आधुनिक उर्दू शायरी की दुनिया में अली सरदार जाफरी का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। अली सरदार जाफरी की यौम-ए-पैदाइश 29 नवंबर, 1913 को उतरप्रदेश के गोंडा जिले में स्थित बलरामपुर में हुई। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा यहीं से पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का रुख किया। जाफरी के अदंर का शायर देश की आजादी की लड़ाई के दौरान जागा। जाफरी ऐसे शायर के रूप में उभरे जिन्हें शुरुआती दौर में भले ही लोगों ने नकारा मगर उनकी कलम को जल्द ही लोगों ने स्वीकार कर लिया। यहां पढ़े उनकी कुछ बेहतरीन रचनाएं…
1.”मय है तेरी आँखों में और मुझ पे नशा सा तारी है
नींद है तेरी पलकों में और ख़्वाब मुझे दिखलाए है”
2.”अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा
चमन के फूल दिलों के कँवल खिलाता जा”
3.”अर्श तक ओस के कतरों की चमक जाने लगी
चली ठंडी जो हवा तारों को नींद आने लगी”
4.”हम ने दुनिया की हर इक शय से उठाया दिल को
लेकिन एक शोख़ के हंगामा-ए-महफ़िल के सिवा”
5.”ख़ंजरों की साज़िश पर कब तलक ये ख़ामोशी
रूह क्यूँ है यख़-बस्ता नग़्मा बे-ज़बाँ क्यूँ है”
6.”शिकायतें भी बहुत हैं हिकायतें भी बहुत
मज़ा तो जब है कि यारों के रू-ब-रू कहिए”
7.”पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है”
8.”शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है
सरहद-ए-दर्द से ये किस की सदा आती है”
9.”पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है”
10.”दामन झटक के वादी-ए-ग़म से गुज़र गया
उठ उठ के देखती रही गर्द-ए-सफ़र मुझे”
11.”काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा”
12.”इंक़लाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो
बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज़ नहीं”
13.”तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा
मैं वो चमन जो बहाराँ के इंतिज़ार में है”
14.”मक़तल-ए-शौक़ के आदाब निराले हैं बहुत
दिल भी क़ातिल को दिया करते हैं सर से पहले”
15.”ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
तमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है”
16.”कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में
लब-ए-बहार से निकली हुई दुआ तुम हो”
17.”इसी दुनिया में दिखा दें तुम्हें जन्नत की बहार
शैख़ जी तुम भी ज़रा कू-ए-बुताँ तक आओ”
18.”बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए
वहीं से वो पुकार उठेगा जो ज़र्रा जहाँ होगा”
19.”फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
सुर्ख़ परचम उफ़ुक़-ए-सुब्ह पे लहराते हैं”
20.”शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है
सरहद-ए-दर्द से ये किस की सदा आती है”
21.”इसी लिए तो है ज़िंदाँ को जुस्तुजू मेरी
कि मुफ़लिसी को सिखाई है सर-कशी मैं ने”
22.”प्यास जहाँ की एक बयाबाँ तेरी सख़ावत शबनम है
पी के उठा जो बज़्म से तेरी और भी तिश्ना-काम उठा”
23.”ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त
वो मदरसा है वो मस्जिद वहाँ मिलेगा सवाब”
24.”ये तेरा गुलिस्ताँ तेरा चमन कब मेरी नवा के क़ाबिल है
नग़्मा मिरा अपने दामन में आप अपना गुलिस्ताँ लाता है”
25″दिल-ओ-नज़र को अभी तक वो दे रहे हैं फ़रेब
तसव्वुरात-ए-कुहन के क़दीम बुत-ख़ाने”
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