लोकसभा चुनावों में 100 दिनों से भी कम समय अब रह गया है। कांग्रेस पार्टी ने एक ऐसा चुनावी वादा किया है जिस पर विश्लेषण करना जरूरी हो जाता है। 28 जनवरी को, पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता में अगर आती है तो देश के हर गरीब के लिए न्यूनतम आय की गारंटी सुनिश्चित करेगी।
चुनाव से पहले पार्टियों के वादे पहले भी देखने को मिले हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी 15 लाख सबके अकाउंट में लाने का वादा किया था और इस अंतरिम बजट में भी मिडल क्लास लोगों के लिए एक वादा किया जा रहा है। खैर यहां हम बात मिनिमम इनकम गारंटी की करेंगे।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इस स्कीम को समझाते हुए कहा है कि न्यूनतम आय गारंटी युनिवर्सल बेसिक इनकम जैसा ही फोर्मुला है।
कांग्रेस की मानें तो सत्ता में आने के बाद वे गरीबों को डायरेक्ट पैसे देगी। कांग्रेस जो संकेत कर रही है इससे पता चलता है कि यह बुनियादी आय योजना या गरीबों को सीधे नकद पैसे देना है। इस प्रकार राशि का वितरण जरूरतमंदों तक किया जाएगा।
यह विचार 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले की तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा और बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम द्वारा वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण में सुझाया गया था।
इन दो योजनाओं के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि कांग्रेस ‘यूनिवर्सल’ आय का वादा नहीं कर रही है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जोर देकर कहा कि उनकी योजना ‘यूनिवर्सल’ नहीं है और केवल देश में गरीबों लोगों को इसका फायदा दिया जाएगा।
इसके अलावा इसमें एक बड़ा अंतर यह भी है कि गरीबों को कितना पैसा इसमें दिया जाएगा? सुब्रमण्यम ने जो स्कीम ubi का सुझाव दिया था उसमें सभी को एक ही जितने पैसे मिलते। लेकिन कांग्रेस जिसकी बात कर रही है उसमें ऐसा नहीं होगा।
चिदंबरम ने हालांकि कहा कि उनकी योजना का फोकस प्रगतिशील होगा जिसका अर्थ है कि सभी गरीब परिवारों को एक ही राशि प्रदान करने के बजाय योजना का ध्यान यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक परिवार को एक ही स्तर पर लाया जाए। इसके लिए मापदंड तैयार किए जाएंगे कि किस परिवार को कितना पैसा मिलेगा।
अभी तक कांग्रेस द्वारा इसको लेकर किसी भी तरह की घोषणा नहीं की गई है कि कितने पैसे इसमें दिए जाएंगे।
हालांकि सर्वे में सुब्रमण्यन ने तेंदुलकर समिति द्वारा परिभाषित गरीबी रेखा को ध्यान में रखा जो NSSO के 2011-12 के आंकड़ों पर आधारित है। समिति ने कहा था कि गरीबी रेखा से ऊपर होने के लिए, एक व्यक्ति को प्रति माह 893 रुपये कमाने की आवश्यकता है।
सुब्रमण्यन ने निष्कर्ष निकाला कि यदि यूबीआई को लागू किया जाता है तो गरीबी रेखा से ऊपर रखने के लिए प्रति वर्ष 5,400 रुपये का भुगतान करना होगा।
जैसा कि सर्वे 2012 के आंकड़ों पर आधारित था तो इस पर सुब्रमण्यन ने मुद्रास्फीति के इस आंकड़े को 2011-12 और 2016-17 के बीच समायोजित किया, जिससे प्रति वर्ष 7,620 रुपये का हिसाब निकलकर आता है।
इस पर कांग्रेस पार्टी द्वारा फिलहाल किसी भी तरह की जानकारी नहीं दी गई है। पार्टी का कहना है कि बाकी की डिटेल वे कांग्रेस पार्टी के मेनिफेस्टो में देंगे।
