कवि व मशहूर गीतकार आनंद बख्शी उन नग़्मा-निगारों में से एक थे, जो बड़ी प्रतियोगिता और समय की कसौटी पर खरे उतरे। लगभग चार दशक में 4 हजार से ज्यादा गीत लिखने वाले बख्शी साहब के हर एक गाने में नयापन झलकता था। उन्हें चालीस बार फिल्मफेयर ‘बेस्ट लिरिसिस्ट’ अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था और चार बार उन्होंने यह पुरस्कार जीता। इसके अलावा उन्होंने आईफा अवॉर्ड भी अपने नाम किया था। आज 21 जुलाई को आनंद बख्शी साहब की 93वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस खास अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…
चांद सा कोई चेहरा ना पहलू में हो
तो चांदनी का मज़ा नहीं आता
जाम पीकर शराबी ना गिर जाए तो
मयकशी का मज़ा नहीं आता
गीतकार आनंद बख्शी का जन्म 21 जुलाई, 1930 को अविभाजित भारत के रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ था। बख्शी बचपन से फिल्मों के काफी शौकीन थे और हमेशा से ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शामिल होने के लिए मुंबई आने का सपना देखा करते थे। युवावस्था में उनका सपना था कि वे एक प्लेबैक सिंगर बने और लोग उनके काम को पसंद करे, लेकिन वक्त के साथ वो एक नामी गीतकार बनकर उभरे।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शामिल होने के लिए आनंद बख्शी इतने भावुक थे कि वे अपने घर से भाग गए थे और मुंबई पहुंचने के सपनों के साथ नौसेना में शामिल हो गए। लेकिन कराची में नौसेना का विद्रोह छिड़ा और वहां नेवी में उनका करियर खत्म हो गया। वर्ष 1947 में भारत की कुल भूमि का कुछ क्षेत्र एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान के रूप में विभाजित हुआ, जिसके बाद बख्शी का परिवार पाकिस्तान छोड़कर लखनऊ लौट आया। यहां उन्होंने टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में अपना काम जारी रखा। हालांकि, वह अभी भी मुंबई जाने का सपना आंखों में लिए हुए थे।
आनंद बख्शी उन कुछ कवियों में से एक थे, जिन्होंने कई तरीकों से प्यार का इजहार किया था। फिल्म ‘अमर प्रेम’ के गाने “चिंगारी कोई भड़के” हो या ‘दिल तो पागल है’ का गाना “भोली सी सूरत”। उन्होंने फिल्म ‘डर’ के गाने “तू मेरे सामने” के जरिए एक रोमांटिक रिश्ते को भी बेहतरीन तरीके से बयां किया। बक्शी साहब के करियर का बेहतरीन दौर वो था, जब उन्होंने सुप्रसिद्ध संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आरडी बर्मन की धुनों पर ‘फ़र्ज़’ (1967), ‘दो रास्ते’ (1969), ‘बॉबी’ (1973), ‘अमर अकबर एंथनी’ (1977), ‘एक दूजे के लिए’ (1981), ‘कटी पतंग’ (1970), ‘अमर प्रेम’ (1971) और ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ (1971) जैसी फिल्मों के लिए मास्टरपीस गाने लिखे थे।
फिल्म ‘अमर प्रेम’ में आनंद बख्शी के काम को विशेष रूप से काफी पसंद किया गया था। शक्ति सामंत ने बख्शी को एक ‘कवि सम्मेलन’ में ‘चिंगारी कोई भड़के’ सुनाया और इसे ख़ासतौर पर फिल्म में शामिल किया। इस फिल्म की दूसरे माइलस्टोन में ‘बड़ा नटखट है’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’, ‘ये क्या हुआ’ और ‘रैना बीती जाए’ जैसे गाने शामिल हैं। उन्होंने राज कपूर की फिल्म ‘बॉबी’ और ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, सुभाष घई की फिल्म ‘कर्ज़’ (1980), ‘हीरो’ (1983), ‘कर्मा’ (1986), ‘राम लखन’ (1989), ‘सौदागर’ (1991), ‘खलनायक’ (1993), ‘ताल’ (1999) और ‘यादें’ (2001) और यश चोपड़ा की फिल्म ‘चांदनी’ (1989), ‘लम्हे’ (1991), ‘डर’ (1993), ‘दिल तो पागल है’ (1997) आदि के लिए कई हिट गाने लिखे।
गीतकार आनंद बख्शी ने अपने जीवन में चार बार ‘सर्वश्रेष्ठ गीतकार’ का फिल्मफेयर अवॉर्ड था। इसमें ‘अपनापन’ (1977) (आदमी मुसाफिर है), ‘एक दूजे के लिए’ (तेरे मेरे बीच में) ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ (1995, तुझे देखा तो ये जाना सनम) और ‘ताल’ (इश्क बिना) जैसे एवरग्रीन गाने शामिल हैं।
30 मार्च, 2002 को आनंद बख्शी साहब इस दुनिया को अलविदा कह गए। इस दौरान उन्होंने इंडस्ट्री में अपने 40 साल भी पूरे किए। दुनिया से रूखसत होने से पहले वे गीत ही लिखते रहे, बख्शी गीतों के शब्दों में खोए रहते थे।
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