सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे राज्य में लोकायुक्त कानून के कार्यवाही के लिए महाराष्ट्र में 30 जनवरी से उपवास करने के लिए तैयार हैं।
एएनआई के मुताबिक मांग को मनाने के लिए अन्ना हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धि जाएंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक पत्र भी लिखा था जिसमें केवल आश्वासन देने के लिए महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की गई थी लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया।
हजारे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के अलावा केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त स्थापित करने के लिए दबाव डाल रहे हैं जिससे कृषि संकट को दूर किया जा सके।
हजारे द्वारा 2011 का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भाग लिया गया था जिसका उद्देश्य यूपीए शासन के दौरान बढ़ रहे भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर था। इस आंदोलन को लाखों लोगों का सपोर्ट मिला।
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे कुछ मुख्य आयोजकों ने बाद में आम आदमी पार्टी का गठन किया। जिनकी फिलहाल दिल्ली में सरकार है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उस वक्त हजारे के प्रमुख सहयोगियों में से एक थे।
अन्ना हजारे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के ‘झूठ’ पर भरोसा करना गलत था। अन्ना हजारे ने इससे पहले इस साल रामलीला में भी अनशन किया था। जिसका प्रभाव काफी कम दिखाई दिया। लोगों की भीड़ भी वहां दिखाई नहीं दी।
कुछ लोगों का मानना है कि अन्ना हजारे का प्रभाव कम होता जा रहा है। इसी साल जब रामलीला मैदान में वो अनशन पर बैठे तो उनसे पूछा भी गया कि भीड़ क्यों नहीं है? इसके जवाब में हजारे ने कहा था कि सरकार लोगों को अनशन में शामिल नहीं होने दे रही है। बसों को रोका जा रहा है। किसान आ रहे थे लेकिन बसों को यहां आने नहीं दिया जा रहा है। इस बार अन्ना हजारे अपने गांव से इस विरोध की शुरूआत करने जा रहे हैं।
कई विद्वानों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल के अलग होने के बाद इस आंदोलन की हवा में कमी आई है। अरविंद केजरीवाल उस वक्त स्टेज को बांधे रखते थे। सरकार से कड़े सवाल पूछते थे। मीडिया से भी अच्छे से बात करते थे। अब दिल्ली में खुद अरविंद केजरीवाल की सरकार है। शायद जो लाखों लोग भ्रष्टाचार आंदोलन में जुड़े थे उनका रूझान अन्ना हजारे की तरफ कम होता जा रहा है।
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