पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी दूसरी बीवी नुसरत के चार बच्चों में से ‘बेनजीर भुट्टो’ एक थीं। जुल्फिकार की एक बहन का नाम भी बेनजीर था। जुल्फी हमेशा से ही अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो में अपना वारिस देखते थे। बचपन से ही बेनजीर को ट्रेनिंग दी जा रही थी। पिता जुल्फिकार भुट्टो चाहते थे कि बेनजीर अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार बनें। शायद इसीलिए उन्हें पढ़ाई के लिए विदेश भेजा गया। उन्हें हावर्ड भेजा गया, फिर वे ऑक्सफोर्ड में भी पढ़ीं। अपने पिता से बेनजीर ने काफी कुछ सीखा। शायद इसीलिए जब जुल्फी को जेल में डाला गया तो वे अपनी मां के साथ पिता के लिए आवाज उठाती रहीं। 21 जून को बेनजीर की 70वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस ख़ास अवसर पर जानिए बेनजीर भुट्टो के जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें…
पाकिस्तान में तख्तापलट के बाद में राष्ट्रपति बने सैन्य तानाशाह जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक़ ने बेनजीर भुट्टो और उनके परिवार को कई बार नजरबंद किया। बाहरी दबाव की वजह से जिया को न चाहते हुए भी बेनजीर को पाकिस्तान से बाहर जाने की अनुमति देनी पड़ीं। पाकिस्तान से बाहर जाकर भी बेनजीर अपने पिता के इंसाफ के लिए आवाज उठाती रहीं। वर्ष 1977 में तख्तापलट के बाद साल 1985 में जिया के खिलाफ विरोध ज्यादा होने लगा था। शायद इसी वजह से बेनजीर वापस पाकिस्तान लौट आईं।
जिया के खिलाफ खड़ा सबसे मजबूत चेहरा बेनजीर का ही था। इसी बीच बेनजीर के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गईं। लोग उन्हें शहीद का दर्जा देने लगे। जो लोग उन्हें दर्जा नहीं देते थे, वो भी इस बात को जरूर मानते थे कि जुल्फी के साथ अन्याय हुआ। इस दौरान बेनजीर भुट्टो धीरे-धीरे पाकिस्तान में मजबूत हो रहीं थीं। लोग उनका साथ दे रहे थे। सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति जनरल जिया को अब बेनजीर का डर सताने लगा था। क्योंकि वो अब चुनावों में उतरने वाली थीं। वर्ष 1988 में चुनाव हुए और बेनजीर के सामने इस्लामी जम्हूरी इत्तेहाद (IJI) को खड़ा किया गया।
आम चुनावों में विपक्ष ने बेनजीर भुट्टो पर हर संभव लांछन लगाने के प्रयास किए। बेनजीर की उर्दू और सिंधी दोनों ही थोड़ी कमजोर थीं। वे हमेशा से ही अंग्रेजी ही बोलती थीं। इसी को विपक्ष ने उनके खिलाफ इस्तेमाल किया। विपक्ष ने भुट्टो की गैर इस्लामिक छवि बनाने की पुरजोर कोशिश की। विपक्ष माहौल इस तरह का बना रहा था कि बेनजीर तो औरत ठहरी, घर में रहेगी तो अच्छा है। लेकिन बेनजीर इसके आगे कभी भी थमी नहीं, रुकी नहीं।
16 नवंबर, 1988 को नेशनल असेंबली चुनाव हुए। इसमें बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरीं। पीपीपी पार्टी को पंजाब में 52 सीटें मिलीं। तीन ही दिन बाद प्रांतीय असेंबली के इलेक्शन भी शुरू हो गए, जिसमें जम्हूरी इत्तेहाद (IJI पार्टी को 108 सीटें मिलीं और बेनजीर चाहकर भी पंजाब में सरकार नहीं बना सकीं। उस वक्त पंजाब के मुख्यमंत्री नवाज शरीफ हुआ करते थे। नवाज पर हमेशा से जिया का हाथ हुआ करता था।
नेशनल असेंबली में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी बेनजीर भुट्टो के सरकार बनाने के आसार नहीं थे। सेना नहीं चाहती थी कि बेनजीर प्रधानमंत्री बने। कहा जाता है कि इसमें बेनजीर की मदद अमरीका ने कीं। लेकिन अमरीका ने कुछ वादे बेनजीर से लिए कि वो सेना के मामलों और न्यूक्लियर प्रोग्राम से दूर रहेंगी व अफगानिस्तान के मामलों में दखलअंदाजी नहीं करेंगी।
ये सभी वादे करने के बाद राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने बेनजीर भुट्टो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। जिस दिन बेनजीर ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, वो एक ऐतिहासिक दिन था, वह आज ही का दिन था। ऐतिहासिक ऐसे था कि वो पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। साथ ही सभी इस्लामिक देशों में ऐसा पहली बार हो रहा था। पाकिस्तान की आवाम ने एक औरत को अपना प्रधानमंत्री चुना था।
पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बने बेनजीर भुट्टो को कुछ ही वक्त हुआ था कि वो दो बार प्रेग्नेंट हो गई थीं, लेकिन बेनजीर ने ये बात किसी को नहीं बताईं। उनके खिलाफ उस दौरान अविश्वास प्रस्ताव आ चुका था। राष्ट्रपति से उनके कुछ मतभेद भी चल रहे थे। वो चुपचाप एक अस्पताल गईं, जहां उनके जाने की किसी को भनक तक नहीं लगी थी। उन्होंने चुपचाप डिलीवरी करवाई और अगले दिन सुबह ही अपने दफ्तर पहुंच गईं। अपने बच्चे के जन्म को 24 घंटे भी नहीं हुए थे और बेनजीर ऑफिस जाकर फाइलें पलट रहीं थीं। वो पहली महिला थीं, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए बच्चे को जन्म दिया था।
बेनजीर भुट्टो दो बार वर्ष 1988 से 1990 और वर्ष 1993 से 1996 तक पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं। पूर्व पीएम की बेटी होने के बाद भी सत्ता के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था। उन्होंने वर्ष 1987 में बिजनेसमैन आसिफ अली जरदारी से निकाह किया, जो बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी बने। बेनजीर भुट्टो का जीवन आज भी कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है। 27 दिसंबर, 2007 को समर्थकों के साथ एक रैली के दौरान उन्हें रावलपिंडी में गोलियों से भून दिया गया, जहां वर्ष 1979 में उनके पिता को फांसी के फंदे पर लटकाया था। बेनजीर भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन ख़ासकर पाकिस्तान के इतिहास में उनका नाम हमेशा याद किया जाएगा।
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