बॉलीवुड सिनेमा को क्षेत्रियों बोलियों की महक से रू-ब-रू कराने वाले अज़ीम फ़नकार, शायर व अपने समय के मशहूर गीतकार अंजान की 28 अक्टूबर को 93वीं बर्थ एनिवर्सरी है। अंजान का असल नाम लालजी पांडेय था। इनके पिता का नाम शिवनाथ पांडेय और माता का नाम इंदिरा देवी था। तंगहाली में बीएचयू से एम.कॉम करने वाले लालजी को पढ़ाई के दौरान ही कविता और गीत लिखने का शौक लग गया था। धीरे-धीरे वो अपनी शायरी के कारण दोस्तों में काफ़ी लोकप्रिय हो गए और दोस्तों ने ही उन्हें ‘अंजान’ नाम दिया था। इन्हें गीतकार बनने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। इस खास अवसर पर जानिए अंजान के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
गीतकार अंजान का जन्म उत्तर प्रदेश में बनारस शहर के पास ओदार गांव में 28 अक्टूबर, 1930 को हुआ था।कॉलेज के दिनों में युवा अंजान बनारस में होने वाले लगभग हर कवि सम्मेलनों-मुशायरों में भाग लिया करते थे। एक बार प्रसिद्ध गायक मुकेश बनारस आए हुए थे। अंजान के एक मित्र शशी बाबू (डी पेरिस होटल के मालिक) क्लार्क होटल में एक संगीत कार्यक्रम में अपने साथ समीर को भी लेकर गए थे। शशी बाबू ने यहां मुकेश से उनकी मुलाक़ात करवाई। मुकेश ने जब कविता सुनी तो वह इस युवा शायर से काफ़ी प्रभावित हुए। उन्होंने उसी वक़्त अंजान को हिंदी फ़िल्मों के लिए गीत लिखने की सलाह दीं। हालांकि, उस दौरान अस्थमा बीमारी से जूझ रहे अंजान ने मुकेश की सलाह पर अमल नहीं किया।
लेकिन एक दिन इन्हें इस बीमारी की वजह से ही बनारस को छोड़कर मुंबई जाना पड़ा था। अंजान को डॉक्टरों ने अस्थमा के ख़तरों को देखते हुए कहा कि अगर ज़िंदा रहना है तो आपको यह शहर हर हाल में जल्द छोड़ना होगा। जब अस्थमा बहुत बढ़ गया और इन्हें काफ़ी तकलीफ़ होने लगी थी। तब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी कि अगर किसी सागर के तट पर रहोगे, तभी अस्थमा कंट्रोल हो पाएगा। फ़िर वे अपनी बीमारी और बेहतर आबो-हवा की ख़ातिर सन 1953 में मुंबई आ गए। यहां आकर इन्होंने मुकेश से मुलाक़ात की।
जिसके बाद मुकेश ने इन्हें डायरेक्टर प्रेमनाथ से मिलवाया, जो अपनी फ़िल्म के लिए किसी नए गीतकार की तलाश में थे। उन्होंने अंजान को अपनी फिल्म ‘प्रिजनर ऑफ गोलकोंडा’ के लिए गाने लिखने का ऑफर दिया। लेकिन अपनी पहली फिल्म के लिए लिखे गाने ख़ास चल नहीं पाए। इस फिल्म के गाने लिखने पर उन्हें 500 रुपये बतौर मेहनताना मिला था।
अपने करियर की शुरुआत में वे फिल्मों के म्यूजिक डायरेक्टर्स के पास जाया करते थे, लेकिन काम नहीं मिल पा रहा था। यहां तक कि उनके पास रहने की जगह भी नहीं थी। कुछ दिनों तक वे अपने चार दोस्तों के साथ एरोमा गेस्ट हाउस का एक रूम लेकर रहे थे। बाद में उनके दोस्त भी चले गए जिससे अंजान अकेले रह गए थे। वे काफ़ी समय तक लोकल ट्रेनों में रात गुजारते रहे। इसके लिए इन्होंने कम पैसे में रेलवे का पास बनवा रखा था।
एक समय वे अपार्टमेंट्स की सीढ़ियों के नीचे अपना बिस्तर लगाकर रात गुजारा करते थे। मुकेश से मिलने के बाद अंजान को पहली फ़िल्म में काम मिला, लेकिन उन्हें शोहरत काफ़ी देरी से मिली थी। इन्हें सफ़लता की ऊंचाइयों पर अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म ‘डॉन ने पहुंचाया था।
अंजान ने करियर में अपने समय के लगभग सभी दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया था, लेकिन कल्याणजी-आनंदजी के साथ इनकी जोड़ी खूब जमीं। बनारस से होने के कारण अमिताभ बच्चन से भी इनका एक ख़ास रिश्ता बन गया था। इन्होंने अमिताभ की कई फ़िल्मों के लिए गाने लिखे। जिनमें ‘डॉन’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘शराबी’, ‘नमक हलाल’ और ‘याराना’ जैसी बड़ी हिट फिल्में शामिल हैं।
अंजान के लिखे यादगार गीतों में फिल्म ‘डॉन’ का गीत ‘ओ खाइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला’, ‘मुझे नौ लखा मंगा दे रे’, ‘तेरे जैसा यार कहां’, ‘छू कर मेरे मन को’, ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है’ ‘इंतहा हो गई इंतज़ार की’, और ‘गोरी हैं कलाईयां तू ला दे मुझे हरी हरी चूड़ियां’, जैसे यादगार गीत हैं।
करीब 300 फिल्मों में 1500 गीत लिखने वाले अंजान को एक बात का हमेशा मलाल रहा। एक से बढ़कर एक सदाबहार हिट नग़मे लिखने के बावजूद इन्हें कभी फ़िल्म-फेयर अवॉर्ड नहीं मिला। 13 सितंबर, 1997 को 66 वर्ष की उम्र में गीतकार अंजान इस दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन गीतों के रूप में इनका बेशक़ीमती ख़ज़ाना आज भी लोगों की जुबां पर ताज़ा है। अंजान के परिवार में दो बेटे शेखर पांडेय व शीतला पांडेय (गीतकार समीर) हैं। उनके छोटे बेटे समीर भी गीतकार है और सबसे ज्यादा गाने लिखने के मामले में ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
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