British traders were jealous of success of Indian industrialist GD Birla.
घनश्याम दास बिड़ला ‘जीडी बिड़ला’ भारत एक ऐसे अग्रणी उद्योगपति थे, जिन्होंने देश की आजादी में अपना अमूल्य योगदान दिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में देश के पूंजीपतियों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन करने की अपील की गई थी। उद्योगपति जीडी बिड़ला महात्मा गांधीजी के मित्र होने के साथ ही उनके सलाहकार, प्रशंसक एवं करीबी सहयोगियों में से एक थे। घनश्याम दास भारत के प्रमुख औद्योगिक समूह बी.के.के.एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे। इस समूह की कुल परिसंपत्तियाँ एक लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
बिड़ला समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, बिस्किट, फ़िलामेंट यार्न, रासायनिक पदार्थ, सीमेंट, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में हैं। इसकी अग्रणी कंपनियाँ ‘ग्रासिम इंडस्ट्रीज’ और ‘सेंचुरी टेक्सटाइल’ है। भारत सरकार ने जीडी बिड़ला को उनके देशहित में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए वर्ष 1957 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया। देशभक्त व प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला की आज 10 अप्रैल को 129वीं जयंती है। इस खास अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…
भारतीय उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के पिलानी में 10 अप्रैल, 1894 को हुआ था। वे एक मारवाड़ी परिवार से संबंध रखते थे। उनके पिता बलदेवदास थे, जो व्यापार का काम करते थे। जीडी बिड़ला का विवाह वर्ष 1905 में दुर्गा देवी के साथ हुआ था। घनश्याम को हिन्दी और गणित का ज्ञान एक स्थानीय शिक्षक की मदद से मिला। अपने पिता बी. डी. बिड़ला की प्रेरणा व सहयोग से जीडी बिड़ला ने कलकत्ता में व्यापार जगत में प्रवेश किया।
बिड़ला परिवार की तरह ही उनके ससुर महादेव सोमानी भी व्यवसाय के लिए कोलकाता चले गए थे। घनश्याम के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम लक्ष्मी निवास रखा गया। जीडी बिड़ला की पत्नी दुर्गा देवी की टी. बी. के कारण वर्ष 1910 में मृत्यु हो गयी। इस दुखद घटना से उभर कर वर्ष 1912 में उन्होंने महेश्वरी देवी नाम की महिला से दूसरी शादी कर ली। इनसे उनके पांच संताने (दो पुत्र कृष्ण कुमार और बसंत कुमार और तीन पुत्रियाँ चन्द्रकला देवी दागा, अनसुइया देवी तपुरिया और शांति देवी महेश्वरी) हुईं।
दुर्भाग्यवश जीडी बिड़ला की दूसरी पत्नी महेश्वरी देवी को भी क्षय रोग (टी. बी.) हो गया। उनका इलाज के बावजूद 6 जनवरी, 1926 को देहांत हो गया। इस समय घनश्यामदास की उम्र 32 साल थी, पर उन्होंने दोबारा विवाह का ख्याल मन से निकाल दिया। बिड़ला ने अपने बच्चों का लालन-पालन के लिए उनमें से चार बच्चों को छोटे भाई ब्रिज मोहन बिड़ला के पास भेज दिया। वहीं, दो पुत्रियों को अपने बड़े भाई रामेश्वर दास बिड़ला के पास भेजा।
घनश्याम दास बिड़ला ने वर्ष 1912 में अपने ससुर एम. सोमानी के सहयोग से पटसन (जूट) की दलाली का व्यवसाय शुरू किया। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पटसन और कपास की भारी मांग के कारण जीडी बाबू ने खूब मुनाफा कमाया। उनकी इस कामयाबी से अंग्रेज व्यापारियों को जलन होती थी, क्योंकि वे पटसन के व्यापार पर एकाधिकार जमा चुके थे और यूरोप के कारखानों को ऊंचे दामों पर पटसन बेचते थे। उन्होंने कोलकाता में ही वर्ष 1918 में ‘बिड़ला ब्रदर्स’ की स्थापना कीं। जीडी बिड़ला ने यही पर पहली पटसन मिल की स्थापना भी कीं।
अंग्रेजों ने इसका तोड़ निकालने के लिए मुद्रा के विनिमयन को अपने हक में कर लिया। इससे बिड़ला ने अंग्रेजों का विरोधस्वरूप ‘हिंदुस्तान के सोने और स्टर्लिंग की लूट’ की बात कहकर पूरे देश में आवाज उठाईं। कई बार अंग्रेज कारोबारियों ने उनके व्यापार को बंद करवाने की कोशिशें की, हालांकि वे हर बार नाकाम रहे।
