Babu Jagjivan Ram reached post of Deputy PM despite social humiliations and economic difficulties.
बाबू जगजीवन राम ने जाति पर कटाक्ष करते हुए एक बार कहा था ‘जाति ने हिंदुस्तान का जितना नुकसान किया है, वह सभी प्रकार के नुकसानों से ज्यादा है।’ आज 6 जुलाई को बाबू जगजीवन राम की 37वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने जीवन भर शोषित व वंचितों के हितों के लिए संघर्ष किया और इन्हीं प्रयासों से भारत के उप-प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। जगजीवन राम ने न केवल दलितों के उत्थान में योगदान दिया, बल्कि उन्होंने देश की आज़ादी में भी अहम भूमिका निभाई थी। वे डॉ. बी. आर. अंबेडकर के बाद दलित राजनीति का प्रमुख चेहरा बन गए। समाज के निचले तबके में पैदा होने बावजूद बाबू जगजीवन राम देश की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़कर गए। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
स्वतंत्रता सेनानी व प्रसिद्ध दलित नेता बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार के शाहाबाद जिले अब भोजपुर के चंदवा नामक गांव में एक दलित परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम वसंती देवी और पिता का नाम संत शोभी राम था। वे आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता शिव नारायणी मत के महंत थे। इसका प्रभाव जगजीवन राम पर बचपन से ही पड़ा। वे विद्यालय में ही थे, तब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और उनका पालन-पोषण उनकी माता जी को करना पड़ा।
अपनी माताजी के मार्गदर्शन में जगजीवन राम ने आरा टाउन स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कीं। उनका विवाह महज़ 8 साल की उम्र में हो गया था, जिससे उन पर एक अतिरिक्त जिम्मेदारी आ गईं। हालांकि, उन्होंने अपनी शिक्षा में विवाह और जाति आधारित भेदभाव को कभी हावी नहीं होने दिया।
जब वर्ष 1925 में बाबू जगजीवन राम ने आरा छात्र सम्मेलन में भाग लिया और इस दौरान उन्हें सम्मेलन को संबोधित करने का भी अवसर मिला। इसमें उनके भाषण का वहां उपस्थित लोगों पर गहरा असर पड़ा। इन लोगों में मदन मोहन मालवीय भी शामिल थे। मालवीय उनसे मिले और उन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए आमंत्रित किया। वर्ष 1926 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
जब बाबू जगजीवन ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में प्रवेश लिया तो उन्हें वहां अछूत होने का दंड भोगना पड़ा। उनके झूठ बर्तनों को मेस में बर्तन धोने वाले ने साफ करने से इंकार कर दिया। इस कारण उन्हें हिंदू विश्वविद्यालय का छात्रावास छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्हें अस्सी घाट में एक केवट के यहां शरण लेनी पड़ीं। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से आईएसएसी (इंटरमीडियट ऑफ साइंस) की परीक्षा पास कीं।
इंटरमीडियट की पढ़ाई के बाद बाबू जगजीवन राम ने कलकत्ता के प्रतिष्ठित विद्यासागर कॉलेज में प्रवेश लिया। इसके बाद वे सक्रिय तौर पर सार्वजनिक जीवन के लिए समर्पित हो गए। वहां उन्होंने कामगारों और खेतिहर मजदूरों की एक रैली निकालीं। यहीं उनका सुभाषचन्द्र बोस और बिधान चन्द्र राय जैसै लोगों के साथ संपर्क हुआ।
बाबूजी के सार्वजनिक जीवन में तब बड़ा परिवर्तन आया, जब वे वर्ष 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में सम्मिलित हुए। इस सम्मेलन में उनकी मुलाकात पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई और दोनों में घनिष्ठ संपर्क कायम हुआ। इसके बाद गांधी के साथ जाति और अछूत समस्या पर पत्र-व्यवहार भी शुरू हुआ।
