लग्जरी सुविधाएं, आधुनिक तकनीक, स्पेशियस, कम्फर्टेबल कुछ ऐसी ही विशेषताएं थीं एयरबस ए380 की। इन सुविधाओं के कारण इस प्लेन को महल या सुपरजम्बो कहा जाता था और इसका आकर्षण इतना था कि एयरपोर्ट पर खड़े इस प्लेन को देखने के लिए लोग उत्साहित रहते थे और जो लोग इससे सफर कर रहे होते थे, वे इसके साथ अपने फोटो खिंचवाने के लिए ललायित रहते थे, लेकिन अब यह विशालकाय प्लेन नहीं दिखेगा क्योंकि कम्पनी ने इसका प्रोडक्शन बंद करने का फैसला लिया है। अपनी लॉन्चिंग के वक्त इसे जितनी हाइप मिली थी, उतना ही समय के साथ यह अपनी खामियों के कारण नीचे आता गया और आज बंद होने की कगार पर है। आइए इस प्लेन की खूबियों और इसके कमर्शियल फ्लॉप होने के कारणों पर आपको विस्तार से बताते हैं।
एयरबस ने 15 अक्टूबर 2007 को इस विशालकाय प्लेन को लॉन्च किया था। इसकी खूबियों के कारण इसे एविएशन इंडस्ट्री में एक नई क्रांति माना जा रहा था। उम्मीद के मुताबिक इस प्लेन को लेकर काफी क्रेज भी देखने को मिला। कुछ ही समय में यह प्लेन लोगों के बीच सेंटर आॅफ अट्रेक्शन बन गया था। खास बात यह है कि विशाल आकार और बड़े इंजनों के बावजूद इस विमान में ईंधन का खर्च कम है। जब इस विमान को लॉच किया गया था, तो इसने सारे प्रतिद्वंदियों को मात दे दी थी।
सबसे बड़े यात्री विमान A380 की पहली खरीदार सिंगापुर एयरलाइंस थी। किसी भी एयरलाइंस के लिए इतने बड़े प्लेन को अपने बेड़े में शामिल करना गर्व की बात थी। साथ ही यह फायदे का सौदा भी था क्योंकि एक साथ कई यात्रियों को ले जाया जा सकता था। लेकिन समय के साथ प्लेन की यही खूबी समस्या बन गई क्योंकि अधिकांश सीटें खाली रहने लगीं।
इसकी बनावट की बात करें तो इसकी लंबाई 72.7 मीटर और ऊंचाई 24 मीटर है, जबकि इसके डैनों का विस्तार 79.8 मीटर तक है। इस वजह से इस विमान के अंदर किसी महल से भी अधिक जगह है। यह तीन अलग-अलग कैटेगरी में 500 यात्रियों को लग्जरी और आरामदायक हवाई यात्रा करा सकता है। अन्य बड़े लग्जरी विमानों की तुलना में इसकी यात्री क्षमता 100 ज्यादा है। अगर इस विमान को केवल इकोनॉमी क्लास बना दिया जाए तो इसमें 850 यात्री सफर कर सकते हैं। लग्जरी सुविधा के लिए बनाए इस प्लेन के डेक और फर्स्ट क्लास सुईट में बिस्तर लगे हुए हैं।
इसमें बड़ी-बड़ी खिड़कियां, ऊंची छत और ऐसा इंजन है जो बिलकुल भी आवाज नहीं करता। इसमें इतना स्पेस था कि कुछ एयरलाइन ने इसमें शॉवर, लाउंज, ड्यूटी फ्री शॉप और दोनो डेक पर बार भी बना दिए। बेहद कीमती होने के बावजूद दुनिया भर 160, A380 विमान हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह प्लेन डबल स्टोरी है। निचले फ्लोर पर 12 बंकरनुमा बैड बने हैं, जिसमें विमान के कर्मचारी लंबी फ्लाइट के दौरान आराम कर सकते हैं।
2007 में पहले विमान की डिलीवरी के चार साल बाद ही इस विशाल विमान में तकनीकि खामियां नजर आने लगीं। 2011-2012 में A380 विमानों की तकनीकी खामियों की वजहों से कई जगह पर आपात लैडिंग भी करानी पड़ी। क्वांटस, एमिरेट्स और सिंगापुर एयरलाइंस को आपातल लैडिंग की वजह से भी काफी नुकसान झेलना पड़ा। जनवरी 2012 में क्वांटस और सिंगापुर एयरलाइंस ने विमान के डैनों में दरार की शिकायत की। जांच में पता चला कि डैनों में दरार की वजह तकनीकी खामी है। इसमें निर्माण में प्रयोग किए गए मैटेरियल और गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं पायी गई। ऐसे में डैनों में आयी दरार को सही करने में कंपनी को 26.3 करोड़ यूरो (करीब 2054 करोड़ रुपये) खर्च करने पड़े, जो बहुत ज्यादा था।
ये विमान इतना विशाल है कि ये हर एयरपोर्ट से संचालित नहीं किया जा सकता। इसके लिए लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर बने हैंगर्स को नए सिरे से बनवाना पड़ा। इसके अलावा टेकऑफ और लैंडिंग के लिए भी बेहद प्रशिक्षित और कुशल पायलटों की जरूरत होती है।
जैसा हमेशा होता है प्रोडक्ट की खामियां परेशानी का सबब बनती हैं। कुछ ऐसा ही ए380 के साथ भी हुआ। जब विभिन्न एयरलाइंस के सामने इसकी कमियां आईं तो फिर सौदे निरस्त होने लगे। जनवरी-फरवरी 2019 में एयरबस के दो सबसे बड़े खरीदार एमिरेट्स और ऑस्ट्रेलियन एयरलाइन क्वांटस ने A380 विमान के आर्डर रद्द कर दिए। सौदे निरस्त होना कम्पनी के लिए बड़ा नुकसान था। इस प्लेन से लगातार हो रहे नुकसान के कारण कम्पनी ने निर्णय लिया कि वे 2021 में इसका निर्माण बंद कर देंगे।
इस प्लेन की जांच और मेंटीनेंस के लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त एक बड़ी टीम की जरूरत होती है। दरअसल इसमें काफी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर सिस्टम का इस्तेमाल होता है। टटेक्निकल वर्क के लिए कंप्यूटर इंजीनियर्स की आवश्यकता होती है, जो एक तरह से एक्स्ट्रा खर्चा है। इन जरूरतों के कारण भी प्लेन के प्रति आकर्षण कम हुआ।
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