Chandradhar Sharma Guleri became immortal in fiction by writing only three stories.
हिन्दी साहित्य में ‘उसने कहा था’ कहानी लिखकर सदा के लिए अमर हो गए चंद्रधर शर्मा गुलेरी की आज 12 सितंबर को 101वीं पुण्यतिथि है। उनके द्वारा लिखी गई तीन कहानियों ने कथा साहित्य को नई दिशा और आयाम दिया। चंद्रधर शर्मा गुलेरी उत्कृष्ट कोटि के निबंधकार, भाषाशास्त्री, प्रखर समालोचक, निर्भीक पत्रकार एवं कवि थे। इस अवसर पर जानते हैं उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
चंद्रधर शर्मा का जन्म 7 जुलाई, 1883 को पुरानी बस्ती जयपुर में हुआ था। उनके पूर्वज मूलतः हिमाचल प्रदेश के गुलेर गांव से ताल्लुक रखते हैं। पंडित शिवराम शास्त्री राजकीय सम्मान पाकर जयपुर में ही बस गए थे। इसलिए उनके नाम के अंत में ‘गुलेरी’ उपनाम लिखा जाता है। चंद्रधर के परिवार का प्रारंभ से ही धार्मिक माहौल था। अतः बचपन से ही संस्कृत भाषा, वेद, पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड इन सभी संस्कारों और विद्याओं में वह प्रवीण हो गया।
आगे चलकर उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा भी प्राप्त की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफ. ए. प्रथम श्रेणी में द्वितीय और प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक प्रथम श्रेणी में प्रथम से उत्तीर्ण की। वह आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश जारी न रख पाए, हालांकि उनके स्वाध्याय और लेखन का क्रम अबाध रूप से चलता रहा। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की वेधशाला के जीर्णोद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने ‘द जयपुर ऑब्ज़रवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स’ शीर्षक अंग्रेज़ी ग्रन्थ की रचना की।
पढ़ाई के दौरान ही चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने वर्ष 1900 में जयपुर में नागरी मंच की स्थापना में योगदान दिया और वर्ष 1902 से मासिक पत्र ‘समालोचक’ के सम्पादन का भार संभाला। कुछ वर्षों बाद उन्हें काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के सम्पादक मंडल में भी शामिल किया गया। उन्होंने देवी प्रसाद ऐतिहासिक पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया। नागरी प्रचारिणी पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया व नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी रहे।
जयपुर के राजपण्डित के परिवार में जन्मे गुलेरी का अनेक राजवंशों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। वे पहले खेतड़ी नरेश जयसिंह के और फिर जयपुर राज्य के सामन्त-पुत्रों के अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनके अभिभावक रहे। वर्ष 1916 में उन्होंने मेयो कॉलेज में ही संस्कृत विभाग के अध्यक्ष का पद संभाला। वर्ष 1920 में पं. मदन मोहन मालवीय के प्रबंध आग्रह के कारण उन्होंने बनारस आकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्या विभाग के प्राचार्य और फिर 1922 में प्राचीन इतिहास व धर्म से सम्बद्ध मनीन्द्र चन्द्र नन्दी पीठ के प्रोफेसर का कार्यभार भी ग्रहण किया।
आपको शायद ही पता हो लेकिन, चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी महज़ तीन कहानियां लिखकर हिन्दी कथा साहित्य के प्रखर कथाकारों में शामिल हो गए। उनकी कहानी ‘उसने कहा था’ तो आज भी पाठक के जेहन में रची बसी है। यह कहानी आज भी शिल्प, संवेदना और विषयवस्तु की दृष्टि से उतनी ही चर्चित, प्रासंगिक और प्रेरणास्पद है, जितनी उन दिनों में थी। लोकजीवन में यह कहानी इस तरह लोगों के दिलो-दिमाग में जगह कर गई है कि सामान्य नागरिक इसे लोककथा की तरह सुनाने लगे हैं। ऐसे महान कथाकार गुलेरी का 12 सितंबर, 1922 पीलिया से पीड़ित होने के बाद तेज ज्वर से मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में देहांत हो गया।
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