आज बाटला हाउस एनकाउंटर को 11 साल हो गए हैं। आइए आपको इस एनकांउटर की कहानी बताते हैं…।
इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा 19 सितंबर, 2008 की सुबह बाटला हाउस के दरवाजे के सामने से गुजरे, एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में जिसके बारे में वो सिर्फ दो बातें जानते थे, एक कि उसके सामने के दांत गायब थे और संभवतः वह भारत के सबसे खतरनाक आतंकवादी समूह से जुड़ा हुआ है।
सीढ़ियों की बेहिसाब चढ़ाई और दिल्ली की गर्मी से तंग आकर पसीने से तरबतर शर्मा ने अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट उतार दी थी। उनके पास उस व्यक्ति पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं था जिसे वह ढूंढ रहे थे, लेकिन वो गलत थे।
दिल्ली के सेशन जज राजेंद्र कुमार शास्त्री ने 25 जुलाई 2013 को इंडियन मुजाहिदीन के सरगना शहजाद अहमद को इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा की मौत के मामले में दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन इससे एक सवाल का जवाब नहीं मिला कि क्या बाटला हाउस एनकाउंटर सही था या नहीं ? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2009 में इस सवाल का जवाब दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति दी।
अहमदाबाद में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों की तरफ से किए गए 27 जुलाई के बम धमाकों के बाद कई दिनों तक राज्यों की पुलिस ने 2005 के बाद से हुए कई अनसुलझे धमाकों और हमलों के लिए एक आतंकवादी नेटवर्क को जिम्मेदार ठहराया।
मुंबई क्राइम ब्रांच ने अफजल उस्मानी को गिरफ्तार किया, जिसने गुजरात हमलों में इस्तेमाल की गई चोरी की कारों को उपलब्ध कराया था। उस्मानी ने बताया कि वह कथित तौर पर इंडियन मुजाहिदीन के सरगना क़यामुद्दीन कपाड़िया को कार सौंपता था। उस्मानी से, जांचकर्ताओं को यह भी पता चला टॉप कमांडर जिसे वह ‘बशीर’ के रूप में जानता था, उसके सामने के दांत गायब थे, वो 26 जुलाई को अहमदाबाद से जामिया नगर एक सुरक्षित घर में पहुंचे। जानकारी को अन्य पुलिसवालों के साथ शेयर नहीं किया गया।
दूसरे प्रमुख लीड के इनपुट गुजरात क्राइम ब्रांच ने हासिल किए। भरुच के रहने वाले एक व्यक्ति ने पुलिस को बताया कि अहमदाबाद में जो कार बम के रूप में इस्तेमाल की गई थी उसके यहां रहने वाले किराएदार ने उसे पार्क किया था।
उस मकान मालिक ने किराएदार के बारे में कुछ और जानकारी दी। किराएदार के फोन रिकॉर्ड्स से गुजरात पुलिस को पता लगा कि उसका सेल फोन 7 और 26 जुलाई के बीच अपराधियों द्वारा इस्तेमाल किए गए पांच में से एक था। यहां भी पुलिस को जामिया नगर से तार जुड़े होने के संकेत मिले।
जांचकर्ताओं का जल्द ही अहमदाबाद बम विस्फोट और जामिया नगर क्षेत्र के बीच कड़ियां जुड़ी होने का शक गहरा होने लगा। 19 जुलाई को, भरूच में उपयोग किए गए एक सेल फोन पर मुंबई से कॉल आया, जो कि उत्तर प्रदेश का नंबर था, इसके तुरंत बाद, को जामिया नगर के मोहम्मद आतिफ अमीन के यहां से यूपी वाले नंबर पर कॉल गया।
इन सभी जानकारी के बाद पुलिस को यह विश्वास हुआ कि आतिफ अमीन ने अपने यहां ‘बशीर’ को छुपा रखा है या फिर यह दोनों एक ही व्यक्ति हैं। इंस्पेक्टर शर्मा को इस मामले को निपटाने के लिए कहा गया।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के सब-इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा ने टाई और शर्ट पहन रखी थी और बशीर की तलाश में बटला हाउस के फ्लैट नंबर L-18 पहुंचे। कुमार ने वोडाफोन सेल्समैन बनने का नाटक करते हुए दरवाजा खटखटाया। उन्होंने अमीन की आवाज दरवाजे पर सुनी और बैकअप के लिए अपनी टीम को बुलाया।
शर्मा की तरफ से हेड कांस्टेबल बलवान सिंह वहां पहुंचे और सामने के दरवाजे पर दस्तक दी। कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। फिर, पुलिसवालों ने एक ’L’ शेप्ड गलियारे का रुख किया, जहां से दूसरा फ्लॉर खुलता था, पुलिस ने दरवाजे को अनलॉक किया। शर्मा और राणा, जैसे ही अंदर गए, उन पर फायरिंग होने लगी। जब बाकी टीम केवल छोटे हथियारों के साथ शर्मा और राणा के बैकअप के लिए गई, तो दो आतंकवादी सामने वाले दरवाजे से भाग गए।
फायरिंग में आतिफ अमीन, मोहम्मद साजिद के साथ मारा गया। मोहम्मद सैफ ने खुद को टॉयलेट में बंद कर लिया, जो पकड़ा गया। शहजाद अहमद भी भाग गया, जिसे बाद में मुंबई में गिरफ्तार किया गया।
इस मुठभेड़ के दौरान इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा शहीद हो गए और हेड कांस्टेबल बलवान सिंह घायल हो गए थे।
विशेषज्ञों ने बाद में कहा कि शर्मा की टीम ने कई तरह की गलतियां की, जो कि किसी भी सर्च ऑपरेशन के दौरान दी गई कमजोर ट्रेनिंग को दिखाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोप जैसे देशों में ऐसे ऑपरेशन पूरी ट्रेनिंग के बाद किए जाते हैं।
अब 11 सालों से भी अधिक समय बीतने के बाद भी इस मसले पर हर बार चुनावों के समय राजनीति होती है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने उत्तर भारत में सांप्रदायिक प्रतिशोध को हवा देने और मुस्लिमों की असुरक्षा पर विवाद खड़ा कर इस मसले को कई बार भुनाने की मांग की है।
गौरतलब है कि हाल ही इस विषय पर जॉन अब्राहम अभिनीत फिल्म ‘बाटला हाउस’ आई थी।
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