राजस्थान के विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। कांग्रेस सरकार बनाने का यह सुनहरा मौका किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती है। इसके लिए चाहे उसे सीपी जोशी जो मात्र 1 वोट से हारे थे उन्हें ही क्यों ना चुनाव लड़वाना पड़े या फिर एक बार फिर अशोक गहलोत को सरदारपुरा से मैदान में उतारना पड़े।
सरदारपुरा के सरदार हैं गहलोत
जोधपुर की सरदारपुरा विधानसभा सीट पर अशोक गहलोत की ऐसी हवा है कि उनको सामने देखकर बीजेपी उम्मीदवार अपनी हार खुद ही मान लेता है। गहलोत इस सीट से पिछले 20 सालों से चुन कर आ रहे हैं।
साल 1998 में मानसिंह देवड़ा ने सरदारपुरा सीट गहलोत को दी जिसके बाद गहलोत पहली बार वहां से जीते तब से लेकर अब तक लगातार साल 2003, 2008 और 2013 में चुनाव जीतते आ रहे हैं।
मोदी लहर के बावजूद सरदारपुरा सीट पर थी गहलोत लहर
साल 2013 के चुनावों में पूरे देश में मोदी लहर होने के बाद भी गहलोत अपनी सीट से चुनाव जीते। इसके अलावा वो राज्य के दो बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। सरदारपुरा सीट पर माली वोट एकतरफा गहलोत के साथ हैं।
गांधी परिवार से नजदीकी ने पहुंचाया केंद्र तक
गहलोत ने जिस तेजी से अपना राजनीतिक उत्थान किया है उतनी तेजी से कोई भी राजनेता आज तक नहीं चला। इंदिरा गांधी के समय से गहलोत गांधी परिवार के करीबी रहे हैं। आगे चलकर गहलोत को राज्य के अलावा कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव पद भी दिया गया। आज वो हर जगह राहुल गांधी के साथ दिखाई देते हैं। केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार ने गहलोत को कैबिनेट में जगह दी जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गहलोत का इतिहास कर रहा है सीएम की दावेदारी
राजस्थान विधानसभा चुनावों में इस बार सीएम पद को लेकर संशय अभी बना हुआ है। लेकिन अशोक गहलोत का राजनीतिक इतिहास उनके सीएम बनने की मजबूत दावेदारी पेश करता है। गहलोत लोगों के बीच आज भी पहली पसंद बने हुए हैं। अगर कांग्रेस इस बार सरकार में आती है तो गहलोत के फिर से सीएम बनने में कोई दो राय नहीं है क्योंकि उन्हें आज भी राजनीति का जादूगर माना जाता है।
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