देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के प्रभावशाली सदस्य रहे फिरोज गांधी की आज 106वीं जयंती है। फिरोज गांधी भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन देश की राजनीति में उनके अविस्मरणीय योगदान के कारण उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। उनकी जयंती के मौके पर आइए एक नज़र डालें उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों पर। फिरोज गांधी का जन्म 12 सिंतबर 1912 को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में हुई।
उस दौर में देश अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और इलाहाबाद स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों का क्रेंद था। फिरोज भी स्वतंत्रता संग्राम की हवा से अछूते नहीं रहे। देश को आजाद कराने की लड़ाई में फिरोज पहली बार साल 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार आंदोलन में शामिल हुए। जिसमें उन्होंने जेल की सजा भी काटी। साल 1935 में फिरोज ने आगे की पढाई के लिए लंदन के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का रुख किया। यहां फिरोज ने अंतर्राष्ट्रीय कानून में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।
इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान ही फिरोज का गांधी परिवार में आना जाना रहता था। इंदिरा भी उन्हें इसी समय से जानती थी। जब फिरोज लंदन चले गए तो दोनों की मुलाकातों का सिलसिला ब्रिटेन में शुरू हो गया। साल 1936 में मां कमला नेहरू की मौत ने इंदिरा को तगड़ा झटका दिया। तब फिरोज ही थे जिन्होंने इंदिरा को सहारा दिया। कहा जाता है कि इसी दौरान दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं। 26 मार्च 1942 को इलाहाबाद में दोनों ने शादी कर ली।
भारत छोड़ो आन्दोलन में फिरोज गांधी कुछ दिनों तक भूमिगत रहने के बावजूद अगस्त 1942 में गिरफ्तार कर लिए गए। रिहा होने के बाद साल 1946 में उन्होंने लखनऊ में नेशनल हेराल्ड के प्रबंध निदेशक के रूप में कार्यभार संभाला। साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव में वे लोकसभा के सदस्य चुने गए। फिरोज के कुछ साल इंदिरा गांधी और नेहरूजी के साथ प्रधानमंत्री निवास में बीता।
साल 1956 में फिरोज प्रधानमंत्री निवास छोड़ सांसद के साधारण भवन में अकेले रहने लगे। साल 1957 में फिरोज एक बार फिर लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। राजनीति में उनकी पहचान एक ऐसे कद्दावर नेता के रुप में होती है जिन्होंने गांधी परिवार से अपने संबधों की परवाह किए बगैर सरकार की नीतियों का जमकर विरोध किया।
फिरोज की निजी जिंदगी भी काफी विवादों में रही। फिरोज और इंदिरा के बीच का रिश्ता भी मतभेदों से भरा था। उनकी जिंदगी में वो मोड़ भी आया जब वे अपना परिवार छोड़ अकेले रहने लगे। उनकी जिंदगी के आखिरी कुछ साल अकेले ही बीते। पत्नी इंदिरा गांधी और दो बेटे राजीव और संजय उन्हें छोड़ प्रधानमंत्री निवास में ही रहते थे। वो 8 सितंबर 1960 का ही दिन था, जब फिरोज गांधी का दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया था।
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