An accident with Anandi Gopal Joshi at the age of 14 changed her life.
भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी की आज 31 मार्च को 158वीं जयंती है। उनकी यह उपलब्धि हासिल करने की कहानी हर किसी के दिल को छू लेने वाली है। देश की पहली महिला डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त करने में आनंदी का त्याग और संघर्ष भी शामिल हैं। वे अपनी छोटी सी उम्र में देश की कितनी ही लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई थीं। इस ख़ास अवसर पर जानिए भारत की प्रथम महिला चिकित्सक आनंदी गोपाल जोशी के जीवन और उनके संघर्ष के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
आनंदी गोपाल जोशी का असल नाम यमुना था। उनका जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र के कल्याण में हुआ था। आनंदी के घर में लड़कियों की पढ़ाई को लेकर अच्छा माहौल नहीं था, जिसके कारण उनकी बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी। उनकी मात्र 9 साल की उम्र में गोपालराव जोशी से शादी करा दी गई थी, जो कि विधुर होने के साथ ही उम्र में आनंदी से करीब 20 साल बड़े थे। शादी के बाद यमुना के पति ने उनका नाम बदलकर ‘आनंदी’ कर दिया। गोपालराव जोशी कल्याण में पोस्टल क्लर्क हुआ करते थे।
गोपालराव प्रगतिशील विचार रखने वाले और महिला शिक्षा का पूर्ण समर्थन करने वाले इंसान थे। दरअसल, शादी के बाद आनंदी की जिंदगी में जो बदलाव आए वो गोपालराव की वजह से ही आए। उन्होंने ने शादी के बाद अपनी पत्नी को पढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किए और उस जमाने में महिला डॉक्टर बनाया जब कोई भारतीय महिला डॉक्टर बनने की कल्पना मात्र तक नहीं करती थी।
शादी के आनंदी गोपाल जोशी ने 14 साल की उम्र में एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। आनंदी का बच्चा मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण पैदा होने के कुछ समय बाद ही इस दुनिया से चल बसा। इस हादसे के बाद आनंदी को गहरा सदमा लगा। आगे चलकर उन्होंने जोश और जुनून के साथ डॉक्टर बनने की ठान ली। धीरे-धीरे आनंदी की मेडिकल में दिलचस्पी बढ़ने लगी और 16 साल की उम्र में अपने पति के प्रयासों से वो अमेरिका की पेन्सिलवेनिया वूमेंस मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई करने जा पहुंचीं।
आनंदी गोपाल जोशी पेन्सिलवेनिया वूमेंस कॉलेज से अपना मेडिकल कोर्स पूरा कर वर्ष 1886 में भारत की पहली महिला डॉक्टर बनकर लौटीं। जिस समय आनंदी भारत वापस आईं, उस समय उनकी उम्र केवल 19 साल थी। भारत आकर आनंदी का सपना महिलाओं के लिए एक शानदार मेडिकल कॉलेज शुरू करने का था, लेकिन उनका यह सपना आखिर सपना ही रह गया।
आनंदी गोपाल जोशी की किस्मत ने ज़िंदगी के किसी भी पड़ाव पर उनका साथ नहीं दिया। जब वो डॉक्टर बनकर भारत लौटी तो उनकी लगातार सेहत खराब रहने लगीं। आनंदी टीबी से पीड़ित हो गई थी और 26 फ़रवरी, 1887 को महज़ 22 साल की बहुत छोटी उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
आनंदी गोपाल जोशी की मौत के बाद उनके जीवन पर एक उपन्यास ‘आनंदी गोपाल’ लिखा गया जो कि मूल रूप से मराठी भाषा में है, जिसका आगे चलकर कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। उनकी बायोग्राफी पर ‘आनंदी गोपाल’ नाम का टीवी सीरियल भी बन चुका है।
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