लोकसभा चुनाव की चौथे चरण की वोटिंग से पहले दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपना चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिया है।
अन्य राजनैतिक दलों की तरह आप नेता अरविंद केजरीवाल ने भी जनता से कई वादे किए हैं। इन वादों के बीच एक वादा जिसको पूरा करने की जंग केजरीवाल की पार्टी काफी लंबे समय से लड़ रही है या यूं कहे इस बार आप नेता इसी वादे पर वोट मांग रहे हैं !
वो वादा है दिल्ली को पूर्णराज्य बनाना। जी हां, केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली के लोगों के साथ सेकंड क्लास सिटीजन की तरह बर्ताव किया जा रहा है, हम कुछ भी करेंगे, दिल्ली को पूर्णराज्य बनाकर रहेंगे.”
ऐसे में एक सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्यों केजरिवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने के लिए इतने उतावले और बैचेन है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से ऐसा क्या हो जाएगा? दिल्ली के लोगों को उससे क्या फायदा मिलेगा? आइए इस मांग की तह तक जाकर इसको समझते हैं और जानते हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का क्या मतलब है और क्यों अभी तक दिल्ली का यह मसला अधर में लटका है ?
दिल्ली क्या है?
दिल्ली हमारे देश की राजधानी है यह हम सभी जानते हैं लेकिन तकनीकी तौर पर देखा जाए तो क्या दिल्ली एक शहर है, क्या दिल्ली एक राज्य है या फिर एक यूनियन टेरिटरी है ? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली शहर, राजधानी और राज्य के अलावा यह एक केंद्र शासित प्रदेश यानि यूनियन टेरिटरी है। दिल्ली को 1992 में एनसीटी का टैग मिला था।
दिल्ली की मौजूदा व्यवस्था
दिल्ली में 11 जिले, 5 नगर निगम और 300 गांव हैं। गांवों के लिए यहां अलग से पंचायती राज व्यवस्था नहीं है। नगर निगम शहर और गांव दोनों को ऑपेरट करते हैं और केंद्र को सीधा रिपोर्ट करते हैं।
फिर ये एनसीआर (NCR) क्या है?
यह एक व्यवस्था है जिसके मुताबिक सालों पहले जब शहरों का फैलाव हो रहा था और दिल्ली के पास गुरुग्राम, फरीदाबाद और गाजियाबाद जैसे टाउन विकसित हो रहे थे। तब इन सभी टाउन की कोऑर्डिनेट प्लानिंग की जरूरत महसूस की गई और पूरे क्षेत्र के विकास के लिए 1985 में इसे लागू किया गया। एनसीआर क्षेत्र में 24 जिले आते हैं।
कैसे बना राज्य से यूनियन टेरिटरी
आजादी के बाद भारत के राज्यों को पार्ट-ए, पार्ट-बी और पार्ट-सी कैटेगरी में बांटा गया, जहां दिल्ली को पार्ट-सी में रखा गया। 1956 तक चली इस व्यवस्था के अनुसार तब तक दिल्ली में विधानसभा और खुद का मुख्यमंत्री हुआ करता था। 1956 में स्टेट रीऑर्गनाइजेशन कमीशन की रिपोर्ट आई जिसमें राज्यों का बंटवारा एक नए तरीके से किया गया। नए तरीकों के बाद दिल्ली को यूनियन टेरिटरी बनाया गया।
यूनियन टेरिटरी का मतलब होता है उस जगह अब राज्य सरकार नहीं चलेगी बल्कि वहां केंद्र का शासन होगा या फिर यूं भी कह सकते हैं कि केंद्र और राज्य संयुक्त रूप से काम करेगी। इसके बाद दिल्ली में विधानसभा भंग कर दी गई।
35 सालों तक दिल्ली में यही व्यवस्था रही जिसके बाद 1991 में फिर एक नया कानून जिसने दिल्ली में नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट लागू कर दिया और दिल्ली में फिर से विधानसभा और फिर 1993 में लेजिस्लेटिव एसेंबली का गठन हुआ। तब से आज तक हर 5 साल बाद विधानसभा चुनाव होते हैं और मुख्यमंत्री बनाया जाता है।
अधिकारों को लेकर लड़ती हैं केंद्र और राज्य सरकारें
दिल्ली से 70 विधायक चुनकर आते है जो सरकार चलाते है. लेकिन दिक्कत ये है कि 1991 में लाए गए इस एक्ट के मुताबिक दिल्ली की व्यवस्था ऐसी है कि यहां केंद्र और एनसीटी की सरकार दोनों ही मिलकर दिल्ली पर शासन करती है. मतलब संयुक्त प्रशासन होता है.
