सेहत

अगर अभी चेते नहीं तो 2050 तक समुद्र में मछलियां नहीं यह तत्व होगा ज्यादा, जानें क्या है यह

प्लास्टिक, पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है। कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है, पर कभी-कभी यही आविष्कार मानव व प्रकृति हित के लिए घातक सिद्ध हो जाता है। जिस प्लास्टिक ने कभी मानव के दैनिक उपभोग की वस्तुओं को लाने ले जाने में सुविधा दी, वही अब उससे कहीं अधिक मानव सेहत व पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।

पर्यावरण को लेकर आए दिन कोई न कोई शोध हमें सचेत करते हैं ऐसे में प्लास्टिक को लेकर अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन वर्ल्ड वाइड फंड द्वारा हाल में एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके मुताबिक 2030 तक प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग के कारण प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना हो जाएगा।

वैज्ञानिकों के अनुसार ‘समुद्र में 1950 से 2016 के मध्य के 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उससे कहीं अधिक केवल आने वाले एक दशक में जमा हो जाएगा। इससे समुद्रों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक विभिन्न माध्यमों से पहुंच सकता है। समुद्र में 2030 तक प्लास्टिक दहन पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन तिगुना हो जाएगा, जो हृदय संबंधी बीमारियों को तेजी से बढ़ाएगा।

वक्त रहते चेते नहीं तो जहरीली हो जाएगी हवा
प्रतिवर्ष विभिन्न माध्यमों से उत्पादित होने वाले प्लास्टिक का तीन प्रकार से निस्तारण किया जाता है। कुल प्लास्टिक का मात्र 20 फीसदी ही रिसाइकिल हो पाता है। बचे प्लास्टिक की 39 फीसदी जमीन के अंदर दबाकर नष्ट हो जाता है और 15 फीसदी को लोग जलाकर नष्ट कर देते हैं।

प्लास्टिक के जलने पर कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित होती है जिसकी मात्रा 2030 तक तिगुनी हो जाएगी, जिससे हृदय व श्वांस रोग के मामले में तेजी से वृद्धि होने की आशंका चिंता का सबब बनी हुई है।

यह भी पढ़े — बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण : व्हेल के पेट में से निकले 25 बैग, 4 बोतल और 2 चप्पलें

समुद्र में मछलियों से ज्यादा होगी प्लास्टिक की मात्रा
प्रतिवर्ष बढ़ते प्लास्टिक से लगभग 10.4 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा विभिन्न माध्यमों (नदियों द्वारा) से समुद्र में लाया जाता है। यदि इस प्रकार इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो 2050 तक समुद्र में मछली से ज्यादा प्लास्टिक कचरा होने का अनुमान है।

यह प्लास्टिक कचरा समुद्री जीव के लिए घातक है इससे समुद्रों का पारिस्थितिक तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इससे अनके जीवों का जीवन संकटग्रस्त हो रहा है।

कछुओं व मछलियों की दम घुटने से मौत हो रही है और व्हेल इसके जहर का शिकार हो रही हैं। प्रशांत महासागर में द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच समुद्र में कचरे का सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां पर 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक जमा हो गया है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में हर साल मछली 12,000 से 24.000 टन प्लास्टिक पानी के साथ निगल जाती है। यह प्लास्टिक मछलियों की आंतों को क्षति पहुंचाते हैं जिसे उनकी मौत हो जाती है। यह खाद्य श्रृंखला के माध्यम से बड़ी मछली, समुद्री स्तनधारियों और मानव तक पहुंचता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि कैलिफोर्निया के बाजारों में एक चौथाई मछलियों में उनके गले में प्लास्टिक होता है, जो ज्यादातर प्लास्टिक माइक्रोफाइबर के रूप में होता है।

क्यों बढ़ रहा प्लास्टिक मानव जीवन में
हम दैनिक जीवन में बिना प्लास्टिक के किसी वस्तु को रखने या बाजार से किसी अन्य साधन में लाने की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं। घर में सब्जी लाने से लेकर राशन का सामान सब के लिए प्लास्टिक का उपयोग होता है।

इसका एक कारण यह भी है कि कम उत्पादन लागत आने के कारण हर वर्ष बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का उत्पादन होता है और इसका उपयोग मानव जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिलता है। अभी तक प्लास्टिक का कोई विकल्प नहीं ढूंढ़ा जा सका। जो लोगों के जीवन से प्लास्टिक की जगह ले सके।

इस प्लास्टिक से बनी वस्तुओं की आधी मात्रा को तीन साल इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है और प्लास्टिक की नई चीजों का इस्तेमाल होने लगता है। रिसाइकिल में कमी और अधिक मांग के चलते हर साल प्लास्टिक उत्पादन की मात्रा बढ़ती जा रही है। जो चिंता का कारण बनी हुई है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का लक्ष्य 2030 तक स्ट्रॉ और पॉलिथिन बैग जैसी सिर्फ एक बार प्रयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक की वस्तुएं को इस्तेमाल से हटाने का है।

बढ़ती मांग का 40 फीसदी तक कटौती करे
WWF अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा की बैठक से पहले, प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि के लिए सभी देशों को बुला रही है। इसका लक्ष्य सांस लेने पर शरीर के अंदर पहुंचने वाले प्लास्टिक के बेहद सूक्ष्म कण और भोजन व पानी के जरिए पेट में जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक टुकड़ों से लेकर एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की मांग को 2030 तक 40 फीसदी तक घटाना है।

प्लास्टिक एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए वैश्विक समाधान की जरूरत है। यही कारण है कि महासागरों में पहुंचने वाले प्लास्टिक मलबे पर कानूनी रूप से नियंत्रण के लिए संयुक्त राष्ट्र से समझौते की कोशिश की जा रही है।

प्लास्टिक का विकल्प हो, तभी होंगे लोग जागरूक

ऐसा नहीं है कि सरकारें या लोग जागरूक नहीं है, परंतु प्लास्टिक है कि मानव जीवन से अलग होने का नाम ही नहीं ले रहा है। प्लास्टिक की वस्तुओं को हटाने के लिए कोई ऐसा विकल्प लाना होगा जिससे लोग अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक वस्तुओं का उपयोग कम कर सके। इसके प्रति आमजन को भी जागरूक बनाया जाए ताकि वे कपड़े के थैलों को उपयोग कर सके। जब तक आमजन को जागरूक व प्लास्टिक का विकल्प नहीं होगा तब तक यह मानव व पर्यावरण के लिए चिंता का विषय बना रहेगा।

Rakesh Singh

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