पिछले काफी समय से फेसबुक की डाटा लीक और गोपनीयता के मसले पर काफी फजीहत हुई है, ऐसे में यूजर्स के बीच पारदर्शिता बढ़ाने के लिए फेसबुक ने एक विज्ञापन (एड) आर्काइव बनाया है जिसके जरिए हमें विज्ञापनों और उन विज्ञापनों में पैसा लगाने वालों की जानकारी हमें मिल सकती है।
आर्काइव में जानकारी जुटाने के लिए फेसबुक ने 7 मई, 2018 के बाद से लॉन्च किए गए विज्ञापनों का आंकड़ा इकट्ठा करना शुरू किया, जिसके बाद हाल में फेसबुक ने भारत के लिए अपनी विज्ञापन (एड) आर्काइव की एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें राजनीति और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से जुड़े विज्ञापनों के बारे में फरवरी 2019 से 2 मार्च तक के आंकड़े दिए गए हैं।
आंकड़ों को देखने के बाद हम यह साफ तौर पर कह सकते हैं कि चुनाव नजदीक आते देख सोशल मीडिया का आक्रामक इस्तेमाल शुरू हो चुका है और करोड़ों रूपये फेसबुक विज्ञापनों में बहाया जा रहा है। फेसबुक की विज्ञापन लाइब्रेरी से जानकारी मिलती है कि इसमें राजनीति और राष्ट्रीय महत्व से जुड़े कुल 16,556 विज्ञापन हैं जिन पर विज्ञापन देने वालों ने फरवरी 2019 के बाद से 4,13,88,087 रुपये खर्च किए हैं।
इसके अलावा जो सबसे रोचक जानकारी हासिल होती है वो यह कि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जिन पेजों की तरफ से सबसे ज्यादा विज्ञापन दिए गए हैं वो कोई और नहीं बल्कि सतारूढ़ दल भाजपा के हैं।
2019 लोकसभा चुनावों में अब एक महीने से भी कम समय बचा है ऐसे में भाजपा समर्थित 3 फेसबुक पेज की तरफ से विज्ञापनों में करोड़ों बहाने की जानकारी सामने आई है। सबसे पहले “भारत के मन की बात” नाम के फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज की तरफ से 1,168 विज्ञापन दिए गए हैं जिनके लिए 1,01,60,240 रुपए खर्च हुए। दूसरे नंबर पर “नेशन विद नमो” पेज है जिसने 631 विज्ञापनों पर 52,24,296 रुपए उड़ाए। वहीं तीसरे नंबर पर “मायगव इंडिया” नाम का पेज हैं जिसकी तरफ से फेसबुक को 25,27,349 रुपए 114 विज्ञापनों के लिए दिए गए हैं।
अज्ञात विज्ञापनदाता कौन हैं ?
फेसबुक की एक पॉलिसी है जिसके अनुसार अगर कोई भी पेज बिना किसी डिस्क्लेमर के विज्ञापन चलाता है तो वो अज्ञात विज्ञापनदाता बन जाता है माने उसकी जानकारी और उसने पैसे कहां से दिए हैं ये बताया नहीं जाता है। वहीं जब कोई विज्ञापन देने वाला अपने विज्ञापन के बारे में पूरी जानकारी बताता है तो उसे यह भी बताना होता है कि इसके लिए किसने भुगतान किया है।
“नमो मर्केंडाइज” और “अमित शाह” जैसे पेज के लिए भी कई अज्ञात विज्ञापनदाता रहे, जिनसे विज्ञापन बिना किसी डिस्क्लेमर के चलाए गए। पिछले महीने, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन दोनों पेज से 2,12,071 और, 3,17,852 रुपए खर्च किए गए।
डिस्क्लेमर के साथ चलने वाले विज्ञापन कौनसे होते हैं ?
जिन विज्ञापनों में डिस्क्लेमर दिया जाता है उसका मतलब है इनके लिए पैसे भाजपा के फंड से किया जा रहा है। “भारत के मन की बात” नाम के फेसबुक पेज से डिसक्लेमर के साथ विज्ञापन दिए गए जो फरवरी 2019 से 2 मार्च, 2019 की मासिक तालिका में पांचवें नंबर पर रहा, इससे 388 विज्ञापनों पर 18,47,555 रुपए खर्च हुए। वहीं छठे स्थान पर एक पेज “नेशन विद नमो” रहा जिसने 443 विज्ञापनों के लिए 11,86,079 रुपए खर्च किए।
वहीं अगर हम क्षेत्रीय दलों की बात करें तो फेसबुक पर लगभग 20 लाख खर्च किए गए हैं और विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी और उसके समर्थकों ने इस दौरान फेसबुक पर राजनीतिक विज्ञापनों के लिए लगभग 10 लाख खर्च किए हैं।
चुनावों के नज़दीक आने पर सोशल मीडिया पर राजनीतिक संगठन पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं पर इसके साथ ही अज्ञात विज्ञापनदाताओं की तरफ से भी करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या चुनाव आयोग इन अज्ञात विज्ञापनदाताओं द्वारा खर्च किए जाने वाले पैसों पर कोई ध्यान देगा। क्या ऑनलाइन विज्ञापनों के लिए कोई जवाबदेही तय की जाएगी ?
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