हलचल

क्या है ओआईसी, जिसमें हिस्सा लेने के लिए पहली बार भारत को न्योता मिला है

पहली बार, भारत को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान ने अबू धाबी में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के उद्घाटन सत्र में गेस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। 1 से 2 मार्च के बीच, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मुस्लिम-बहुल देशों में शांति और स्थिरता के मामलों पर चर्चा करने के लिए 56 अन्य सदस्यों देशों के साथ शामिल होंगी।

OIC क्या है?

OIC यानि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन। सबसे पहले आपको इस संगठन के बनने की कहानी बताते हैं। 21 अगस्त, 1969 को जेरुशलम की अल अक्सा मस्जिद में आग लगी जिससे 800 साल पुरानी इस मस्जिद को भारी नुकसान हुआ।

जेरुशलम के पूर्व मुफ्ती अमीन अल हसैनी ने आग की घटना को गंभीरता से लिया औऱ पूरी दुनिया के मुस्लिम देशों को इस पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया। हालांकि आग लगने की घटना का तो कुछ समय बाद पता चला जिसमें ऑस्ट्रेलिया के किसी मानसिक रोगी डेनिस माइकल का नाम आया। लेकिन उसके बाद 25 सितंबर, 1969 को मोरक्को के रबत में एक मुस्लिम कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें 24 देश आए।

ऐसे चलते-चलते मार्च 1970 में सउदी अरब के जेद्दा में इस्लामिक देशों के विदेश मंत्री पहली बार एक मंच पर मिले। जिसके बाद इन सभी ने मिलकर 1972 में ओआईसी की नींव रखी। वर्तमान में इसके 57 देश मेंबर हैं। OIC मुस्लिम देशों का एक संगठन है जिसका मूल मकसद दुनिया में मुस्लिम समुदाय के लोगों के हितों की रक्षा करना और दुनिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सौहार्द्र कायम करना है। यह संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के बाद दूसरा सबसे बड़ा सरकारी संगठन है।

भारत का जाना क्या मायने रखता है ?

भारत का ओआईसी के साथ एक विवादास्पद इतिहास रहा है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर विवाद की वजह से पाकिस्तान ने अक्सर ओआईसी में अपनी सदस्यता का लाभ उठाया है। इसके अलावा पाकिस्तान की तरफ से भारत को संगठन से बाहर रखने की भी पैरवी की जा चुकी है।

1969 में, पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने मांग की कि ओआईसी भारत का बहिष्कार करें। पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि OIC कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए उनकी मांगों का पूरा समर्थन करता है।

2006 में, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने ओआईसी में शामिल होने के लिए प्रयास किए लेकिन असफल रहे। सऊदी अरब, कतर और बांग्लादेश इस बात पर सहमत हुए हैं कि भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा मिले लेकिन पाकिस्तान ने यहां भी भारत का विरोध किया।

2016 में, भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि कश्मीर पर OIC की चर्चा गलत तथ्यों पर आधारित रही है।

वहीं 2018 में, ओआईसी ने “भारतीय कब्जे वाले कश्मीर” में भारतीय बलों द्वारा किए गए हमलों में हुई हत्याओं की जोरदार आलोचना की और इस घटना को “एक आतंकवादी कृत्य़” तक कह डाला। वहीं भारत सरकार को कश्मीर क्षेत्र में अपने मानवाधिकारों के हनन की जांच करने के लिए भी कहा।

हालांकि, अब भारत को ओआईसी की बैठक में सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जा रहा है, जिसके बाद माना जा रहा है कि पिछले कुछ समय से चल रहे गतिरोध अब दूर होंगे। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि पुलवामा हमले को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने के बाद भारत को मिला निमंत्रण यह बताता है कि हमारे देश का पलड़ा भारी है।

वहीं यूएई और सऊदी अरब जैसे अन्य मुस्लिम-बहुल देशों ने भारत के साथ राजनीतिक संबंधों के महत्व को महसूस किया है। जिसका साक्षात उदाहरण हाल में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान 20 फरवरी को पहली बार भारत आए थे।

यदि भारत ओआईसी में अपनी उपस्थिति आगे भी ऐसे ही रखता है, तो खाड़ी देशों जैसे अन्य रणनीतिक साझेदारों तक उसकी पहुंच आसान होगी। इसके साथ ही विशेष रूप से कश्मीर पर अपनी राय रखने के लिए भारत के पास एक और मंच होगा क्योंकि पाकिस्तान वर्तमान में ओआईसी में खुलकर बोलता है।

ओआईसी के आने वाले 46वें सत्र में, “भारत के 50 साल में इस्लामी सहयोग: समृद्धि और विकास के लिए रोड मैप” विषय पर चर्चा की जाएगी।

sweta pachori

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