ये हुआ था

अपने लेखन से पाठकों को आकर्षित करने का हुनर रखते थे आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

हिंदी साहित्य के पुरोधा मौलिक निबंधकार, श्रेष्ठ समालोचक और उपन्यासकार आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का हिंदी साहित्य में बड़ा योगदान है। कबीर जैसे महान संत से लोगों को परिचित करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने ज्योतिष व संस्कृत में आचार्य की डिग्री प्राप्त की थी, इसलिए अपने नाम के आगे आचार्य का इस्तेमाल किया करते थे। द्विवेदी ने बतौर प्रोफेसर अध्यापन का भी कार्य किया था। आज 19 अगस्त को आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की 115वीं जयंती है। इस मौके पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले स्थित ‘दुबे-का-छपरा’ नामक गांव में हुआ था। उनका परिवार ज्योतिषशास्त्र के लिए प्रसिद्ध था। उनके पिता पंडित अनमोल द्विवेदी संस्कृत के विद्वान थे। हज़ारी प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा गांव के विद्यालय में ही संपन्न हुई और वहीं से मिडिल परीक्षा संस्कृत से उत्तीर्ण कीं। बाद में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने वर्ष 1930 में ज्योतिष और संस्कृत में ‘आचार्य’ की डिग्री प्राप्त की।

राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में हुए नियुक्त

आचार्य हज़ारी प्रसाद ने 18 नवंबर, 1940 को शांति निकेतन में हिंदी व्याख्याता के रूप में अपना करियर शुरू किया था। उन्हें उसी वर्ष विश्वभारती के हिंदी भवन के निदेशक पद पर पदोन्नत किया गया, जहां वह वर्ष 1950 तक रहे। यहीं पर गुरु रवींद्रनाथ टैगोर, क्षितिमोहन सेन, नंदलाल बोस और गुरुदयाल मल्लिक के प्रभाव से उनमें साहित्यिक गतिविधियों में दिलचस्पी बढ़ी। इसका प्रभाव उनकी लेखन कला में दिखाई देता है। उन्हें संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, पंजाबी आदि कई भाषाओं का गहरा ज्ञान था।

द्विवेदी ने वर्ष 1950 में शांति निकेतन छोड़ दिया और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में हिंदी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख बन गए। यहां उन्होंने वर्ष 1960 तक अपनी सेवाएं दीं। इसी दौरान उन्हें भारत सरकार द्वारा वर्ष 1955 में स्थापित पहले राजभाषा आयोग में सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। वर्ष 1960 में आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए थे। बाद में वह यहीं से सेवानिवृत्त भी हुए।

सम्मान एवं पुरस्कार

हज़ारी प्रसाद द्विवेद्वी को उनके हिंदी साहित्य में योगदान के लिए वर्ष 1957 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से नवाजा गया। वर्ष 1973 में उन्हें निबंध संग्रह ‘आलोक पर्व’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्य रचनाएं

आचार्य हजारी प्रसाद ने अपने जीवन में हिंदी साहित्य की आलोचना, निबंध लेखन और उपन्यास जैसी विधाओं पर शानदार लेखन से पाठकों को आकर्षित किया।

उनके द्वारा लिखे निबंध संग्रह

अशोक के फूल (1948)
कल्‍पलता (1951)
विचार और वितर्क (1954)
विचार प्रवाह (1959)
कुटज (1964)
आलोक पर्व (1972)

उपन्‍यास

बाणभट्ट की आत्‍मकथा (1947)
चारु चंद्रलेख (1963)
पुनर्नवा (1973)
अनामदास का पोथा (1976)

इनके अलावा उन्होंने सूर साहित्य, कबीर, कालिदास की लालित्य योजना, हिंदी साहित्य (उद्भव और विकास), हिंदी साहित्य का आदिकाल आदि श्रेष्ठ और अद्भुत साहित्यिक रचनाएं की हैं।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का निधन

हिंदी साहित्य को अपना अमूल्य योगदान देने वाले आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का निधन 19 मई, 1979 को दिल्ली में हुआ। जब उनका स्वर्गवास हुआ था, तब वह उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी के अध्यक्ष थे।

प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जबलपुर की सड़कों पर खुद ही बेचा करते थे अपनी पत्रिका

Raj Kumar

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