सन 1983 के क्रिकेट विश्व कप की जीत को भला कौन भारतीय भूला सकता है, पर इस जीत में हम एक ऐसे खिलाड़ी को भूल रहे हैं, जिसने भारत को मैच के शुरूआत में विकेट दिलाकर जीत की नींव रखी। वह खिलाड़ी था मध्यम गति का तेज गेंदबाज बलविंदर सिंह संधू, जिनसे आज भी बहुत कम लोग परिचित है।
सन 1983 के विश्व कप में वेस्टइंडीज के विरुद्ध फाइनल मैच का हर वह क्षण क्रिकेट प्रेमी को अच्छी तरह याद होगा कि किस तरह घातक गेंदबाजी के दम पर भारतीय टीम ने ट्रॉफी जीती थी। इन यादगार क्षणों में कृष्णामाचारी श्रीकांत के 38 (मैच में सर्वाधिक) रन, मिड ऑन से मिड विकेट की ओर भागते हुए कपिल देव द्वारा विवियन रिचर्ड्स के कैच लपकने और मोहिंदर अमरनाथ की जादुई गेंदबाजी द्वारा 12 रन देकर 3 विकेट लेना आदि। परंतु किसी को याद नहीं है तो वह है मुंबई के गेंदबाज संधू का प्रदर्शन, जिसे न के बराबर याद रखा जाता है।
वैसे तो बलविंदर सिंह संधू का क्रिकेट कॅरियर बहुत ही छोटा रहा, लेकिन भारतीय क्रिकेट में 1983 के विश्व कप की जीत में उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता है। संधू ने अपनी सटीक गेंदबाजी से अपने कप्तान को कभी निराश नहीं किया और जब—जब उन्हें गेंद थमाई तब—तब शुरूआती विकेट भी दिलवाए।
जब 1983 के विश्व कप में भारतीय बल्लेबाज 183 रनों के छोटे स्कोर पर पवैलियन लौट गये, तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारत मैच जीतेगा, क्योंकि उनका सामना दुनिया की उस टीम से था जिसने इससे पहले के दोनों विश्व कप जीते थे और हैट्रिक बनाने के लिए मैदान में थी।
भारत ने भी जीत के लिए पुरजोर लगाया। भारतीय टीम को पहली बड़ी सफलता प्रतिद्वंद्वी टीम के धुरंधर सलामी बल्लेबाज गॉर्डन ग्रीनिज के रूप में मिली, जिसे संधू ने 1 रन पर चलता किया। यह वह सफलता थी जिसे भारतीय टीम को जरूरत थी और जिसे संधू ने पूरा किया।
यह विश्व कप में पहला मौका नहीं था, जब संधू के इन-स्विंगर से ग्रीनिज पहली बार आउट हुआ हो। संधू ने उन्हें दूसरी बार विश्व कप में अपनी धारदार गेंदबाजी के चंगुल में फंसाया। दोनों ही बार संधू ने उन्हें क्लीन बोल्ड किया और फाइनल में लगे इस शुरूआती झटके से वेस्टइंडीज मैच के आखिर तक संभल नहीं पाया और भारत गौरवशाली विजेता बना। कपिल देव भी संधू से यही उम्मीद करते थे। उन्होंने संधू से कहा था, ‘आप सिर्फ ब्रेकथ्रू दिलाओ..आगे हम देख लेंगे।’
हालांकि इस विश्व कप टूर्नामेंट के दौरान संधू ने 8 मैच खेले और वह सिर्फ 8 विकेट ही ले पाया। लेकिन अचरज की बात यह है कि उन्होंने भारतीय टीम को जिस मैच में शुरूआती विकेट दिलाया, वह मैच भारत अवश्य जीता। ऐसा भारत की रणनीति में भी शामिल था कि संधू प्रारंभिक सफलता दिलाने के लिए खेलें।
अगर 1983 के विश्व कप पर नजर डाले, तो भारत को ब्रेकथ्रू दिलाने में संधू को महारत हासिल थी। उन्होंने चार बार टीम को ब्रेकथ्रू दिलवाये और चारों ही बार भारत जीता।
विश्व कप में लीग मैचों के दौरान वेस्टइंडीज के खिलाफ गेंदबाजी करते हुए गॉर्डन ग्रीनिज को संधू ने 24 रन पर बोल्ड कर दिया और भारत को पहली सफलता दिलाई। इसके बाद इंडीज टीम 263 रनों का पीछा करते हुए 228 रनों पर ही सिमट गई। भारत ने वह मैच 34 रनों से जीत लिया।
जिम्बाब्वे के खिलाफ
जिम्बाब्वे के विरुद्ध भारतीय टीम को पहली सफलता संधू ने उमर शाह (8 रन) को कैच करवा कर दिलवाई थी। उनका पहला विकेट 13 के स्कोर पर गिरा। जिम्बाब्वे की पूरी टीम 155 रनों पर सिमट गई। भारत ने वह मैच 5 विकेट से जीता था।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ
भारत द्वारा 248 रनों का लक्ष्य दिए जाने पर पीछा करने उतरी ऑस्ट्रेलिया टीम को पहला झटका भी तेज गेंदबाज संधू ने ट्रेवर चैपल को 2 रन पर बोल्ड करके दिया। पहला विकेट 3 रन के स्कोर पर गिरा। इसके बाद कंगारू टीम 129 रनों पर सिमट गई। भारत ने यह मैच 118 रनों से जीत लिया।
वेस्टइंडीज के खिलाफ फाइनल मैच में एक बार फिर संधू ने गॉर्डन ग्रीनिज को 1 रन पर बोल्ड किया।
इस प्रकार संधू ने अपनी टीम की जीत के लिए शुरूआती सफलता दिलवाई, जिसके बाद अन्य गेंदबाजों ने लक्ष्य तक पहुंचाया और भारत को पहली बार विश्व कप का खिताब जीताने का गौरव दिलाया।
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