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लड़के और लड़कियां एक साथ स्कूल नहीं आएंगे, छेड़खानी रोकने के लिए ये कैसा फरमान !

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में एक सरकारी स्कूल ने अनोखा फरमान जारी किया है जिसके सुनने के बाद हर कोई हैरान है। मालदा के गिरिजासुंदरी को-एजुकेशनल हाई स्कूल ने फरमान दिया है कि हफ्ते के शुरूआती तीन दिन सिर्फ लड़कियां स्कूल आएंगी और बाकी बचे तीन दिन लड़के आएंगे।

स्कूल के मुताबिक हाल में कुछ लड़कों द्वारा लड़कियों पर किए गए भद्दे कमेंट के बाद यह फैसला लिया गया है। इसके अलावा स्कूल ने ऐसा करने के पीछे कम जगह का हवाला भी दिया है।

स्कूल के हेड मास्टर ने कहा कि स्कूल में इस तरह की समस्या को देखते हुए, हमारे पास लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग दिन स्कूल  बुलाने के अलावा और कोई उपाय नहीं था। हमें यही एकमात्र व्यावहारिक समाधान लगा।

फरमान जारी होने के बाद कई शिक्षाविदों और माता-पिता ने स्कूल का यह फैसला एकदम बेतुका बताया और इसे तुरंत वापस लेने को कहा। आगे हम आपको कुछ ऐसे सवालों के साथ छोड़ रहे हैं जिनसे आपको समझने में मदद मिलेगी कि क्यों वाकई में स्कूल का यह फैसला पूरी तरह से वाहियाद है।

सबसे पहले अगर देखें तो स्कूल ने लड़कियों के लिए इस समस्या का कोई समाधान ना निकाल पाने की बजाय इससे दूर भागना बेहतर समझा, जो कि सरासर गलत है।

सवाल नंबर 1 – अगर स्कूल ने लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग दिन बुलाया है तो स्कूल में पढ़ाने वाले टीचरों के लिए सिलेबस पूरा करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसके दूसरी तरफ स्कूल ने सिलेबस कैसे होगा इस बारे में कुछ नहीं बताया है।

सवाल नंबर 2 – स्कूल प्रशासन ने इस समस्या के लिए बच्चों के माता-पिता से एक बार भी बात करना मुनासिब क्यों नहीं समझा, जबकि पैरेंट्स मीटिंग में बच्चों के सामने ऐसी समस्याओं पर चर्चा की सकती है।

सवाल नंबर 3 – हम सभी जानते हैं कि स्कूल को-एड है जहां लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं। ऐसे में दोनों को हफ्ते के अलग-अलग दिन बुलाने से लड़कों और लड़कियों के बीच संबंध और जटिल भी हो सकते हैं, इस बारे में स्कूल ने कुछ भी साफ नहीं बताया ?

सवाल नंबर 4 –स्कूल के अधिकारियों ने फरमान सुनाने से पहले क्यों लड़कों के साथ इस विषय एक बार चर्चा करने की जरूरत क्यों महसूस नहीं की?

सवाल नंबर 5 – स्कूल प्रशासन ने जिम्मेदारी और आदेश में फर्क करना क्यों नहीं समझा? जैसा कि हम जानते हैं हमारे समाज में स्कूली बच्चों के बीच अपने सहपाठियों से व्यवहार करने, बात करने जैसी एजुकेशन और एक समझ पैदा करने की सख्त जरूरत है, ऐसे में स्कूल का ऐसा फरमान अपनी जिम्मेदारियों से भागता हुआ और समस्या की गंभीरता समझने वाला नहीं है।

sweta pachori

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