भारत में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामलों और वैक्सीन की बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने विदेशी वैक्सीन के लिए शर्तें हटा ली है। इससे आबादी के एक बड़े हिस्से को टीकाकरण के दायरे में लाने के लिए मदद मिलेगी। मोदी सरकार ने भारत में ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए यह फैसला लिया है। भारत में अब दूसरे देशों में आपातकालीन इस्तेमाल (ईयूए) की अनुमति प्राप्त कर चुकीं वैक्सीन भी प्रयोग में लाई जा सकती हैं। हालांकि, इन वैक्सीन का विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि WHO की सूची में शामिल होना आवश्यक है। साथ ही भारत में जिन 100 लोगों को सबसे पहले ये विदेशी वैक्सीन लगेगी, उन्हें कम से कम सात दिनों की निगरानी में रखा जाएगा। इसके बाद ही अन्य लोगों का टीकाकरण किया जा सकता है।
केंद्र सरकार के विदेशी कोरोना वैक्सीन से शर्तें हटाने के फैसले से सबसे बड़ी राहत अमेरिकी दवा कंपनी फाइज़र और मॉडर्ना को मिल सकती हैं। फाइज़र ने भारत में आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति पाने के लिए लंबे समय तक इंतजार किया था, लेकिन दो महीने पहले ही उसने अपना आवेदन वापस ले लिया था। जानकारी के अनुसार, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान सहित कई देशों में अलग-अलग फॉर्मा कंपनी की वैक्सीन आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति ले चुकी हैं। अभी तक नियम था कि इन कंपनियों को अगर भारत में भी अनुमति लेनी है तो पहले भारतीय अस्पतालों में आकर दूसरे और तीसरे चरण का परीक्षण करना होगा।
इसके परिणाम की समीक्षा करने के बाद विशेषज्ञ समिति (एसईसी) की सिफारिश के आधार पर ही आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी जा सकती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब अगर किसी विदेशी कंपनी ने अपनी कोरोना वैक्सीन का अमेरिका या अन्य किसी देश में परीक्षण किया है और उसे अलग-अलग देशों में आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है तो भारत में भी उसे मौका दिया जाएगा।
आपको बता दें कि भारत में पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड को तैयार कर रहा है, लेकिन यह वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिकी दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने तैयार की है। देश में इस वैक्सीन को अनुमति देने से पहले 1600 से अधिक लोगों पर परीक्षण किया गया था। इसी तरह रूस की कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक-वी वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है, लेकिन इससे पहले स्पूतनिक वैक्सीन का भारत में दूसरा और तीसरे चरण का परीक्षण हुआ था।
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