Ustad Bismillah Khan was the third person in the music field to be honored with the 'Bharat Ratna'.
देश के ख्यातनाम शहनाई वादक और ‘भारत रत्न’ से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की 21 मार्च को 107वीं जयंती है। सदियों से भारतीय संगीत में शहनाई का काफी महत्व हुआ करता था, क्योंकि गुजरे जमाने में पारंपरिक समारोहों में मुख्य रूप से इस लोक वाद्ययंत्र का वादन किया जाता था। बिस्मिल्लाह खां ने जीवन पर्यंत ‘शहनाई’ को उच्च दर्ज़ा दिलाने के लिए काम किया। भारतीय संगीत में अहम योगदान के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। इस ख़ास मौके पर जानिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमरांव में एक मुस्लिम संगीतकार के घर हुआ था। उनका बचपन का नाम कमरुद्दीन खां था। उनके बड़े भाई का नाम शमशुद्दीन था, तो उनके दादा रसूल बख्श ने उनका नाम ‘बिस्मिल्लाह’ रख दिया। उन्हें संगीत विरासत में मिला था, क्योंकि उनके खानदान का हर व्यक्ति दरबारी राग बजाने में माहिर थे। उस्ताद बिस्मिल्लाह के पिता बिहार के डुमरांव राज्य के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में दरबारी शहनाई वादक थे।
बिस्मिल्लाह खां महज 6 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ बनारस आ गए। यहीं पर उन्होंने अपने चाचा अली बख्श ‘विलायती’ से शहनाई वादन सीखा। उनके चाचा विश्वनाथ मंदिर में शहनाई वादन का काम किया करते थे। बिस्मिल्लाह को बनारस से बहुत अधिक लगाव था और वह कहते थे कि बनारस के अलावा उनका कहीं भी मन नहीं लगता। 16 साल की उम्र में उनका निकाह मुग्गन खानम से कर दिया गया। मुग्गन उनके मामा सादिक अली की बेटी थी। उन्होंने वर्ष 1937 में हुए अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन, कलकत्ता में उन्हें पहली बार बड़े स्तर पर शहनाई वादन का मौका मिला।
इस कार्यक्रम से उन्होंने शहनाई को भारतीय संगीत के केंद्र में ले आए। इसके बाद वर्ष 1938 में लखनऊ, ऑल इंडिया रेडियो में काम करने का मिला और वह रातों-रात प्रसिद्ध हो गए। उन्हें ‘एडिनबर्ग म्यूज़िक फेस्टिवल’ में शहनाई वादन का मौका मिला और इससे उन्होंने सारी दुनिया को अपना दीवाना बना लिया।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को 15 अगस्त, 1947 को देश की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर दिल्ली के लाल किले में शहनाई वादन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्हें खुद प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर शहनाई बजाने के लिए आमंत्रित किया था। उस्ताद बिस्मिल्लाह ने ‘बजरी’, ‘चैती’ और ‘झूला’ जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से खूब संवारा और क्लासिकल मौसिक़ी में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया। दूरदर्शन और आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून में बिस्मिल्लाह खां की शहनाई की आवाज़ है।
बिस्मिल्लाह खां ने न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी भारतीय संस्कृति को विशेष पहचान दिलाई। उन्होंने इराक, अफ़गानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा जैसे दर्जनों देशों में जाकर भारत की पहचान और उसकी साझा संस्कृति का परचम लहराया। वर्ष 2006 में जब बनारस के मशहूर संकटमोचन मंदिर पर हमला हुआ था, तब बिस्मिल्लाह ने अपनी शहनाई से शांति और अमन का संदेश लोगों तक पहुंचाने का काम किया था।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई को न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई। उन्हें भारत सरकार ने कई पुरस्कार देकर सम्मानित किया। उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न‘ से वर्ष 2001 में सम्मानित किया गया। उस्ताद बिस्मिल्लाह यह सम्मान पाने वाले तीसरे व्यक्ति थे जो संगीत क्षेत्र से हैं। उनसे पहले यह सम्मान एमएस सुब्बुलक्ष्मी और रवि शंकर के पास ही था। इससे पूर्व उन्हें वर्ष 1980 में ‘पद्म विभूषण’, वर्ष 1968 में ‘पद्म भूषण’ और वर्ष 1961 में ‘पद्मश्री’ जैसे बड़े सम्मानों से भी सम्मानित किया गया था। इस प्रकार भारत के सभी चारों सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से उन्हें नवाज़ा गया था।
इनके अलावा उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को वर्ष 1956 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया, जोकि एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उन्हें ‘तानसेन पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। यही नहीं उस्ताद बिस्मिल्लाह के 102वें जन्मदिन के मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।
उस्ताद बिस्मिलाह खां ने देश की संस्कृति को बनाए रखने में योगदान दिया। उनकी शहनाई हमेशा लोगों के बीच सद्भाव को बनाए रखेगी। उनका इंतकाल 21 अगस्त, 2006 को 90 वर्ष की उम्र में हुआ। उन्हें सम्मान देने के लिए उनके साथ में एक शहनाई भी दफ़्न की गई थी।
उस्ताद विलायत ख़ां ने ऑल इंडिया रेडियो को चलाने के तरीके की लंबे समय तक की थी आलोचना
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