जिसके मुताबिक कुछ शक्तियां केंद्र के पास तो कुछ शक्तियां दिल्ली सरकार को दी गयी है. जिससे गतिरोध पैदा होता है. इस अधिनियम के तहत दिल्ली को कासी स्टेट का दर्जा दिया गया, मतलब अब दिल्ली न तो यूनियन टेरिटरी रहा और न ही पूर्ण राज्य रहा. फिलहाल दिल्ली में खुद की विधानसभा है, लेफ्टिनेंट गवर्नर है, काउंसिल ऑफ मिनिस्टर है और मुख्यमंत्री भी है.
दिल्ली की दिक्कत
देश के सभी पूर्ण राज्यों में पूरा कंट्रोल राज्य के मुखिया के पास होता है। जबकि पुलिसा का काम या कोई कानून भी पास करवाना हों तो केजरीवाल सरकार को केंद्र से इजाजत लेनी पड़ती है, जिसके बाद गतिरोध बढ़ जाता है।
आम आदमी पार्टी की मंशा या आमादा होने के कारण
दिल्ली सरकार बनने के समय से यह कहती आ रही है कि हमारे पास दिल्ली पुलिस का कोई कंट्रोल नहीं है, अधिकांश क्राइम के मामलों में दिल्ली सरकार को सुनना पड़ता है।
वहीं दिल्ली डेवलपमेंट ऑथिरिटी (डीडीए) यानि जो दिल्ली में सभी ज़मीनों पर कंट्रोल रखती है। वहीं डीडीए अपना काम डायरेक्ट केंद्र सरकार को रिपोर्ट करती है।
तीसरा एमसीडी, जिसे भी केंद्र सरकार कंट्रोल करती है। दिल्ली के आम नागरिकों की समस्या का निवारण एमसीडी के जरिए केंद्र ही करता है लेकिन परेशानी होने पर दिल्ली सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
क्यों जरुरी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा ?
– जनसंख्या के लिहाज से देखें तो लगभग 2 करोड़ की आबादी के साथ दिल्ली दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर बन चुका है।
– दिल्ली की बड़ी अर्थव्यवस्था और बढ़ता क्राइम एक मुद्दा है।
– केंद्र का दखल होने से सरकारी एजेंसियां ठीक से काम करने में समर्थ नहीं है।
– दिल्ली से होने वाली सरकारी इनकम केंद्र के पास चली जाती है।
और क्यों ना मिले पूर्ण राज्य का दर्जा ?
– दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने से पहले यह भी सोचा जाना चाहिए कि यह पूरे देश की राजधानी है जिसे राज्य सरकार के भरोसे छोड़ना मुश्किल भरा काम हो सकता है।
– प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और संसद के अलावा सभी देशों के दूतावास जिनकी सुरक्षा राज्य सरकार के लिए नामुमकिन काम साबित हो सकता है।
– डीडीए दिल्ली सरकार के अधीन आने से सभी जमीनों पर कंट्रोल दिल्ली सरकार का होगा, ऐसे में केंद्र को दिल्ली में जमीन की जरूरत पड़ने पर वो राज्य सरकार के अधीन हो सकती है।
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