को कविताओं में जगह दी। हिन्दी की आधुनिकता और सरलता के लिए आचार्य महावीर द्विवेदी जी को हमेशा याद किया जाएगा।

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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