अब तक हमने यही सुना होगा कि भारत में न्यायिक मामलों की सुनवाई के दौरान अदालतें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अंतर्गत कार्रवाई करती हैं, परंतु जम्मू-कश्मीर राज्य में ऐसा नहीं होता था। वहां पर आईपीसी के तहत कानूनी कार्रवाई नहीं की जाती है, जम्मू-कश्मीर राज्य में मुख्यत: रणबीर दंड संहिता के तहत कानूनी कार्रवाई की जाती थी। लेकिन धारा 370 को हटाए जाने के बाद अब जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता समान रूप से लागू होगी।
भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए वहां अलग ‘रणबीर दंड संहिता’ को लागू कर रखा था। जिसे रणबीर आचार संहिता भी कहा जाता था। भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य में आईपीसी की सहायता से कानूनी प्रक्रिया को न अपनाकर वहां केवल रणबीर दंड संहिता का इस्तेमाल किया जाता था। यहां पर यह प्रणाली ब्रिटिश काल से ही लागू थी।
ब्रिटिश हुकूमत के समय जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी। वहां पर डोगरा राजवंश का शासन था और महाराजा रणबीर सिंह शासक थे। उनके शासन काल में ही वर्ष 1932 में महाराजा के नाम पर ‘रणबीर दंड संहिता’ लागू की गई थी। भारतीय दंड संहिता का निर्माण थॉमस बैबिंटन मैकॉले द्वारा किया गया था। रणबीर दंड संहिता भी आईपीसी के ही समान थी, लेकिन इसकी कुछ धाराओं में अंतर था।
जहां भारतीय दंड संहिता की धारा 4 कंप्यूटर के माध्यम से किए जाने वाले आपराधिक गतिविधियों को व्याख्यित और संबोधित करती है, इसके विपरीत रणबीर दंड संहिता में इससे संबंधित कोई प्रावधान नहीं दिया गया है। आईपीसी की धारा 153 CAA के अंतर्गत सार्वजनिक सभाओं या किसी कार्यक्रम के दौरान जान बूझकर शस्त्र लाना दंडनीय अपराध माना जाता है, जबकि रणबीर दंड संहिता में ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों का उल्लेख नहीं है।
आईपीसी की धारा 195A के तहत यदि कोई किसी को झूठी गवाही या बयान देने के लिए उकसाता है या प्रताड़ित करता है, तो वह सजा का हकदार माना जाता है, जबकि रणबीर दंड संहिता में इस संबंध में कोई निर्देश नहीं दिया गया है। आईपीसी की धारा 281 के अंतर्गत ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति किसी नाविकों को प्रकाश, निशान या पेरक में काम आने वाले पहियों से गुमराह या भ्रमित करता है, तो वह सजा का हकदार है, वहीं रणबीर दंड संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है आईपीसी की धारा 304B में दहेज प्रताड़ना के दौरान होने वाली मौतों से संबंधित है, वहीं रणबीर दंड संहिता में इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
रणबीर दंड संहिता में उल्लेखित धारा 190 के अंर्तगत सरकार ऐसे किसी भी व्यक्ति को सज़ा दे सकती है, जो सरकार द्वारा अमान्य या जब्त की गई सामग्री का प्रकाशन या वितरण करता है। इस मामले में अपराध का निर्धारण करने का अधिकार मुख्यमंत्री को है। यह विशेष धारा पत्रकारिता, सोच, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बुरी तरह से प्रभावित करती है।
जहां रणबीर दंड संहिता की धारा 167A के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी नाकरदा काम के लिए किसी ठेकेदार द्वारा दी गई राशि स्वीकार करते हैं, वह कानूनी तौर पर सज़ा के हक़दार हैं। रिश्वत लेने से जुड़ी यह महत्वपूर्ण धारा आईपीसी में मौजूद नहीं है।
रणबीर दंड संहिता की धारा 420A के अंतर्गत सरकार, सक्षम अधिकारी या प्राधिकरण किसी भी समझौते में होने वाले छल या धोखाधड़ी की सज़ा का निर्धारण करते हैं। ऐसा स्पष्ट व्याकरण आईपीसी में नहीं है।
रणबीर दंड संहिता की धारा 204A में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई सबूत मिटाने या बिगाड़ने का दोषी है तो वह सज़ा का हकदार है। इस बारे में आईपीसी में कोई स्पष्टीकरण नहीं हैं। रणबीर दंड संहिता की धारा 21 सार्वजनिक नौकरी का दायरा व्याख्यित करती है जबकि भारतीय दंड संहिता में इसका दायरा सीमित है।
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