संयुक्त राष्ट्र हर वर्ष 6 फरवरी को ‘जननांगों का खतना के प्रति पूर्ण असहिष्णुता दिवस’ मनाता है। इस दिवस को मनाने के पीछे की वजह है महिलाओं में खतने (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन, एफजीएम) को पूरी तरह रोकना, जोकि एक सामाजिक कुरीति है।
वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अुनसार ‘फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन’ या गुप्तांगों को बचपन में या किशोरावस्था में ही काट दिया जाता है। खतने (एफजीएम) की वजह से बच्चियों और महिलाओं की सेहत पर गंभीर खतरा पैदा होता है, वे जिंदगी भर शारीरिक और मानसिक रूप से कष्ट झेलती रहती है। इससे सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के इलाज के लिए दुनिया भर में हर साल 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 20 करोड़ से अधिक महिलाओं और बच्चियों को सांस्कृतिक और गैर-चिकित्सकीय कारणों से खतने का सामना करना पड़ता है। सामान्यत: ऐसा जन्म से 15 वर्ष के बीच किया जाता है। गुप्तांगों के कटने के बाद इससे उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें संक्रमण, रक्तस्राव या सदमा शामिल है। इससे ऐसी असाध्य बीमारी हो सकती है, जिसका बोझ जिंदगी भर उठाना पड़ता है।
यूएन की एजेंसी ने 6 फरवरी को ‘जननांगों का खतना के प्रति पूर्ण असहिष्णुता दिवस’ मनाया। इस अवसर पर जारी आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में हर साल एफजीएम से सेहत पर होने वाले दुष्प्रभावों के इलाज की कुल लागत 1.4 अरब डॉलर होती है। दुनिया के कई देश अपने कुल स्वास्थ्य बजट का करीब 10 फीसदी हर साल एफजीएम के इलाज पर खर्च करते हैं। वहीं कुछ देशों में तो यह आंकड़ा 30 फीसदी तक है।
डब्ल्यूएचओ के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तथा अनुसंधान विभाग के निदेशक इयान आस्क्यू ने कहा, महिलाओं का खतना न केवल मानवाधिकारों का भयानक हनन है, बल्कि इसकी वजह से लाखों लड़कियों और महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह नुकसान पहुंच रहा है। इससे देशों के मूल्यवान आर्थिक संसाधन भी नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि एफजीएम को रोकने और इससे होने वाली तकलीफ को खत्म करने के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने बताया है कि एफजीएम के करीब एक चौथाई पीड़ितों या करीब 5.2 करोड़ महिलाओं और बच्चियों को स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती है।
अफ्रीकी देश मिस्र में जनवरी महीने एक 12 वर्षीय लड़की की मौत हो गई जिसने एफजीएम के खतरों को एक बार फिर दुनिया के सामने उजागर किया। यूनीसेफ के अनुसार हालांकि मिस्र में एफजीएम को वर्ष 2008 को प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन ये अभी भी वहां और सूडान में प्रचलित है।
कई देशों में महिला खतना का विरोध जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वहीं इसे सही ठहराने के लिए चिकित्साकर्मियों द्वारा कराए जाने का चलन भी बढ़ रहा है। वर्ष 1997 से लगातार किए गए प्रयासों की बदौलत अफ्रीका और मध्य पूर्व में 26 देशों ने महिला खतना के खिलाफ कानून बनाए हैं। साथ ही महिला खतना का दंश झेलने वाली लड़कियां और महिलाएं जिन अन्य देशों में जाकर बसते हैं या कामकाज करते हैं, उन देशों में भी इसके खिलाफ कानून बनाए गए हैं। यदि इस कुप्रथा के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया जाए तो इस समूल नष्ट किया जा सकता है।
फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन (एफजीएम) यानी खतना, एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें जानबूझकर महिला के बाहरी गुप्तांग को काट दिया जाता है। इसमें अक्सर महिला गुप्तांग की मुड़ी हुई त्वचा (लेबिया) और क्लाइटोरिस को हटाया या काट दिया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि ऐसी कोई भी प्रक्रिया जो बिना मेडिकल कारणों के महिला गुप्तांग को नुकसान पहुंचाती है वह इस श्रेणी में आती है। एफजीएम महिलाओं और लड़कियों को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से नुकसान पहुंचाती है और इस प्रथा के कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं हैं।
यह एक कुरीति है जो बहुत भयावह है। इससे महिलाएं विचलित हो जाती हैं और संबंधों के लिए घातक है। यह अक्सर महिलाओं की इच्छा के खिलाफ किया जाता है या उन पर थोपा जाता है।
इस परंपरा को लेकर विश्वास है कि महिला यौनिकता पितृसत्ता के लिए खतरनाक है और महिलाओं को सेक्स का लुत्फ उठाने का कोई अधिकार नहीं है। माना जाता है कि जिस महिला का खतना हो चुका है, वह अपने पति के प्रति ज्यादा वफादार होगी और घर से बाहर नहीं जाएगी।
एफजीएम के पहले प्रकार को क्लिटोरिडेक्टमी कहा जाता है। इसमें महिला गुप्तांगके क्लाइटोरिस और उसके आस-पास की त्वचा को पूरी तरह या आंशिक तौर पर हटा दिया जाता है।
FGM के दूसरे प्रकार को काटना कहा जाता है। इसमें क्लाइटोरिस के साथ ही लेबिया या योनि के इर्द-गिर्द मौजूद त्वचा को पूरी तरह हटा दिया जाता है या उसे काट दिया जाता है।
तीसरा प्रकार के एफजीएम को इन्फ़िब्युलेशन होता है जिसमें योनि के इर्द-गिर्द मौजूद बाहरी त्वचा यानि लेबिया माइनोर और लेबिया मेजोरा को काट दिया जाता है या उसको बिगाड़ दिया जाता है। कभी-कभी इसमें थोड़ी सी जगह छोड़कर टांके तक लगा दिए जाते हैं। इस प्रकार से किया गया खतना न केवल बेहद दर्दनाक और दहला देने वाली होती है बल्कि इससे संक्रमण होने का ख़तरा बढ़ जाता है योनि और मूत्रमार्ग को छोटा कर देने से माहवारी और पेशाब में भी खासी दिक्कते होती हैं।
एफजीएम के चौथे प्रकार में क्लाइटोरिस या गुप्तांग के हिस्से को किसी भी तरीक़े से कांटा-छांटा या फिर सिल दिया जाता है।
महिलाओं में खतना प्रथा वर्तमान में अफ़्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के कई इलाकों में प्रचलित है, साथ ही यूरोप, उत्तरी और दक्षिणी अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी समुदाय भी यह प्रथा अपनाई जाती है।
यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, अफ़्रीका और मध्य पूर्व के 29 देशों में यह प्रथा अपनाई जाती है। हालांकि, इनमें से 24 देशों में एफजीएम के खिलाफ कानून बनाए गए है और अवैध है।
भारत भी इस प्रथा का चलन बोहरा मुस्लिम समुदाय (दाऊदी बोहरा और सुलेमानी बोहरा) में है। इनकी आबादी गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में है। दाऊदी बोहरा समुदाय भारत के सबसे ज्यादा शिक्षित समुदायों में से एक है।
मिस्र की फिल्म निर्माता और ब्लॉगर ओमनिया इब्राहीम कहती हैं, “आप एक बर्फ के टुकड़े की तरह हैं। आप कुछ नहीं महसूस करती हैं, आप प्रेम नहीं करती हैं और आपकी कोई इच्छा नहीं होती है।” वह अपने पूरे व्यस्क जीवन में खतने के मनोवैज्ञानिक प्रभावों से जूझती आईं।
वह कहती हैं, “मैं अपनी यौन इच्छा की सोच से जूझती रही हूं, मुझे यह कैसे पता चलेगी? मैं हमेशा खुद से पूछती थी, क्या मैं सेक्स से नफरत करती हूं क्योंकि मुझे इससे डरना सिखाया गया था या क्या मुझे वास्तव में इसकी कोई परवाह नहीं है?”
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