Central government is preparing to crack down on arbitrariness of the social media Platforms.
पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार फेसबुक और ट्विटर समेत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की मनमानी पर जल्द ही नकेल कसने की तैयारी में है। दरअसल, सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भारतीय संविधान के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए कानून बनाने में जुटी है। जानकारी के अनुसार, बजट सत्र के दूसरे चरण या मानसून सत्र में केंद्र सरकार इससे जुड़ा विधेयक ला सकती है। आपको बता दें कि विवादस्पद सामग्री को हटाने और सोशल मीडिया को संविधान के दायरे में लाने के लिए फिलहाल देश में कोई कानून नहीं है। भारत में सोशल मीडिया कंपनियां इसका लाभ उठा रही हैं।
जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार 8 मार्च से शुरू हो रहे बजट सत्र के दूसरे हिस्से में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से जुड़ा बिल पेश कर सकती है। अगर इसमें किसी कारणवश देरी हुई तो मानसून सत्र में बिल पेश किया जाएगा। इस बारे में चिंता का दूसरा कारण सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की बड़ी संख्या है। दुनियाभर में करीब तीन अरब लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। इनमें भारत में एफबी यूजर्स की संख्या 32 करोड़ के आस-पास है। अगर देश में सोशल मीडिया के सभी माध्यमों को जोड़ दें तो यह संख्या 50 करोड़ से ज्यादा हो जाती है। सबसे मुश्किल यह है कि इन प्लेटफार्म की निगरानी करने का न तो कोई कानूनी और न ही इनमें अपलोड की गई सामग्री की विश्वसनीयता को परखने वाला प्रभावी तंत्र ही है।
बता दें, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया के खतरे के प्रति आगाह किया है। सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सब कुछ लिखने कहने को जायज ठहरा दिया जाए? सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भी इस संबंध में कानून बनाने पर विमर्श जारी रहने की बात कही है। मालूम हो कि गूगल पर भी नकेल कसने के लिए दुनिया के कई देशों में पहल हो रही है। ऑस्ट्रेलिया गूगल पर मीडिया कंटेंट के इस्तेमाल मामले में भुगतान तय करने के लिए कानून बना रहा है।
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