शायद तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि सामाजिक अपमानों और आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद बाबू जगजीवन राम एक दिन सफल होकर देश के उप-प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचा जाएगा। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए अनेक रविदास सम्मेलन आयोजित किए थे और कलकत्ता के विभिन्न भागों में गुरु रविदास जयंती मनाई थीं। वर्ष 1934 में जगजीवन राम ने कलकत्ता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना कीं। इनके माध्यम से उन्होंने देश की आजादी में दलित वर्गों को शामिल किया।
19 अक्तूबर, 1935 में बाबूजी रांची में हेमंड आयोग के समक्ष उपस्थित हुए और उन्होंने ही पहली बार दलितों के लिए मतदान के अधिकार की मांग कीं। वर्ष 1936 में बाबू जगजीवन राम पहली बार बिहार विधान परिषद के सदस्य मनोनीत हुए। वर्ष 1937 में पूर्व मध्य शाहाबाद ग्रामीण क्षेत्र से बिहार विधान सभा के लिए चुने गए। उनका निर्वाचन निर्विरोध हुआ था। साथ ही वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में निरंतर सक्रिय रहे। जब गांधीजी द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाया जा गया, तब वे भी इसमें शामिल हुए और 10 दिसंबर 1940 को गिरफ्तार हुए। बाद में 10 अक्टूबर, 1941 तक जगजीवन राम जेल में रहे।
उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी और बिहार में इस आंदोलन की अगुवाई कीं। इस दौरान उन्हें 19 अगस्त, 1942 को फिर गिरफ्तार कर लिया गया। जब भारत की संविधान सभा का गठन किया गया तब वर्ष 1946 में वे संविधान सभा के सदस्य चुने गए। वर्ष 1946 में केंद्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में उन्होंने श्रम विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गईं।
आजादी के बाद देश में संविधान लागू होने पर बाबू जगजीवन राम वर्ष 1952 में सासाराम संसदीय क्षेत्र से प्रथम लोकसभा के सदस्य चुने गए। जगजीवन राम वर्ष 1952 से 1956 के बीच परिवहन और रेल मंत्री रहे। उन्होंने रेलमंत्री के कार्यकाल में पहली बार अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सरकारी कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का आदेश जारी कराया।
वे केंद्र सरकार में लगातार वरिष्ठ मंत्री बने रहे। वर्ष 1967-70 तक खाद्य, कृषि और सिंचाई मंत्री के रूप में हरित क्रांति का नारा दिया और देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। यही नहीं वे वर्ष 1969 से 1971 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। बतौर रक्षा मंत्री उन्होंने वर्ष 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध में देश का नेतृत्व किया। वहीं, वर्ष 1977 में बाबू जगजीवन राम आपातकाल के विरोध में कांग्रेस से अलग हो गए और प्रजातांत्रिक कांग्रेस का गठन किया।
बाबूजी ने कांग्रेस से अलग होकर जनता पार्टी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। जनता पार्टी की सरकार में भी वे रक्षा मंत्री बनाए गए। बाद में 24 जनवरी, 1979 को जगजीवन राम देश के उप-प्रधानमंत्री भी बने। इस प्रकार वर्ष 1946 से लेकर 1986 तक, 40 साल तक उन्होंने सासाराम संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर कीर्तिमान बनाया।
जगजीवन राम को लोग आम तौर पर बाबूजी के नाम से पुकारते थे। वे एक राष्ट्रीय नेता स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय के योद्धा, दलित वर्गों के समर्थक, उत्कृष्ट सांसद, सच्चे लोकतंत्रवादी, उत्कृष्ट केंद्रीय मंत्री, योग्य प्रशासक और असाधारण मेधावी वक्ता थे। ऐसे महान नेता बाबू जगजीवन राम का 6 जुलाई, 1986 को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में देहांत हुआ। इनके निधन पर तीन दिनों तक देशव्यापी शोक मनाया गया।
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