सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को एक बड़ा फैसला सुनाया। इस फैसले के अनुसार अब मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) का ऑफिस भी सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के अंतर्गत आएगा। इस फैसले के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें कुछ नियम भी जारी किए हैं। फैसले में कहा कि सीजेआई ऑफिस एक पब्लिक अथॉरिटी है, इसके अंतर्गत यह आरटीआई के तहत आएगा। हालांकि इस दौरान दफ्तर की गोपनीयता बरकरार रहेगी।
कोर्ट के इस निर्णय को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस.खन्ना, जस्टिस गुप्ता, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस रमन्ना वाली पीठ ने पढ़कर सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत लिया है। वर्ष 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को ही सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 में आए फैसले को चुनौती दी थी।
जस्टिस संजीव खन्ना के द्वारा लिखे गए निर्णय पर ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता ने सहमति जताई है। हालांकि कि पीठ के अन्य न्यायाधीशों में से जस्टिस रमन्ना और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कुछ मुद्दों पर अपनी अलग राय व्यक्त की।
आपको बता दें कि यह अपील सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और शीर्ष अदालत के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के वर्ष 2009 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें कहा गया है कि सीजेआई का पद सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आता है।
अपने इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरटीआई के तहत आने पर पारदर्शिता और बढ़ेगी। इससे न्यायिक स्वायत्तता, पारदर्शिता मजबूत होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इससे लोगों में यह भावना भी मजबूत होगी कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, सुप्रीम कोर्ट के जज भी नहीं हैं।
आरटीआई के एक एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने नवंबर, 2007 एक आरटीआई याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति के बारे में जानकारी मांगी थी जिसे उन्हें देने से मना कर दिया गया।
बाद में यह मामला केंद्रीय सूचना आयुक्त के पास पहुंचा। सीआईसी ने सूचना देने को कहा। इसके बाद इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
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