जमनालाल बजाज ने अस्पृश्यता को दूर करने समेत कई क्षेत्रों में दिया था अपना योगदान

Views : 7567  |  4 minutes read
Jamnalal-Bajaj-Biography

भारतीय उद्योगपति, समाज सेवी व स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज की आज 134वीं जयंती है। वह महात्मा गांधी के पांचवें पुत्र के ​रूप में प्रसिद्ध थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इन्होंने देश के क्रांतिकारियों को आर्थिक सहयोग दिया था। इन्होंने जातिगत भेदभाव का विरोध किया और हरिजनों के उत्थान के लिए कई उल्लेखनीय कार्य भी किए। जमनालाल बजाज ने 1920 के दशक में बजाज समूह की कंपनियों की स्थापना की। आज इस समूह की 24 कंपनियां हैं। इनमें से छह रजिस्टर्ड हैं। इस खास अवसर पर जानिए इनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

जमनालाल बजाज का जीवन परिचय

प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवंबर, 1889 को राजस्थान के सीकर जिले के काशी का बास में हुआ था। इनके पिता कनीराम और माता बिरदीबाई थे। जमनालाल के पिता एक गरीब किसान थे। इन्हें छोटी उम्र में ही वर्धा के एक सेठ बच्छराज ने गोद ले लिया था। जमनालाल को पैसों की खनक मोहित न कर सकी और इनका झुकाव हमेशा देश सेवा में रहा। इनका विवाह जानकी नाम की महिला से महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था।

देश की आजादी की ओर रहा झुकाव

पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार को आर्थिक सहयोग देने पर जमनालाल को मानद मजिस्ट्रेट नियुक्त किया था। जब इन्होंने युद्ध कोष में धन दिया तो इन्हें ‘राय बहादुर’ की उपाधि से भी सम्मानित किया। लेकिन जब वर्ष 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ चल रहा था तो बजाज ने इस उपाधि को वापस अंग्रेज सरकार को लौटा दी थी।

गांधीजी से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बने

जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो जमनालाल बजाज की मुलाकात उनसे हुईं। वह गांधीजी से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद वह भी गरीबों के प्रति सेवा भाव में रुचि लेने लगे। बजाज गांधीजी के सादगीपूर्ण जीवन से काफी प्रभावित हुए। वह भी देश की आजादी और समाज सेवा में लग गए।

राष्ट्रीय आंदोलन में हर तरह से किया सहयोग

जमनालाल को वर्ष 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन की स्वागत समिति का अध्यक्ष चुना गया। इन्होंने गांधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिया और अंग्रेजों की राय बहादुर की उपाधि का वापस लौटा दिया। बाद में वर्ष 1923 में इन्होंने झंडा सत्याग्रह में भाग लिया। नागपुर में राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर प्रतिबंध होने के बावजूद जमनालाल बजाज ने इसमें भाग लिया और इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

बजाज ने अप्रैल, 1930 में दांडी मार्च में भाग लिया और नमक सत्याग्रह में शामिल हो गए। जमनालाल को गांधी सेवा संघ के अध्यक्ष बनाया गया। इन्होंने रचनात्मक कार्यों के लिए अपना जीवन समर्पित किया। बजाज को वर्ष 1933 में कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य और कांग्रेस के कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया। जमनालाल बजाज ने देश की आजादी के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया था। वर्ष 1931 में इनके प्रयासों से ‘जयपुर राज्य प्रजा मंडल’ की स्थापना हुईं। लेकिन जयपुर राज्य ने 30 मार्च, 1938 को इस पर रोक लगा दी थी।

सामाजिक कार्यों में हमेशा बढ़-चढ़कर भाग लिया

जमनालाल बजाज ने अस्पृश्यता को दूर करने, हिंदी को बढ़ावा देने और खादी और ग्रामोद्योग जैसे कार्यों में अपनी रुचि दिखाई थी। इन्होंने खादी को बढ़ावा देने के लिए देश भर में दौरा किया था। वर्ष 1925 में इन्हें ऑल इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया। इन्हें अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया। इन्होंने सभी भारतीयों को एकजुट करने के लिए हिंदी को एकल भाषा के रूप में बढ़ावा दिया। हिंदी पत्रिकाओं और पुस्तकों के प्रकाशन में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। बजाज ने सी राजगोपालाचारी के साथ दक्षिण भारत में हिंदी के प्रसार के लिए हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की और देश में हिंदी के प्रचार-प्रसार की आशा की।

हरिजनों के लिए मंदिर और सार्वजनिक कुओं का निर्माण करवाया

बजाज ने अस्पृश्यता के उन्मूलन के करने के लिए वर्ष 1928 में हरिजनों के लिए वर्धा में अपने स्वयं के पारिवारिक मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर खोले। इन्होंने हरिजनों के साथ भोजन करके और उनके लिए सार्वजनिक कुएं का निर्माण करवाया। इनके सामाजिक कार्यों को सम्मान देने के लिए वर्ष 1978 में ‘जमनालाल बजाज पुरस्कार’ बजाज फाउंडेशन द्वारा स्थापित किया गया। इनके नाम पर कई संस्थानों के नाम भी रखे गए हैं। इनमें जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज भी शामिल है। इसके अलावा मुंबई के उप-शहरी अंधेरी में एक इलाके जेबी नगर का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

समाजसेवी और कारोबारी जमनालाल बजाज का निधन

समाजसेवी, सेनानी व कारोबारी जमनालाल बजाज का निधन 11 फरवरी, 1942 को वर्धा में मस्तिष्क की नस फट जाने की वजह से हुआ।

सरदार पटेल की बदौलत लक्षद्वीप को मिली थी भारतीय पहचान, इसलिए मिला लौहपुरुष नाम

COMMENT