कल यानी एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश होगा। अक्सर आपने अपने आस—पास लोगों को कहते सुना होगा कि बजट समझ नहीं आता। दरअसल लोगों को बजट से जुड़ी विभिन्न टर्म की जानकारी नहीं होती इस कारण वे बजट को समझ नहीं पाते। आइए आपको बजट की ऐसी कुछ टर्म के बारे में बताते हैं जो आपकी जानकारी भी बढ़ाएगी और बजट को समझने में मदद भी करेगी।
जब केंद्र सरकार के पास पैसों की कमी हो जाती है, तो वो बाजार से पैसा जुटाने के लिए बॉन्ड जारी करती है। यह एक तरह का कर्ज होता है, जिसे पैसा मिलने बाद सरकार तय समय के अंदर लौटा देती है। बॉन्ड को कर्ज का सर्टिफिकेट भी कहते हैं।
जब किसी दूसरे देश से भारत में सामान आता है तो उस पर जो कर लगता है, उसे कस्टम ड्यूटी कहते हैं। इसे सीमा शुल्क भी कहा जाता है। यह शुल्क तब लगता है जब समुद्र या हवा के रास्ते भारत में सामान उतारा जाता है।
एक्साइज ड्यूटी उन उत्पादों पर लगती है जो देश के भीतर लगते हैं। इसे उत्पाद शुल्क भी कहते हैं। यह शुल्क उत्पाद के बनने और उसकी खरीद पर लगता है।
अगर सरकार किसी पब्लिक सेक्टर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को निजी क्षेत्र में बेच देती है, तो उसे विनिवेश कहा जाता है। सरकार यह हिस्सेदारी शेयरों के जरिए बेचती है। यह हिस्सेदारी किसी एक व्यक्ति या फिर किसी निजी कंपनी को बेची जा सकती है।
केन्द्र सरकार का राज्य सरकारों व विश्व के अन्य देशों में मौजूद सरकारों द्वारा जो भी वित्ती लेनदेन होता है, उसे बजट भाषा में बैलेंस ऑफ पेमेंट कहा जाता है।
बैलेंस बजट तब होता है जब सरकार का खर्चा और कमाई दोनों ही बराबर होता है।
सरकार की ओर से लिया जाने वाला अतिरिक्त कर्ज राजकोषीय घाटा कहलाता है। देखा जाए तो राजकोषीय घाटा घरेलू कर्ज पर बढ़ने वाला अतिरिक्त बोझ ही है। इससे सरकार आय और खर्च के अंतर को दूर करती है।
देश के वित्तीय घाटे और ब्याज की अदायगी के अंतर को प्राथमिक घाटा कहते हैं। प्राथमिक घाटे के आंकड़े से इस बात का पता चलता है कि किसी भी सरकार के लिए ब्याज अदायगी कितनी बड़ी या छोटी समस्या है।
इस विधेयक के माध्यम से ही आम बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री सरकारी आमदनी बढ़ाने के विचार से नए करों आदि का प्रस्ताव करते हैं। इसके साथ ही वित्त विधेयक में मौजूदा कर प्रणाली में किसी तरह का संशोधन आदि को प्रस्तावित किया जाता है। संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे लागू किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी, ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट एक वित्त वर्ष के दौरान देश के भीतर कुल वस्तुओं के उत्पादन और देश में दी जाने वाली सेवाओं का टोटल होता है।
यह वह कर होता है, जो व्यक्तियों और संगठनों की आमदनी पर लगाया जाता है, चाहे वह आमदनी किसी भी स्रोत से हुई हो। निवेश, वेतन, ब्याज, आयकर, कॉरपोरेट टैक्स आदि प्रत्यक्ष कर के तहत ही आते हैं।
36 महीने से कम समय के लिए रखे जाने वाले पूंजीगत एसेट्स को शार्ट टर्म कैपिटल असेट कहते हैं। वहीं शेयर, सिक्योरिटी और बांड आदि के मामले में यह अवधि 36 महीने की बजाय 12 महीने की है।
ग्राहकों द्वारा सामान खरीदने और सेवाओं का इस्तेमाल करने के दौरान उन पर लगाया जाने वाला टैक्स इनडायरेक्ट टैक्स कहलाता है। जीएसटी, कस्टम्स ड्यूटी और एक्साइज ड्यूटी आदि इनडायरेक्ट टैक्स के तहत ही आते हैं।
पूंजीगत असेट्स को बेचने या लेन-देने से होने वाला मुनाफा कैपिटल गेन्स कहलाता है।
यह एक वित्तीय साल है जो कर निर्धारण वर्ष से ठीक पहले आता है। यह 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च को खत्म होता है। इस दौरान कमाई गई रकम पर कर निर्धारण साल में टैक्स देना होता है। यानी 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 अगर वित्तीय साल है तो कर निर्धारण साल 1 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2017 तक होगा।
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