अंग्रेज शासन ने भारतीय जनता को किसी भी रूप में आगे ना बढ़ने देने के लिए कई काम किया थे। यही कारण थे कि हमारे नेता उनकी उन नीतियों का हमेशा विरोध करते थे जो भारतीय जनता को दबाने के लिए बनाई जाती थी। आजादी की लड़ाई के समय एक तरफ जहां गरम दल वाले नेता हिंसात्मक रूप से अंग्रेजी शासन का विरोध कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ गांधी विचारधारा वाले अहिंसात्मक तरीका अपना रहे थे। अहिंसा की एक ऐसी ही घटना है जो आज भी याद की जाती है।
हम बात कर रहे हैं नमक आंदोलन की, जिसे नमक मार्च या दांडी मार्च भी कहा जाता है। आज ही के दिन यानी 12 मार्च 1930 को गांधीजी के नेतृत्व में दांडी मार्च की शुरुआत हुई थी। नमक कानून को तोड़ने के लिए गांधीजी ने यह रास्ता अपनाया था, यह उस दौर की बात थी जब भारत में आज़ादी के लिए लड़ाई चल रही थी।
12 मार्च को गांधीजी ने साबरमती आश्रम, अहमदाबाद से सत्याग्रह की शुरुआत की क्योंकि वे नमक पर लगने वाले टैक्स को हटवाना चाहते थे। इसके तहत समुद्र के किनारे बसे एक गांव दांडी तक 24 दिन की लंबी यात्रा की गई। यहां पहुंचकर गांधीजी के नेतृत्व में हजारों लोगों ने अंग्रेजों ने नमक कानून को तोड़ा। यह एक अहिंसात्मक आंदोलन और पद यात्रा थी। यही कारण है कि देश के आजादी के इतिहास में दांडी यात्रा को विशेष महत्व दिया जाता है।
गौरतलब है कि उस दौरान देश पर अंग्रेजों का राज था और किसी भी भारतीय के नमक इकट्ठा करने या बेचने पर रोक थी। यही नहीं भारतीयों को नमक अंग्रेजों से ही खरीदना पड़ता था। नमक बनाने के मामले में अंग्रेजों की मोनोपॉली चलती थी और वह नमक पर भारी टैक्स भी वसूलते थे। नमक सत्याग्रह अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ एक बड़ी रैली थी।
दांडी मार्च में गांधीजी ने दांडी में समुद्र किनारे पहुंचकर गैर-कानूनी तरीके से नमक बनाया और अंग्रेजों का नमक कानून तोड़ा। आगे चलकर यह एक बड़ा नमक सत्याग्रह बन गया और हजारों लोगों ने न सिर्फ नमक बनाया, बल्कि अंग्रेजी कानून तो धता बताते हुए गैर-कानूनी नमक खरीदा भी।
आपको बता दें कि इस नमक सत्याग्रह की शुरुआत करीब 80 लोगों के साथ हुई थी। लेकिन गांधीजी का विचार लोगों को काफी पसंद आया और जैसे-जैसे यह यात्रा अहमदाबाद से दांडी की तरफ बढ़ी, वैसे-वैसे इस 390 किमी लंबी यात्रा में लोग जुड़ते चले गए। दांड़ी पहुंचने तक इस अहिंसक नमक सत्याग्रह में 50 हजार से ज्यादा लोग जुड़ चुके थे।
अपनी तरह के इस अनोखे विरोध से पूरा अंग्रेजी प्रशासन हिल गया था। इस सत्याग्रह की पूरी दुनिया में चर्चा होने लगी थी। माना जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाने में इस सत्याग्रह का अहम योगदान है।
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