देश की सर्वोच्च अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण के एक मामले को लेकर बेहद अहम फैसला सुनाया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी अपहृत व्यक्ति के साथ अपहरणकर्ता ने मारपीट नहीं की, उसे जान से मारने की धमकी नहीं दी और उसके साथ अच्छा बर्ताव किया तो अपहरण करने वाले व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा किडनैप के एक केस में आरोपी ऑटो चालक को दोषी ठहराने का फैसला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। बता दें कि इस ऑटो चालक ने एक नाबालिग का अपहरण किया था और उसके पिता से दो लाख रुपये फिरौती के तौर पर मांगे थे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि धारा 364ए (अपहरण एवं फिरौती) के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा तीन बातों को साबित करना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि ये तीन बातें हैं- किसी व्यक्ति का अपहरण करना या उसे बंधक बनाकर रखना, अपहृत को जान से मारने की धमकी देना या मारपीट करना और अपहरणकर्ता द्वारा ऐसा कुछ करना जिससे ये आशंका होती हो कि सरकार, किसी अन्य देश, किसी सरकारी संगठन पर दबाव बनाने या किसी अन्य व्यक्ति पर फिरौती के लिए दबाव डालने के लिए पीड़ित को नुकसान पहुंचाया जा सकता है या मारा जा सकता है। कोर्ट ने धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा का जिक्र करते हुए कहा कि पहली स्थिति के अलावा दूसरी या तीसरी स्थिति भी साबित करनी होगी, अन्यथा इस धारा के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना निवासी शेख अहमद को धारा 364ए के तहत हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराने और भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास की सज़ा का फैसला रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि अपहरण का अपराध साबित हुआ है और अपीलकर्ता को धारा 363 (अपहरण का दंड) के तहत सजा दी जानी चाहिए, जिसमें सात साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को सात साल के कारावास और पांच हजार रूपये के जुर्माने की सजा दी जानी चाहिए।
तेलंगाना के रहने वाले ऑटो चालक शेख अहमद ने सेंट मैरी हाईस्कूल के छठी कक्षा के छात्र को उसके घर छोड़ने के बहाने अगवा कर लिया था। इसके बाद जब बच्चे का पिता फिरौती देने गया था, उसी समय पुलिस ने बच्चे को अपहरणकर्ता से छुड़ा लिया था। यह घटना साल 2011 की है और तब पीड़ित की उम्र 13 वर्ष थी। पीड़ित के पिता ने निचली अदालत को बताया था कि अपहरणकर्ता ने लड़के को कभी भी नुकसान पहुंचाने या जान से मारने जैसी कोई धमकी नहीं दी थी।
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