दिल की बीमारी के बाद कैंसर भारत में दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है जिसकी वजह से सबसे ज्यादा जानें जा रही हैं। 7 नवंबर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में कैंसर फिलहाल एक बड़ा संकट है। सबसे बड़ी समस्या बिना सुविधा के अस्पतालों, उपचार की ज्यादा लागत, इलाज में देरी और डॉक्टर-रोगी अनुपात पैदा कर रहे हैं।
हालांकि देश में कैंसर से हानि को कम करने के लिए भारत का सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल हरियाणा के झज्जर में आ रहा है जिसमें कैंसर रोगियों के लिए विशेष रूप से 700 से अधिक बेड होंगे।
2,035 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट दिसंबर 2020 तक पूरा होने वाला है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल्ली के एम्स की तरह इसमें ज्यादातर इलाज और प्रक्रियाएं मुफ्त होंगी।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2020 तक 17.3 लाख से अधिक कैंसर के मामले सामने होंगे और 25 वर्षों में मामलों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। बीमारी के कारण 8.8 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो सकती है। इसके शुरुआती स्टेज में केवल 12.5 प्रतिशत रोगियों को उपचार मिलता है।
1990 की तुलना में, कैंसर ने 2016 में इसके कारण मरने वाले लोगों की संख्या को दोगुना से अधिक कर दिया है। ICMR के कैंसर के अध्ययन में पाया गया है कि 1990 में 3.82 लाख लोगों की कैंसर से मृत्यु हो गई थी और 2016 में यह संख्या 53 फीसदी बढ़कर 8.13 लाख हो गई।
नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कैंसर के विशेषज्ञों की कमी के कारण संख्या में वृद्धि हो रही है। केवल 2,000 ऑन्कोलॉजिस्ट लगभग 10 मिलियन रोगियों की देखभाल कर रहे हैं। भारत कैंसर विशेषज्ञों की कमी का सामना कर रहा है।
यहां तक कि भारत में चिकित्सा विशेषज्ञों की कमी है। ऑन्कोलॉजिस्ट्स की संख्या में अंतर बहुत ज्यादा है है और भारत के हाथों में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है अगर यह हर लाख लोगों पर एक कैंसर विशेषज्ञ की जरूरत को समझता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक आकलन के अनुसार, भारत में कैंसर के मामले 2025 तक पांच गुना बढ़ जाएंगे जिसमें पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं जानलेवा बीमारी की चपेट में आएंगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्टडी में सामने आया कि पुरुष कैंसर के कुल रोगियों की संख्या 2020 में मौजूदा 5,22,164 से बढ़कर 6,22,203 हो जाएगी। महिला कैंसर रोगियों की संख्या वर्तमान 5,64,619 से 2020 तक 6,98,725 को छू लेगी।
यह प्रवृत्ति भारत के रोग प्रोफाइल में बदलाव के साथ है। रोगों के बारे में बात नहीं होने कारण अब देश में हर साल 60 प्रतिशत मौतों का अनुमान है।
2014 के अध्ययन के अनुसार, गरीब लोग 70 वर्ष की आयु से पहले ही बीमारी से मरने की अधिक संभावना रखते हैं।
एक अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय में लगभग 7 प्रतिशत घरेलू खर्च होता है। कैंसर के इलाज में ज्यादा खर्च होता है और साफ तौर पर गरीब परिवार इस खर्चे को अफोर्ड नहीं कर पाते।
भारत में पाए जाने वाले सबसे सामान्य प्रकार के कैंसर के मामलों में पेट का कैंसर (9 प्रतिशत), स्तन कैंसर (8.2 प्रतिशत), फेफड़े का कैंसर (7.5 प्रतिशत), होंठ और ओरल कैविटी कैंसर (7.2 प्रतिशत), ग्रसनी कैंसर के अलावा अन्य नासोफरीनक्स (6.8 फीसदी), कोलन और रेक्टम कैंसर (5.8 फीसदी), ल्यूकेमिया (5.2 फीसदी) और सर्वाइकल कैंसर (5.2 फीसदी) हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च के अनुसार, भारत में हर आठ मिनट में एक महिला की मृत्यु सर्वाइकल कैंसर से होती है। भारत में सबसे आम कैंसर में से स्तन कैंसर देश में होने वाली हर दो महिलाओं में से एक को मारता है।
दिलचस्प बात यह है कि वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के विश्लेषण से पता चला है कि भारत में कैंसर की घटनाओं की दर दुनिया में सबसे कम है। 2016 में प्रति 100,000 लोगों पर 106.6 नए कैंसर के मामलों में, भारत सबसे कम कैंसर की घटनाओं वाले देशों में दसवें स्थान पर है।
घटनाओं की कम दर के बावजूद कैंसर के मामलों के वास्तविक आंकड़े चिंता का कारण बने हुए हैं। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री के आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 में भारत में अनुमानित 39 लाख कैंसर के मामले दर्ज किए गए थे। घटनाओं की दर के मामले में शीर्ष तीन देश ऑस्ट्रेलिया (743.8), न्यूजीलैंड (542.8) और संयुक्त राज्य अमेरिका (532.9) थे।
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