वर्ष 1942 में जब अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए देश में कई तरह के आंदोलन चल रहे थे, उस वक्त ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ देश के युवाओं को एकजुट कर आज़ादी का रास्ता तैयार कर रहा था। 9 अगस्त, 1942 के दिन मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में एक महिला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराती है और आजादी के नारे लगाती है। यह महिला अरुणा आसफ अली थी, जिनकी 16 जुलाई को 114वीं जयंती है। इस अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
क्रांतिकारी महिला अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई, 1909 को हरियाणा के कालका में एक हिन्दू बंगाली परिवार में हुआ था। घरवालों ने नाम रखा अरुणा गांगुली। पिता का नैनीताल में बिजनेस होने के कारण अरुणा की शुरुआती पढ़ाई उत्तराखंड के नैनीताल में हुई, जिसके बाद कॉलेज के लिए वो लाहौर चली गईं। अरुणा पढ़ाई पूरी करने के बाद कोलकाता के गोखले मेमोरियल स्कूल में पढ़ाने लगीं।
शिक्षक रहते हुए अरुणा गांगुली की मुलाकात कांग्रेसी नेता आसफ अली से हुईं। अरुणा ने 23 साल बड़े आसफ अली से वर्ष 1928 में अपने माता-पिता की मर्जी के बिना शादी कर लीं। उस जमाने में दूसरे धर्म और उम्र में इतने बड़े आसफ अली से शादी करना अरुणा गांगुली के लिए आसान नहीं रहा। समाज की किसी भी बात का अरुणा को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। मालूम हो कि आसफ अली वो ही वकील थे, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई के वक्त असेंबली बम कांड में गिरफ्तार हुए भगत सिंह का केस लड़ा था।
वर्ष 1930 में ‘नमक सत्याग्रह’ के दौरान अरुणा आसफ अली ने सार्वजनिक तौर पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खूब सभाएं की और विरोध प्रदर्शन किए। वर्ष 1932 में तिहाड़ जेल में डाला गया तो वहां भी भूख हड़ताल कर कैदियों को मिलने वाले अधिकारों की लड़ाई लड़ीं। आजादी के बाद वर्ष 1948 में अरुणा और समाजवादियों ने मिलकर एक सोशलिस्ट पार्टी बनाईं। वर्षा 1955 में यही पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी का अंग बन गईं। आगे चलकर वर्ष 1958 में अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली मेयर बनीं।
वर्ष 1975 में अरुणा को ‘लेनिन शांति पुरस्कार’ तो वर्ष 1991 में जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1998 में अरुणा आसफ अली को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया। 29 जुलाई, 1996 को अरुणा आसफ अली दुनिया से रूखसत हो गईं।
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