तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने तिब्बत संकट के बीच एक नया बयान दिया है। उनके इस बयान पर चीन ने ऐतराज जताया है। दरअसल, लंबे समय से भारत में रह रहे बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने अपने ताज़ा बयान में कहा है कि अगला दलाई लामा कोई भारतीय हो सकता है। इस बात से चीन बुरी तरह चीड़ गया है। भड़के चीन का कहना है कि नए दलाई लामा के लिए उनकी सरकार से मान्यता लेनी ही होगी। इस पूरे मामले के बाद एक बार फिर से यह चर्चा शुरू हो गई है कि मौजूदा दलाई लामा के बाद तिब्बत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए आंदोलन को कौन आगे बढ़ाएगा। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि दलाई लामा क्या होता है और इसके बनने की प्रक्रिया पूरी कैसे होती है..
तिब्बती बौद्ध मान्यताओं के अनुसार लामा ‘गुरु’ शब्द का मूल रूप ही है। एक ऐसा गुरु जो श्रेष्ठतम है और सभी का मार्गदर्शन करता है। तिब्बती भाषा में ‘लामा’ को ‘ब्ला-मा’ कहा जाता है, इसका मतलब होता है श्रेष्ठतम व्यक्ति। बौद्ध भिक्षुओं में दलाई लामा का पद सबसे बड़े गुरु का होता है। तिब्बती संस्कृति के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि यह नाम केवल एक ही व्यक्ति को मिल सकता है। परंतु अब बदलते समय के साथ यह शब्द लामा साधना में विभिन्न उपलब्धियां हासिल कर चुके बौद्ध भिक्षुओं को भी प्रदान किया जाता है, लेकिन उनका पद फिर भी ‘दलाई लामा’ से नीचे ही आंका जाता है। दलाई लामा कब और कैसे चुना जाएगा, इन नियमों का पालन आज तक भी किया जाता है। तिब्बत में ‘लामा साधना’ काफी प्रसिद्ध है।
तिब्बती मान्यताओं के अनुसार, लामा गुरु अपने जीवनकाल की समाप्ति से पहले कुछ ऐसे संकेत देकर जाते हैं जिनसे अगले लामा गुरु की खोज की जाती है। दलाई लामा के कहे या लिखे गए शब्दों को समझते हुए उस नवजात की खोज की जाती है जिसे अगला लामा गुरु बनाया जाएगा। अगले गुरु की खोज की शुरुआत लामा के निधन के तुरंत बाद हो जाती है। ख़ासतौर पर उन बच्चों की खोज़ की जाती है जिनका जन्म लामा के देहावासन के आसपास हुआ होता है। कई बार यह खोज कई दिनों में खत्म नहीं होकर सालों तक भी चलती रहती है।
इस दौरान किसी स्थाई विद्वान के हाथों में दलाई लामा गुरु का काम संभालने का ज़िम्मा होता है। मौजूदा लामा द्वारा अपने देहांत से पहले बताए गए लक्षण एक से ज्यादा बच्चों में भी दिख सकते हैं। ऐसे मामलों में सही समय पर उनकी कठिन शारीरिक और मानसिक परीक्षाएं ली जाती हैं। इसमें पूर्व लामा की व्यक्तिगत वस्तुओं की पहचान आदि शामिल होती है।
तिब्बत पर अपना हक जमाने वाला पड़ोसी मुल्क चीन पिछले लंबे समय से पुरानी किसी भी परम्परा को मानने से इनकार करता रहा है। वहीं मौजूदा 14वें लामा गुरु भी यह बात कह चुके हैं कि वह अपना उत्तराधिकारी अपने जीवनकाल में चुन सकते हैं या धर्मगुरुओं को यह काम सौंपा जा सकता है। अगर इस बार ऐसा होता है तो यह तिब्बत की परम्पराओं से अलग होगा। बौद्ध धर्म के मानने वालों के मुताबिक़, वर्तमान दलाई लामा पहले के दलाई लामाओं के ही अवतार माने जाते हैं, यानी कि वर्तमान लामा गुरु का ही पुनर्जन्म हुआ है। अगर चीन की अकड़ को देखते हुए पहले से चली आ रहीं बौद्ध परम्पराओं को एक तरफ़ कर दिया जाए तो फिलहाल यह साफ नहीं हो सका है कि अगले दलाई लामा को कैसे चुना जाएगा।
तिब्बत पर चीन के कब्ज़ा जमाने और विवाद की शुरुआत 1951 से होती है। इस दौरान पहले से आज़ाद मुल्क तिब्बत पर चीन ने हजारों सैनिकों की टीमों को भेजकर कब्ज़ा कर लिया था। चीन के तिब्बत पर कब्ज़े के बाद तेनजिन ग्यात्सो को 14वें दलाई लामा के तौर पर पद पर बैठाया गया। दलाई लामा को अगले गुरु के तौर पर 1937 में ही चुन लिया गया था। दरअसल, लामा चुने जाने की एक पूरी प्रक्रिया होती है। अगले लामा को खोजने में महीनों से सालों तक का वक्त लग सकता है। वर्तमान में 14वें लामा गुरु के रूप में तेनजिन ग्यात्सो तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरु हैं। वर्तमान लामा लंबे समय से निरन्तर बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे हैं।
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गौरतलब है कि मौजूदा दलाई लामा पिछले 60 वर्षों से भारत में रहकर शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। वे चीन से बचकर 1959 में हजारों बौद्धों के साथ भारत आए। 31 मार्च, 1959 को बड़े नाटकीय ढंग से जब वे मैकमोहन रेखा पार कर हिंदुस्तान में दाख़िल हुए थे तो उन्होंने सपने में भी सोचा नहीं होगा कि वे अब कभी तिब्बत वापस नहीं जा पाएंगे। लामा का 14 दिनों का तिब्बत से तवांग तक का उनका सफ़र किसी चमत्कार से कम नहीं था। करीब एक साल पहले ख़बर आई थी कि चीनी सरकार 60 बौद्धों को ट्रेनिंग देकर तिब्बत में दलाई लामा के प्रभाव को कम करने का प्रयास कर रही है। पिछले दस सालों से चीन बौद्धों की अपना धार्मिक गुरु चुनने के प्रक्रिया पर नकेल कस रहा है। चीन चाहता है कि यह दलाई लामा का अधिकार भी उसके पास रहे।
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