मानव जाति का इतिहास गवाह है कि जब भी किसी पुरुष ने दूसरे पुरुषों से बदला लेने का सोचा तो सबसे पहला हमला उस समाज या परिवार की महिला पर किया गया। उन हमलों में बलात्कार हमारे भूतकाल, वर्तमान और क्या पता भविष्यकाल तक चलने वाला कलंक है। सीधे शब्दों में कहें तो रेप एक अपराध है जब कोई भी, कोई भी मतलब कोई भी आदमी या औरत किसी भी आदमी या औरत के साथ करता है।
हां, इसके होने की वजहें कई तरह की हो सकती है। कभी यह बदला लेने की भावना से होता है तो कभी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए। देखा जाए तो वजहें कितनी भी क्यों ना हों, उस इंसान ने चश्मा तो हिंसा का ही पहना रखा है और विक्टिम एक औरत है। हर धर्म और जाति की महिला और लड़कियों ने इस डर को सदियों से झेला है और आज भी झेल रही है।
हिंसा के चश्मे के ऊपर जाति या धर्म की फ्रेम तब पहनी जाती है जब हमारे देश का क़ानून और समाज औरतों के दर्द को समझे बिना उनको न्याय दिलाने में नकारा साबित होता है. भेदभाव हमारे हुक्मरानों के सिर चढ़कर बोलता है. आखिर ये कैसे तर्कसंगत है कि किसी “ख़ास जाति” या धर्म से होना आपको आपके न्याय के अधिकार से ही वंचित कर दे।
लड़की चाहे दलित की हों या किसी ब्राह्मण के घर पैदा हुई, समाज का हिस्सा तो है, अगर हम उसको न्याय दिलाने की पैरवी उसकी जाति देखकर करते हैं तो हम उस फ्रेम को पहने घूम रहे हैं, जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है।
किसी दलित के मंदिर में घुसने पर उसे पीटना, मिड-डे मील का खाना दलितों को नहीं मिलना, ऊंची जाति वालों के बराबर में खड़े होना, उनके नल से पानी पीना, मूंछें रखना, शादी में घोड़ी पर चढ़ना आदि ऐसी कितनी ही घटनाएं हमारे सामने हर दूसरे दिन होती है जिनसे हमें अब फ़र्क़ पड़ना ही शायद बंद हो गया।
ऐसे में इन्हीं में से किसी एक कलंक को फिल्मी पर्दे पर लेकर आ रहे हैं अभिनेता आयुष्मान खुराना। फिल्म का नाम है ‘आर्टिकल 15’। ‘मुल्क’ बनाने वाले अनुभव सिन्हा डायरेक्ट कर रहे हैं। हमारे महान भारतीय संविधान में ‘आर्टिकल 15’ लिखा है जो सभी की बराबरी की बात कहता है। इसका हम विस्तार से जिक्र आगे करेंगे। फिल्म 28 जून को रिलीज होगी, जिससे पहले कुछ ब्राह्मण संगठनों (अखिल भारतीय ब्रह्मण एकता परिषद) का कहना है कि फिल्म में ब्राह्मणों को विलेन के रूप में दिखाया गया है, वो ही कुछ-कुछ पद्मावत फिल्म जैसा माहौल है। फिल्म की रिलीज रोकने की मांग जोरों पर है।
अब विरोध के स्वर के बीच हमें यह कुछ बातें समझना जरूरी है। जैसे कि फिल्म कथित तौर पर कौनसी घटना से प्रेरित है, हमारे संविधान का आर्टिकल 15 क्या कहता है, ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद में क्या बुनियादी फर्क है।
कौनसे केस पर आधारित है यह फिल्म ?
27 मई, 2014 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले से एक घटना सामने आई जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। कटरा सादतगंज गांव में दो दलित लड़कियां पेड़ से लटकी मिली, जिनका गैंगरेप किया गया था।
परिवार ने कहा गांव के रहने वाले ऊंची जाति के 5 लड़कों ने यह घिनौना काम किया है। पुलिस ने एफआईआर नहीं लिखी। उस समय यूपी में सपा सरकार थी, जिसकी फजीहत हुई। विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो पुलिस ने जांच शुरू की और पांच लोगों को गिरफ्तार किया, जिसमें 2 पुलिस वाले खुद ही निकले।
जाति का एंगल आने से यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बनी। केस सीबीआई के पास चला गया। सीबीआई ने जांच के बाद इसे सुसाइड केस बताया और फाइल बंद कर दी।
सीबीआई ने बताया कि दोनों लड़कियों का गांव के दूसरी जाति के लड़कों के साथ अफेयर चल रहा था जिसके डर से दोनों ने खुद ही फांसी लगा ली।
असल वाला “आर्टिकल 15” क्या कहता है ?
(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर –
(A) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(B) राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के संबंध में किसी भी दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) में कहा गया है राज्य सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई भेदभाव नहीं करेगी।
ब्राह्मण संगठनों का हर जातिगत मुद्दों पर बनी फिल्मों का विरोध करना का ट्रेंड चला हुआ है, ऐसे में फिल्म और इससे विषय के इतर हम आपको कुछ एकस्ट्रा ज्ञान भी देना चाहते हैं, शायद आप फिल्म के ताने-बाने से इसको जोड़कर अपनी समझशक्ति को बूस्ट कर पाएं। आइए समझते हैं कौन है ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी होना क्या है ?
ब्राह्मण होना क्या है ?
ब्राह्मण होने या ना होने पर इंसान नामक प्राणी का कोई जोर नहीं है। यह महज एक जन्म का संयोग है कि आप ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए। तो इसमें गर्व करने जैसा कुछ नहीं और शर्म वाली भी कोई बात नहीं, क्योंकि जो होने में आपके वजूद की कोई सार्थकता ही नहीं है उस पर किस बात का गर्व ?
हां, ब्राह्मण कुल में पैदा होने से आपको जातिगत भेदभाव नहीं झेलना पड़ेगा, अन्याय और अपमान का सामना नहीं करना पड़ेगा। मतलब आपके पैदा होने का पूरा प्रिविलेज आपको मिलेगा।
ब्राह्मणवादी और ब्राह्मण में जमीन आसमान का फ़र्क़ –
ऊपर बताई गई परिभाषा का एक दूसरा पहलू यह है कि ब्राह्मणों के अलावा कई ऐसी जातियां हैं जो वो सब कुछ देखते हैं जो एक ब्राह्मण नहीं देखता। ये लोग जातिगत भेदभाव, अन्याय, तिरस्कार, अपमान सब देखते हैं।
अब ध्यान दीजिएगा, अगर आपको इस अपमान, इस अन्याय, इस भेदभाव से दुख नहीं होता है, या आपकी संवेदनशीलता मर चुकी है, या आप जाने अनजाने इसका समर्थन कर रहे हैं तो इसे “ब्राह्मणवाद” कहा जाता है।
ब्राह्मण होना और ब्राह्मणवादी होने में बहुत गहरा फर्क है। यह भी कोई जरूरी बात नहीं कि जो ब्राह्मणवादी है वो ब्राह्मण ही होगा। अब फिल्म देखने के बाद आप अपनी समझ से तय कीजिएगा कि किसी भी ब्राह्मण संगठन का विरोध और फिल्म बनाने वाले की नीयत को आप कौनसे पैमाने पर रखेंगे।
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