भातरीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता काफी हद तक मानसून पर निर्भर करती है और इस बार देश में मानसून सामान्य ही रहेगा। मानसून पर भारत मौसम विभाग के महानिदेशक के.जे. रमेश ने बताया है कि इस वर्ष मानसून दीर्घकाल औसत (एलपीए) के 96 फीसदी रहने की संभावना है, जो भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही अच्छा संकेत है।
मानसून दीर्घकाल औसत 1951 से 2000 के बीच हुई बारिश का औसत है, जो 89 सेंटीमीटर है। 90 से 95 फीसदी के बीच एलपीए सामान्य के करीब की श्रेणी का माना जाता है। इससे पहले आशंका थी कि मानसून पर अल—नीनो का प्रभाव पड़ सकता है, जिसके चलते देश में बारिश का अभाव रहेगा। विभाग अगला पूर्वानुमान जून में जारी करेगा।
अल-नीनो क्या होती है?
अलनीनों एक अजीबो—गरीब समुद्री तथा जलवायुवीय घटना है जो कुछ समय अंतराल पर दक्षिण प्रशांत महासागर में पेरू के पास समुद्री तट पर प्रकट होती है। यह क्रिसमस के आसपास गर्म समुद्री जलधारा के रूप में प्रकट होती है।
इस घटना के परिणामस्वरूप समुद्र के सतह के जल का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। इसका विस्तार दक्षिण प्रशांत महासागर में 3 डिग्री दक्षिण से 18 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक रहता है।
अलनीनो स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका तात्पर्य ‘छोटा बच्चा’ होता है। यह क्रिसमस के तुरंत बाद दक्षिणी प्रशांत महासागर के पानी का अचानक असामान्य रूप से गर्म और ठंडा होने की घटना को ईसा मसीह के बाल्यकाल से जोड़ा गया है।
क्या प्रभाव पड़ता विश्व के देशों पर
अल-नीनो के प्रभाव के कारण प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, जिससे वायु की दिशा बदलने के साथ ही कमजोर पड़ने लगती है। जिसके चलते मौसम पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
अल-नीनो का एक प्रभाव यह होता है कि इससे वर्षा के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं। जिसके चलते विश्व के वे देश जहां ज्यादा बारिश होती है वहां कम वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होने लगती है यानि कई देशों में सूखा पड़ता है तो कई देशों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है।
भारत भी अलनीनों के दुष्प्रभावों से प्रभावित होता है। जिस वर्ष अल-नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर उसका असर निश्चित रूप से पड़ता है। इससे पृथ्वी के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्सों में सूखे की गंभीर स्थिति भी सामने आती है।
भारत भर में अल-नीनो के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है जबकि, ला-नीना के कारण अत्यधिक बारिश होती है।
ला-नीना
ला—नीना, अल-नीनो के ठीक विपरीत स्थिति होती है। ला-नीना की स्थितियाँ पैदा होने पर भूमध्य रेखा के आस-पास प्रशान्त महासागर के पूर्वी तथा मध्य भाग में समुद्री सतह का तापमान असामान्य रूप से ठंडा हो जाता है। इसे कोल्ड इवेंट कहा जाता है।
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