आर्थिक सर्वेक्षण में सुब्रमण्यन का तर्क है कि 75 प्रतिशत आबादी को कवर करने के लिए यह योजना देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत की खपत करेगी।
सुब्रमण्यन का तर्क है कि यह राशि मौजूदा सब्सिडी को समाप्त करके गरीब लोगों तक पहुंचाई जा सकती है। उनका यह भी सुझाव है कि ubi से मौजूदा सब्सिडी की जो गलतियां हैं वो भी इसमें दूर हो सकती हैं।
एक और सुझाव भी दिया गया जिसमें कहा गया है कि वर्तमान योजनाओं के अतिरिक्त यूबीआई प्रदान करने के बजाय मौजूदा कार्यक्रमों के लाभार्थियों को ubi एक विकल्प के रूप में दे दिया जाए। इसका सीधा मतलब यही है कि लाभार्थी मौजूदा एंटाइटेलमेंट के स्थान पर यूबीआई को चुन सकता है।
सुब्रमण्यन ने इसमें कई सब्सिडी शामिल की हैं जिन्हें वे ‘इंप्लिक्ट मिडिल क्लास सब्सिडिज़’ कहते हैं। जो कि जीडीपी के 1 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। सुब्रमण्यन ने निष्कर्ष निकाला कि इन ‘मध्यम वर्ग की सब्सिडी’ की मात्रा देश की सभी महिलाओं के लिए यूबीआई खर्च को कवर करने के लिए जरूरी राशि के बराबर है।
सर्वे में शीर्ष दस केंद्र प्रायोजित या केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं (सब्सिडी सहित) को सूचीबद्ध नहीं किया गया है जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.4 प्रतिशत है। फिर उर्वरक, खाद्य और पेट्रोलियम सब्सिडी हैं जो एक साथ जीडीपी के 2 प्रतिशत को कवर करते हैं।
इसके अलावा, आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 94-ऑड-ईवन योजनाएँ हैं जो सकल घरेलू उत्पाद की 2.3 प्रतिशत हैं।
सर्वे में पूर्व सीईए उन लोगों को बाहर करने के लिए एक मामला बनाता है जो वर्तमान में इन योजनाओं के ‘गैर-योग्य’ लाभार्थी हैं। उदाहरण के लिए ऑटोमोबाइल या एयर-कंडीशनर या बैंक बैलेंस जैसे प्रमुख परिसंपत्तियों के स्वामित्व के आधार पर एक गैर-योग्य मानदंड को परिभाषित किया जाए ताकि जिनको लाभ की जरूरत नहीं है उनकी सब्सिडी बंद की जा सके।
इसके लिए एक सिस्टम को प्लान करने की जरूरत है। जहाँ लाभार्थी नियमित रूप से अपने यूबीआई का लाभ उठाने के लिए खुद को सत्यापित करते हैं। इसमें तर्क दिया गया है कि इसमें होगा यह कि जो जरूरत मंद लोग होंगे वो तो हर बार वेरिफिकेशन के लिए आएंगे लेकिन जो अमीर है जिसको इसकी जरूरत नहीं है वो अपना टाइम शायद इस पूरे प्रोसेस में खर्च ना करे।
कांग्रेस द्वारा जो स्कीम प्रस्तावित की जा रही है अभी भी एक तरह से शुरूआती ढ़ांचा ही है जिसे कई तरह के जरूरी सवालों से गुजरने की जरूरत है।
उदाहरण के लिए लाभार्थी की पहचान कैसे की जाएगी, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। जबकि चिदंबरन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी योजना ‘युनिवर्सल’ नहीं होगी लेकिन लाभार्थियों को पहचानने के लिए एक मापदंड अभी तय किया जाना बाकी है।
यह सुनिश्चित करने के लिए योजना को अधिक सावधानी बरतनी होगी कि जो व्यक्ति मौजूदा योजनाओं में से एक या अधिक योजनाओं का लाभार्थी है उसे नए सिस्टम के तरह फिर से यह लाभ ना मिल जाए।
विवाद एक इस बात पर भी होगा कि नई योजना मौजूदा योजनाओं के समानांतर लागू होगी या नहीं। हालांक सभी मौजूदा योजनाओं को इसके साथ चालू रखना मुमकिन नहीं हो पाएगा। इस पर चिदंबरम ने कहा है कि अपने उद्देश्य को पूरा करने के मोटिव से वे कुछ स्कीम जैसे कि एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) को चालू रख सकते हैं।
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