पूर्व भारतीय तैराक और इंग्लिश चैनल को तैरकर पार करने वाली पहली एशियाई महिला आरती साहा की आज 29वीं डेथ एनिवर्सरी है। उन्हें ‘हिन्दुस्तानी जलपरी’ भी कहा जाता है। वर्ष 1960 में आरती भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनी, जिसे भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ दिया गया। उसे इंग्लिश चैनल को पार करने की प्रेरणा भारतीय तैराक मिहिर सेन से मिली थी। इस अवसर पर जानिए पूर्व भारतीय तैराक आरती साहा के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
आरती का जन्म 24 सितंबर, 1940 को पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उसके पिता पंचगोपाल साहा सशस्त्र बल में एक साधारण कर्मचारी थे। जब वह ढाई साल की थी तब उनकी मां का देहांत हो गया। उनके बड़े भाई और छोटी बहन भारती का पालन-पोषण मामा के घर हुआ, जबकि उनकी परवरिश उनकी दादी ने की।
उनके पिता ने बेटी की तैराकी में रुचि देखते हुए उन्होंने चार साल की उम्र में हाटखोला स्विमिंग क्लब में भर्ती कराया। वर्ष 1946 में पांच साल की उम्र में उन्होंने शैलेंद्र मेमोरियल तैराकी प्रतियोगिता में 110 गज फ्रीस्टाइल में स्वर्ण जीता। यह उनके तैराकी करियर की शुरुआती सफलता थी।
वर्ष 1946 और 1956 के बीच आरती ने कई तैराकी प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उसने पश्चिम बंगाल में 22 राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं जीती। इनमें प्रमुख रूप से 100 मीटर फ्रीस्टाइल, 100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक और 200 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक तैराकी शामिल थी। आरती ने वर्ष 1948 में मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भाग लिया।
उन्होंने 100 मीटर फ्रीस्टाइल और 200 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक में रजत जीता और 200 मीटर फ्रीस्टाइल में कांस्य जीता। वह बॉम्बे की डॉली नजीर के बाद दूसरे स्थान पर आईं। उन्होंने वर्ष 1949 में अखिल भारतीय रिकॉर्ड बनाया। वर्ष 1951 में पश्चिम बंगाल राज्य में हुई तैराकी प्रतियोगिता में आरती ने 100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक तैराकी में 1 मिनट 37.6 सेकंड का समय निकाला और हम वतन डॉली नजीर के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ा।
इसी प्रतियोगिता में आरती साहा ने 100 मीटर फ़्रीस्टाइल, 200 मीटर फ़्रीस्टाइल और 100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक में राज्य-स्तरीय नए रिकॉर्ड बनाए। उन्होंने वर्ष 1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 200 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक इवेंट में भाग लिया और हीट्स में 3 मिनट 40.8 सेकंड का समय निकाला।
आरती साहा ने इंग्लिश चैनल को पार करने के लिए कड़ी मेहनत की और 24 जुलाई 1959 को वह अपने मैनेजर डॉ. अरुण गुप्ता के साथ इंग्लैंड के लिए रवाना हुईं। आरती ने वहां 13 अगस्त से इंग्लिश चैनल में अपना अंतिम अभ्यास शुरू किया। 29 सितंबर, 1959 को अपने दूसरे प्रयास में इंग्लिश चैनल के केप ग्रिस नेज़, फ्रांस से तैरना शुरू किया।
वह लगातार 16 घंटे और 20 मिनट तक तैरती रही और बीच में कड़ी लहरों से जूझती हुई सैंडगेट, इंग्लैंड तक की 42 मील लंबी दूरी तय की और भारतीय ध्वज फहराया। आरती साहा ने महज 19 साल की कम उम्र में इंग्लिश चैनल को पार करके दुनिया को हैरत में डाल दिया।
वर्ष 1960 में आरती साहा को भारत सरकार ने ‘पद्मश्री पुरस्कार’ से सम्मानित किया। उनकी सफलता पर भारतीय डाक ने उनके जीवन से महिलाओं को प्रेरित करने के लिए वर्ष 1998 में एक डाक टिकट भी जारी किया।
इंग्लिश चैनल पार करने के बाद आरती ने सिटी कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की थी। वर्ष 1959 में ही उन्होंने अपने मैनेजर डॉ. अरुण गुप्ता से कोर्ट मैरिज कर ली। उनके एक बेटी थी, जिसका नाम अर्चना था।
आरती साहा गुप्ता को 4 अगस्त पीलिया और इन्सेफेलाइटिस होने पर कोलकाता में एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती करवाया गया। जहां 19 दिनों तक जूझने के बाद 23 अगस्त, 1994 को 53 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।
Read: मिहिर सेन ने तैराकी की दुनिया में जो कीर्तिमान स्थापित किए वो आज भी हैं प्रेरणास्त्रोत
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