बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने जीवनकाल में कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिसकी वजह से वे हमेशा लोगों के ज़ेहन में जिंदा रहते हैं। भारतीय समाजसेवी व सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे का नाम भी उन्हीं लोगों में शुमार किया जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठरोगियों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। एक दिलचस्प बात ये है कि आमटे ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था। आज 9 फ़रवरी को बाबा आमटे की 15वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में अनसुनी बातें…
बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर, 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले स्थित हिंगणघाट गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिताजी देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल थे। बरोड़ा से पांच-छह मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। बाबा आमटे बचपन से ही समाज में लोगों के बीच व्याप्त असमानता से परिचित थे। उनका पूरा नाम डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे था, लेकिन लोग उन्हें प्यार से बाबा आमटे कहकर बुलाते थे।
एक धनी परिवार में जन्म लेने और उसी तरीके से परवरिश के बाद भी उनका मन समाज में व्याप्त असमानता को लेकर सवाल करता था। वे इसे दूर करने और गरीब व दबे कुचले लोगों के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने की बचपन में ही ठान चुके थे।
बाबा आमटे का जीवन उस वक्त पूरी तरह बदल गया, जब उन्होंने एक कुष्ठरोगी और निरंतर बढ़ती उसकी बीमारी को देखा। इस घटना ने उन्हें जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रेरित किया। उन्होंने केवल 35 वर्ष की उम्र में कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए आनंदवन नामक संस्था की स्थापना की, जिसने आगे चलकर ऐसे हजारों लोगों को मदद की। आमटे ने गरीबों और बेसहारा लोगों को मदद मुहैया कराई और अनेक आश्रमों की स्थापना भी की।
बाबा आमटे राष्ट्रीय एकता में यकीन रखने वाली शख्सियत थे। उन्होंने साल 1985 में भारत यात्रा शुरू की और 72 वर्ष की उम्र में कन्याकुमारी से कश्मीर तक का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने 3000 मील से अधिक दूरी की यात्रा की और लोगों को राष्ट्रीय एकजुटता के लिए प्रेरित किया। बाबा आमटे को पूरे जीवन के दौरान कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया। उनके द्वारा किए गए सामाजिक सेवा कार्यों के लिए वर्ष 1971 मे भारत सरकार ने उन्हें को देश के चौथे सर्वोच्च पुरस्कार ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया था।
वर्ष 1985 में आमटे को ‘रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड’ और साल 1986 में देश के दूसरे सर्वोच्च अवॉर्ड ‘पद्म विभूषण’ से नवाज़ा गया। वर्ष 1988 में बाबा आमटे को मानवाधिकारों के क्षेत्र में किए उल्लेखनीय कार्यों के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार’ से नवाजा गया। वर्ष 1990 में उन्हें प्रतिष्ठित ‘टेम्पलटन अवॉर्ड’ और साल 1999 में ‘गांधी शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया। 9 फ़रवरी, 2008 को उनका महाराष्ट्र के आनंदवन में 93 साल की उम्र में निधन हो गया।
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