ऑटोमोबाइल के इतिहास में लग्ज़री और परफॉर्मेंस की जब भी बात होगी एक कार ब्रांड का जरूर नाम लिया जाएगा। वो है Mercedes-Benz (मर्सिडीज बेंज)। जी हां, दुनिया के सबसे प्रीमियम ऑटोमोबाइल ब्रांड्स में शुमार मर्सिडीज बेंज आज पूरे 95 साल की हो गई है। बेंज का जन्म 28 जून 1926 को हुआ था। आइए, एक जानिए इस लग्जरी कार कंपनी से जुड़े कुछ रोचक किस्से और समझिए इस कार का मार्केट में आज भी दबदबा क्यों है?
इतने सालों में तकनीक में कई बदलाव हुए और बाजार में कई कार कंपनियां उतरी मगर इस कार की नजाकत आज भी वैसी ही बनी हुई है।
19वीं सदी के आखिर में लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर घोड़ागाड़ी काम में लिया करते थे, इसके बाद हमारे सामने साइकिल आई। इन सब के बीच दो इंज़ीनियर जीवाश्म ईंधन से चलने वाली एक गाड़ी बनाने के बारे में सोच रहे थे। एक था गॉटलिब डेमलर और दूसरे कार्ल बेंज थे। जर्मनी में रहते हुए दोनों एक दूसरे से कभी मिले नहीं थे। डेमलर गैसोलीन से चलने वाला इंजन बना रहे थे तो बेंज एक चार पहिये वाले ऑटोमोबाइल इंजन को बनाने में लगे हुए थे।
बेंज ने 1883 में Benz & Co Rheinische Gasmotorenfabrik नाम की कंपनी खोल ली और 1886 में मोटरवैगन के नाम से अपना इंजन पेटेंट करवा लिया। बेंज ही दुनिया का पहला इंटरनल कंबशन इंजन बनाने वाले आदमी थे।
वहीं, दूसरी तरफ डेमलर और उनके दोस्त विल्हेम मेबाच ने 1890 में Daimler-Motoren-Gesellschaft (DMG) कंपनी खोल ली। डेमलर की कंपनी ने ऐसा इंजन बनाया जिसको मोटरसाइकिल, नाव या किसी भी ट्रॉली से जोड़कर चला सकते हैं। कुछ दिनों बाद डेमलर की मौत हो गई कंपनी उनके दोस्त मेबाच संभालते रहे।
दोनों कंपनियां बाजार में अपनी-अपनी कार उतार रही थी, इसी दौरान प्रथम विश्व युद्ध का बिगुल बज गया जिसका असर कंपनियों के प्रोडक्शन पर भी हुआ। कंपनियों को जंग में सेना के लिए काम करना पड़ा। बेंज और मेबाच दोनों कंपनियां घाटे में जाना शुरू हो गई।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद दोनों कंपनियों ने घाटे से निकलने के लिए एक होने का फैसला किया और Daimler-Benz कंपनी बनी। इसके बाद साल 1926 का आया और दोनों कंपनियों ने मिलकर कार बनाई जिसने इतिहास लिख दिया। Mercedes-Benz W15 अस्तित्व में आई और कंपनी ने ऐसी 7000 गाडियाँ बेची।
देखते ही देखते Mercedes-Benz दुनिया की सबसे बड़ी कार बनाने वाली कंपनी बन गई। कंपनी ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर की कार तक डिजाइन की।
कंपनी हर दिन आगे बढ़ती जा रही थी। कंपनी ने रेसिंग की दुनिया में कदम रखने का सोचा और एक हाईस्पीड कार बनाने का आईडिया सामने रखा जिसके लिए उन्होंने गाड़ी के इंजन को आगे की तरफ लगाने के बारे में सोचा। इस तरह कंपनी ने दुनिया की पहली 36 हॉर्स पावर वाली कार बाजार में उतारी।
मर्सिडीज बेंज ने 1910 में अपना लोगो जारी किया। जिसका मतलब है ‘पानी, जमीन और हवा में मोबिलिटी’। पानी और हवा इसलिए क्योंकि मर्सिडीज ने सालों पहले सबमरीन और एयरक्राफ्ट के इंजन भी बनाए हैं।
जर्मनी के बिजनेसमैन एमिल जेलेनिक की बेटी थी मर्सिडीज जेलिनेक। एमिल हमेशा से ही कारों से शौकीन थे। वो कार रेस में जाया करते थे। एक बार उन्होंने एक कार कंपनी से एक साथ 36 कारें खरीदने के लिए कहा जिसके बदले कंपनी को एक शर्त पूरी करनी थी। एमिल ने कहा कि कार कंपनी अपना नाम बदलकर मेरी बेटी के नाम पर रखेगी। इस तरह दुनिया की सबसे पुरानी और बड़ी कार कंपनी ने अपने नाम के आगे मर्सिडीज जोड़ा।
भारत में मर्सिडीज बेंज ने 1994 में एंट्री लेते हुए महाराष्ट्र के पुणे में पहला मैनुफैक्चरिंग प्लांट लगाया। वहीं मर्सिडीज की पहली कार Mercedes-Benz W124 को 1995 में इंडिया में लांच किया गया। मर्सिडीज बेंज की कारें आज भी दुनिया के हर हिस्से में पूरे धड़ल्ले से बिकती है। इसीलिए इसे आइकॉनिक कार कहा जाता है।
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