हिंदी साहित्य के नामी लेखक भगवती चरण वर्मा की 5 अक्टूबर को 41वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने हिंदी साहित्य में उपन्यास, कहानियां सहित सभी विधाओं पर लेखन का कार्य किया। वर्मा के उपन्यास ‘चित्रलेखा’ (1934) पर दो सफल हिंदी फिल्में भी बनी हैं। उन्हें वर्ष 1961 में ‘भूले बिसरे चित्र’ उपन्यास के लिए हिंदी का ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिला था। भगवती चरण वर्मा को साहित्य में योगदान के लिए वर्ष 1971 में भारत सरकार ने प्रतिष्ठित् ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से नवाज़ा। उन्हें वर्ष 1978 में राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था। इस मौके पर जानिए भगवती बाबू के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा या भगवती बाबू का जन्म 30 अगस्त, 1903 को उत्तरप्रदेश प्रांत के उन्नाव जिले स्थित सफीपुर कस्बे में हुआ था। उनके पिता देवी चरण कानपुर में वकालत का काम किया करते थे। वर्ष 1908 में कानपुर में फैले भयंकर प्लेग की वजह से उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इस हादसे के बाद भगवती चरण का पालन-पोषण उनके ताऊ ने किया। उन्होंने गांव की पैतृक संपत्ति बेचकर बैंक में जमा कराई और हर माह मिलने वाले ब्याज से परिवार का खर्च चलाया।
भगवती बाबू की प्रारंभिक शिक्षा सफीपुर में हुई थी। उन्होंने वर्ष 1921 में हाईस्कूल और वर्ष 1924 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण कीं। इसके बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा गया। जहां से उन्होंने हिंदी साहित्य और कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। भगवती चरण वर्मा का विवाह 20 साल की उम्र में वर्ष 1923 में हुआ था। इसके दस साल बाद वर्ष 1933 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया। हालांकि अगले साल उन्होंने दूसरा विवाह भी कर लिया था।
लेखक भगवती चरण वर्मा ने वर्ष 1928 से 1942 के बीच कानपुर में वकालत का काम किया। वर्ष 1934 में उन्होंने ऐतिहासिक उपन्यास ‘चित्रलेखा’ लिखा। इस उपन्यास ने उन्हें साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि दिलाईं। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में 17 उपन्यास लिखे। कुछ समय के लिए कलकत्ता फिल्म कॉरपोरेशन में काम किया। भगवती चरण ने बॉम्बे में स्क्रिप्ट राइटिंग का भी कार्य किया था। बाद में उन्होंने हिंदी दैनिक नवजीवन पत्रिका का संपादन किया। वर्मा ने वर्ष 1957 में स्वतंत्र लेखन शुरू कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो, लखनऊ में हिंदी सलाहकार के रूप में भी काम किया था। वर्ष 1978 में वर्मा को राज्यसभा के लिए नामित किया गया।
उपन्यास: भगवती चरण वर्मा का पहला उपन्यास ‘पतन’ (वर्ष 1928) था। इसके अलावा उन्होंने ‘अपने खिलौने’, ‘तीन वर्ष’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले बिसरे चित्र’, ‘टेढ़े मेढ़े रास्ते’, ‘सीधी सच्ची बातें’, ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘रेखा’, ‘वह फिर नहीं आई’, ‘प्रश्न और मरीचिका’ व आखिरी उपन्यास ‘सबहीं नचावत राम गोसाईं’ (वर्ष 1970) जैसे उपन्यास लिखे थे।
कहानी संग्रह: मोर्चाबंदी, राख और चिनगारी, इंस्टालमेंट
संस्मरण: अतीत की गर्त से
नाटक: रुपया तुम्हें खा गया
आलोचना: साहित्य के सिद्धांत तथा रूप
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकारों में से एक भगवती चरण वर्मा का निधन 5 अक्टूबर, 1981 को हुआ।
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