वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान देश में हजारों बच्चे अनाथ हो गए। इनमें जिन बच्चों के माता-पिता कोरोना का शिकार हुए, उनके लिए तो केंद्र सरकार ने पहले ही योजनाएं शुरू कर दी हैं। लेकिन कई बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने किसी अन्य कारणों से महामारी के दौरान ही अपने माता-पिता को खोया और अनाथ हो गए। ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना महामारी के दौरान अनाथ हुए सभी बच्चों को पीएम केयर्स फंड के तहत घोषित सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए, न कि केवल कोरोना संक्रमण के कारण अनाथ हुए बच्चों को। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मार्च 2020 के बाद अनाथ हुए सभी बच्चों की संख्या का विवरण देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि इसमें और देरी बर्दाश्त नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने पाया कि 23 वर्ष पूरे होने पर 10 लाख रुपये देने की योजना सिर्फ उन बच्चों के लिए है,जो कोरोना संक्रमण के कारण अनाथ हुए हैं। अदालत ने कहा कि हमने जो आदेश दिया था, उसमें कोरोना महामारी के दौरान अनाथ सभी बच्चों को योजना का लाभ देने की बात कही गई थी, न कि केवल कोविड-19 के कारण अनाथ बच्चों को। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एश्वर्य भाटी ने कहा कि पीएम केयर्स फंड की कल्याणकारी योजना के तहत कोरोना के कारण अनाथ बच्चों को कवर करने की बात है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि हम पीएम केयर्स फंड का विस्तार सभी अनाथ बच्चों तक करने के लिए नहीं कह रहे, हम यह कह रहे हैं कि कोरोना काल में अनाथ हुए सभी बच्चों को इस स्कीम के दायरे में लाया जाना चाहिए। हम अपने आदेश को सिर्फ उन बच्चों तक सीमित नहीं कर सकते, जिन्होंने या तो अपने माता-पिता दोनों या किसी एक को खोया है। अदालत ने ने भाटी को इस संबंध में सरकार का निर्देश लाने के लिए कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के एक हलफनामे के अनुसार, राज्यों से अब तक प्राप्त हुई जानकारी के मुताबिक देश में कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की कुल संख्या 75,320 है। सर्वोच्च अदालत की बेंच के समक्ष सुनवाई के दौरान एनसीपीसीआर की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि 26 जुलाई को दायर किए गए हलफनामे में अनाथ बच्चों के नवीनतम आंकड़े पेश किए गए हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर के आंकड़े असल में हकीकत से दूर प्रतीत होते हैं। स्वराज पोर्टल में राज्यों द्वारा जो आंकड़े अपलोड किए गए हैं, वह अधूरे हैं। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के जिला अधिकारियों को अनाथ बच्चों का ब्योरा जल्द से जल्द एकत्र कर अपलोड करने को कहा है।
महामारी के दौरान अनाथ बच्चों की शिक्षा के बारे में सर्वोच्च अदालत ने कहा, राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे बच्चों की पढ़ाई उन्हीं निजी या सरकारी स्कूलों में जारी रहनी चाहिए, जहां वे अनाथ होने से पहले पढ़ाई कर रहे थे। यदि किसी प्रकार की कोई परेशानी हो तो उन्हें पड़ोस के स्कूल में पढ़ाया जाए। साथ ही कोर्ट ने राज्यों से ऐसे बच्चों के बारे में जानकारी देने को कहा है, जिन्हें उन स्कूलों में समायोजित किया गया है।
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