भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले प्रखर राष्ट्रवादी, चिंतक, लेखक, राजनेता व प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की आज 28 मई को 139वीं जयंती है। उन्होंने भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए देश और विदेश में रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान दिया था। यही नहीं सावरकर ने ‘काले पानी की सज़ा’ भी काटी थी। वे पहले भारतीय इतिहासकार थे, जिन्होंने वर्ष 1857 के विद्रोह को ‘भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम’ की उपमा दी थी। विनायक दामोदर सावरकर पेशे से एक वकील, राजनीतिज्ञ, नाटककार कवि और लेखक भी थे। इस ख़ास मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में…
वीर सावरकर का जीवन परिचय
क्रांतिकारी वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले स्थित भगुर नामक गाँव में हुआ था। उनका असल नाम विनायक दामोदर सावरकर था। उनकी माता का नाम राधाबाई और पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर था। उनके पिता की चार संतानों में उनके अलावा दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई भी थीं। उनकी माता का हैजा की बीमारी से देहांत हो गया था, तब वह महज नौ वर्ष के थे। इसके सात साल बाद ही उनके पिता का भी प्लेग महामारी के दौरान वर्ष 1899 में निधन हो गया था। इसके हादसे के बाद परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई गणेश पर आ गई। इन कठिन परिस्थितियों में भाई गणेश के संघर्ष का उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा।
बचपन से ही रहा पढ़ने और कविता लिखने का शौक
वीर सावरकर ने शिवाजी हाईस्कूल, नासिक से 1901 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उन्हें बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था, साथ ही वह कविताएं भी लिखा करते थे। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। पढ़ाई के दौरान ही वीर सावरकर के हृदय में देश की आजादी का अलख जल चुका था, जिसके लिए उन्होंने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करना शुरू कर दिया और ‘मित्र मेला’ नामक संगठन की स्थापना की। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत करके आजादी की क्रांति की ज्वाला को जिंदा रखना था।
वीर सावरकर वर्ष 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ विवाह के बंधन में बंध गये थे। खास बात ये है कि उनके ससुर ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया था। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
देश की आजादी के लिए संघर्ष में अहम भूमिका निभाई
वीर सावरकर ने वर्ष 1904 में ‘अभिनव भारत’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। जब वर्ष 1905 में अंग्रेजों द्वारा बंगाल के विभाजन की घोषणा की तो सावरकर ने बंग-भंग के विरोध और स्वदेशी आंदोलन के समर्थन में पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर वर्ष 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। उनके क्रांतिकारी लेख ‘इंडियन सोशियोलाजिस्ट’ और ‘तलवार’ नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। उनके कई लेख कलकत्ता से प्रकाशित पत्र युगांतर में भी छपे।
रूसी क्रांति और क्रांतिकारियों से हुए थे प्रभावित
विनायक दामोदर सावरकर रूसी क्रांति और क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे। 10 मई, 1907 को उन्होंने लंदन स्थित इंडिया हाउस में 1857 की आजादी की लड़ाई की स्वर्ण जयंती मनाई। मई 1909 में उन्होंने लंदन से बार एट लॉ (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहां वकालत करने की अनुमति नहीं मिली। लंदन में रहते हुए उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई, जो उन दिनों इंडिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई, 1909 को मदनलाल धींगरा द्वारा विलियम हट्ट कर्जन वायली को गोली मार कर हत्या किये जाने के बाद उन्होंने लंदन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई, 1910 को पेरिस से लंदन पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी के बाद जब उन्हें 8 जुलाई, 1910 को एस.एस. मोरिया जहाज से भारत ले जाया जा रहा था तो जहाज के सीवर होल के रास्ते वह समुद्र में कूद गये। लेकिन वह तैरकर जब समु्द्र के किनारे पहुंचे तो उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। 24 दिसंबर, 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद जनवरी 1911 को वीर सावरकर को एक अन्य मामले में भी काला पानी की सजा सुनाई गईं। सावरकर को ब्रिटिश सरकार द्वारा इस प्रकार सजा सुनाना विश्व इतिहास की पहली अनोखी सजा थी।
नासिक षडयंत्र कांड में अंडमान-निकोबार सेल्युलर जेल में भेजा
वीर सावरकर को नासिक जिले के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिए ‘नासिक षडयंत्र कांड’ में दोषी पाये जाने पर अप्रैल, 1911 में अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में काला पानी की सजा काटने भेज दिया गया। वर्ष 1920 में सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनको कैद से मुक्त कर दिया गया। उन्होंने स्वीकार किया कि वर्षों तक जेल की सलाखों की पीछे रहने से अच्छा है, भूमिगत रह कर संघर्ष किया जाए।
‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857’ नामक किताब लिखी
क्रांतिकारी होने के साथ-साथ सावरकर एक समाज सुधारक भी थे। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व मौजूद थे। सावरकर एक तर्कसंगत व्यक्ति थे, जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे।
विनायक दामोदर सावरकर का निधन
भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी वीर सावरकर का निधन 26 फरवरी, 1966 को 82 वर्ष की अवस्था में मुंबई में हुआ। एक दिलचस्प बात ये है कि वीर सावरकर के जीवन पर एक बॉलीवुड फिल्म बन रही है, जिसमें उनका किरदार अभिनेता रणदीप हुड्डा निभाते नज़र आएंगे।
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