जीडी बिड़ला ने वर्ष 1921 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर में कपड़ा मिल की स्थापना कीं। उन्होंने वर्ष 1923 से 1924 में केसोराम कॉटन मिल्स ख़रीद लीं। जीडी बाबू वर्ष 1928 में भारतीय पूंजीपतियों के संगठन ‘भारतीय वाणिज्य उद्योग महामण्डल’ के अध्यक्ष चुने गये।
बिड़ला जूट उद्योग तक ही सीमित नहीं रहे, उन्होंने 1942 के दशक में ‘हिंदुस्तान मोटर्स’ की स्थापना और कार उद्योग में हाथ आजमाया। जब देश को आजादी मिली और अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे थे, तब उन्होंने कई पूर्ववत यूरोपियन कंपनियों को खरीदकर चाय और टेक्सटाइल उद्योग में निवेश किया। बिड़ला ने कंपनी का विस्तार स्टील पाइप, रसायन, रेयान, सीमेंट जैसे क्षेत्रों में भी किया।
जब भारत में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ प्रगति पर था, उस दौरान घनश्याम दास बिड़ला को एक ऐसा व्यावसायिक बैंक स्थापित करने की सूझी, जो पूरी तरह भारतीय पूँजी और प्रबंधन पर निर्भर हो। उनके इस विचार को कार्य रूप देने के लिए वर्ष 1943 में ‘यूनाइटेड कमर्शियल बैंक’ की कोलकाता में स्थापना की गईं। यह भारत के सबसे पुराने व्यावसायिक बैंकों में से एक है और इसका नाम अब यूको बैंक हो गया है।
जहां घनश्याम दास बिड़ला ने भारत के उद्योग जगत को मजबूत किया, साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में भी योगदान दिया। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 1943 में अपनी जन्मस्थली पिलानी में ‘बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज’, जिसका नाम वर्ष 1964 में बदलकर ‘बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस कर दिया गया। भिवानी में ‘टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्सटाइल एंड साइंसेज’ की स्थापना में में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाईं।
ये दोनों संस्थान भारत के सर्वोच्च इंजीनियरिंग संस्थानों की श्रेणी में आते हैं। यहीं ‘सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट’ की एक शाखा, एक आवासीय विद्यालय और कई पॉलिटेक्निक कॉलेज हैं। उनकी स्मृति में देश के बेहतर आवासीय विद्यालयों में शुमार ‘जी.डी. बिड़ला मेमोरियल स्कूल, रानीखेत’ स्थापित किया गया।
उद्योगपति होने के बावजूद घनश्याम दास बिड़ला एक सच्चे देशभक्त बनकर भारत की आजादी में उल्लेखनीय योगदान दिया था। महात्मा गांधी को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हर समय आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए तत्पर रहते थे। इस दौरान उन्होंने भारत के पूंजीपतियों से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में समर्थन करने एवं कांग्रेस के हाथ मज़बूत करने की अपील कीं। इन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया।
जीडी बिड़ला को वर्ष 1926 में ब्रिटिश-भारत में केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्वाचित किया गया। वर्ष 1932 में घनश्याम दास ने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर दिल्ली में ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की और उनके उत्थान के लिए कार्य किया। यही नहीं, वे देश में मौजूदा सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध करने में आगे रहे।
बिड़ला ने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं-
1. ‘रुपये की कहानी’
2. ‘जमनालाल बजाज’
3. ‘बापू’
4. ‘Paths to Prosperity’
5. ‘In the Shadow of the Mahatma’
देश के लिए उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला का हर योगदान हमेशा एक आदर्श पेश करता रहेगा, जिन्होंने न केवल देश के उद्योग जगत को मजबूत बनाया, बल्कि देश की आजादी में भी अपना अहम योगदान दिया। ऐसे कर्मवीर पुरुष जीडी बिड़ला की 11 जून, 1983 को मुंबई में देहवासन हो गया।
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