केन्द्र सरकार ने बजट में की गई घोषणा के तहत किसानों और कृषि को आगे बढ़ाने के लिए आगामी पांच सालों में 5000 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की है। देश के किसानों को आर्थिक सहायता देकर उन्हें समृद्ध बनाने की योजना पर केंद्र सरकार कार्य कर रही है। जिसके तहत किसानों को एक कंपनी यानी किसान उत्पादक संगठन (FPO-Farmer Producer Organisation) बनाना होगा। बता दें कि आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएम किसान योजना के एक साल पूरे होने के अवसर पर चित्रकूट से देश भर में 10,000 किसान उत्पादक संगठन (FPO) बनाने की मंजूरी दे दी है। इसका शुभारंभ पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से कर दिया है।
इस योजना का रजिस्ट्रेशन कंपनी एक्ट में ही होगा, इसलिए इसमें वही सारे फायदे मिलेंगे जो एक कंपनी को मिलते हैं। यह संगठन कॉपरेटिव पॉलिटिक्स से बिल्कुल अलग होंगे यानी इन कंपनियों पर कॉपरेटिव एक्ट नहीं लागू होगा। इन ग्रुप को 15-15 लाख रुपये की आर्थिक सहायता मिलेगी।
किसान उत्पादक कंपनी एक ऐसा संगठन है यह किसानों का एक समूह होगा, जो कृषि उत्पादन कार्य में लगा होगा और कृषि से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियां चलाएगा। एक समूह बनाकर आप कंपनी एक्ट में रजिस्टर्ड करवा सकते हैं। ये जितनी कमाई करती है उसे सभी किसानों में बराबर बांट दिया जाता है। ये संगठन किसानों को सस्ता कर्ज, बेहतर उपकरण और कई अन्य सॉर्स के जरिए आय बढ़ाने में मदद करते है।
एफपीओ योजना में लघु व सीमांत किसानों का एक समूह होगा, इससे जुड़े किसानों को न केवल उनकी उपज को बाजार मिलेगा बल्कि उनके लिए खाद, बीज, दवाइयों और कृषि उपकरण आदि खरीदना आसान होगा। सेवाएं सस्ती मिलेंगी और बिचौलियों के मकड़जाल से मुक्ति मिलेगी।
अक्सर देखा जाता है कि किसान अपनी पैदावार बेचने बाजार जाते हैं तो उन्हें पूरे दाम नहीं मिल पाते हैं। उनका मुनाफा बिचौलियों में बंट जाता है। एफपीओ सिस्टम में किसान को उसके उत्पाद के भाव अच्छे मिलते हैं, क्योंकि यहां बिचौलिए नहीं होंगे। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक ये 10,000 नए एफपीओ 2019-20 से लेकर 2023-24 तक बनाए जाएंगे। इससे किसानों की सामूहिक शक्ति बढ़ेगी।
एफपीओ का गठन और बढ़ावा देने के लिए अभी लघु कृषक कृषि व्यापार संघ और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक काम कर रहे हैं। दोनों संस्थाओं के मिलाकर करीब पांच हजार एफपीओ रजिस्टर्ड हैं। मोदी सरकार इसे और बढ़ाना चाहती है। इसलिए राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) को भी इसकी जिम्मेदारी दे दी गई है।
अगर संगठन मैदानी क्षेत्र में काम कर रहा है तो कम से कम 300 किसान उससे जुड़े होने चाहिए। यानी एक बोर्ड मेंबर पर कम से कम 30 लोग सामान्य सदस्य हों। पहले 1000 था।
पहाड़ी क्षेत्र में एक कंपनी के साथ 100 किसानों का जुड़ना जरूरी है। उन्हें कंपनी का फायदा मिल रहा हो।
नाबार्ड कंस्ल्टेंसी सर्विसेज आपकी कंपनी का काम देखकर रेटिंग करेगी, उसके आधार पर ही ग्रांट मिलेगी।
बिजनेस प्लान देखा जाएगा कि कंपनी किस किसानों को फायदा दे पा रही है। वो किसानों के उत्पाद का मार्केट उपलब्ध करवा पा रही है या नहीं।
कंपनी का गवर्नेंस कैसा है। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर कागजी हैं या वो काम कर रहे हैं। वो किसानों की बाजार में पहुंच आसान बनाने के लिए काम कर रहा है या नहीं।
अगर कोई कंपनी अपने से जुड़े किसानों की जरूरत की चीजें जैसे बीज, खाद और दवाईयों आदि की कलेक्टिव खरीद कर रही है तो उसकी रेटिंग अच्छी हो सकती है। क्योंकि ऐसा करने पर किसान को सस्ता सामान मिलेगा।
एफपीओ से छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों को मदद मिलेगी। एफपीओ के सदस्य संगठन के तहत अपनी गतिविधियों का प्रबंधन कर सकेंगे, ताकि प्रौद्योगिकी, निवेश, वित्त और बाजार तक बेहतर पहुंच हो सके और उनकी आजीविका तेजी से बढ़ सके। छोटे और सीमांत किसानों की संख्या देश में लगभग 86 फीसद हैं, जिनके पास औसतन 1.1 हेक्टेयर से कम जोत है। इन छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों को खेती के समय भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें प्रौद्योगिकी, उच्चगुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और समुचित वित्त की समस्याएं शामिल हैं।
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