हलचल

“मितरों”,”भक्त” से लेकर “अच्छे दिन” तक, मोदी राज में ये शब्द हर किसी जुबां पर चिपके रहे !

जर्मन विचारक मैक्स वेबर का मानना था कि नेता और उनके वादे मार्केट के किसी प्रॉडक्ट की तरह होते हैं जिन्हें जनता के सामने लॉन्च किया जाता है। इन प्रॉडक्ट की मार्केटिंग करने के लिए कुछ नारे और ‘वन लाइनर’ भी गढ़ने होते हैं जो माहौल तैयार करने के लिए जरूरी होते हैं।

हमारे देश की अब तक की सरकारों की राजनीति में हमेशा कुछ ऐसे शब्द या नारे रहे हैं जो पूरे कार्यकाल के दौरान चर्चा में रहते हैं। चाहे वह इंदिरा गांधी का “गरीबी हटाओ” हो या भाजपा का “सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी”, ये शब्द लोगों से कुछ ऐसे चिपके कि आज तक इनका जोश लोगों में कायम है।

अब 1.3 बिलियन की आबादी वाले इस देश में राजनीति के मायने जरूर बदलें हों पर राजनीति के आयाम कुछ वैसे ही हैं। तो फिर क्या आकर्षक शब्दों और नारों की कमी हो सकती है? जी बिल्कुल नहीं। मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार में, ऐसे कई नए और पुराने शब्द उछले जो कि इन 5 सालों में लोगों की राष्ट्रीय चेतना बन गए। आज ये शब्द या वन लाइनर स्कूली बच्चों, चाय-वालों, व्यापारियों, साहित्य, मीडिया और अन्य लोगों द्वारा धड़ाधड़ इस्तेमाल होते हैं।

आइए नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ शब्दों पर जो पिछले 5 साल काफी चर्चा में रहे।

अच्छे दिन

2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी के अभियान का सबसे पसंदीदा नारा “अच्छे दिन” ही था। अच्छे दिन आने वाले हैं, कुछ ऐसे ही अंदाज में सरकार की नींव रखी गई थी। अब किसी को समझाने की जरूरत नहीं है कि भारत में कितने लोगों के अच्छे दिन आए और कितनों के बुरे दिनों की शुरूआत हुई।

एंटी-नेशनल

प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों ने पिछले 5 सालों में सबसे ज्यादा इस शब्द का इस्तेमाल किया है। मोदी के मंत्री गिरिराज सिंह के अनुसार, कुछ 69% भारतीय देशद्रोही हैं। सिंह की राष्ट्र विरोधी परिभाषा धीरे-धीरे बदली गई और इसका इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, कॉलेज प्रोफेसरों, मीडिया कर्मियों, बॉलीवुड सितारों के लिए होने लगा।

पाकिस्तान चले जाओ

बीते 5 सालों में ना जाने कितने ही भारतीयों को पाकिस्तान भेज दिया गया है, एक हिसाब लगाएं तो अब तक भारत में जनसंख्या की वजह से होने वाली सारी समस्याएं खत्म हो जानी चाहिए थी। लेकिन एक नाइंसाफी जरूर हुई सभी को पाकिस्तान भेजा गया..दुनिया में और भी कितनी जगह हैं जहां हर भारतीय जाना चाहता है।

जुमला

फरवरी 2015 में, जब अमित शाह ने इस एक शब्द से बिना सोचे-समझे अपने ही वादों की मार्मिकता को कम कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के मुखिया को तब यह एहसास नहीं हुआ कि मोदी के सबसे हाई-प्रोफाइल चुनावी वादों में से एक को रेखांकित करने का उनका प्रयास हर विपक्षी दल का सबसे प्रिय शब्द बन जाएगा।

फेक न्यूज

अब भारत में 1 अप्रैल के अलावा हर दिन फूल्स डे मनाया जाता है और अब यह हास्यास्पद नहीं रहा है। मोर्फ्ड तस्वीरें, काट-छांट वाले वीडियो, बीजेपी की आईटी सेल के कर्मठ कर्मचारियों ने पूरे भारत में इन्हें परोसा है। फेक न्यूज का मकसद केवल अन्य राजनीतिक संगठनों की गरिमा को मैला करना होता है। सिर्फ पार्टियां, यहां तक कि वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और नेताओं ने भी नेशनल टेलीविजन पर अपनी बात बनाने के लिए फर्जी खबरें फैलाने के मामले देखे गए हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक

जम्मू-कश्मीर के उरी में भारतीय सेना के सैन्य ठिकाने पर हुए एक आतंकवादी हमले के जवाब में पाकिस्तान की सीमा पार जाकर जवानों ने आतंकवादी पर पिन-पॉइंटेड हमले किए, जिसके बाद इस घटना ने बॉलीवुड में भी अपनी जगह बना ली। सरकार अब कह रही है कि उसने पिछले पांच सालों वर्षों में इस तरह के तीन हमले किए हैं।

इस बीच, भारतीयों ने तीन नहीं सैकड़ों का संचालन किया। सरकार के किसी भी आश्चर्य या एक्सट्रीम स्टेप को अब “सर्जिकल स्ट्राइक” करार दे दिया जाता है।

नोटबंदी

यह भी एक सर्जिकल स्ट्राइक थी पर यह प्रधानमंत्री ने काले धन, आतंकी संगठनों की फंडिंग और ड्रग मनी पर की। नवंबर 2016 में मोदी ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों पर रातोंरात प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था।

इस ऐलान का उद्देश्य काला धन खत्म करना, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना, वित्तीय समावेश को बढ़ावा देना, जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं को कम करना, आतंकवाद को कम करना था।

कोई बात नहीं। डिमोनेटाइजेशन अंततः एक सर्जिकल स्ट्राइक ही तो थी जिसमें सीमा पार आतंकवादी ठिकानों को बर्बाद करने के लिए सैन्य कदम उठाए गए और अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए शायद नोटबंदी ही काफी थी। बस इतना जरूर हुआ कि जल्द ही इस शब्द का व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा।

मितरों

नरेंद्र मोदी को “मितरों” के बिना सोचा भी नहीं जा सकता है, सुनना तो बहुत दूर की बात है। इसके अलावा उनके पसंदीदा भाईयों और बहनों (भाई-बहन) और मेरे प्यारे देशवासियों (मेरे प्यारे देशवासियों) शामिल हैं। हालांकि मेरे प्यारे देशवासियों तब तक काफी अच्छा लगता था जब तक इसके बाद नोटबंदी की घोषणा नहीं हुई थी।

भक्त

किसी भी मोदी प्रशंसक को इस नाम से पुकारने पर यह उसका सबसे बड़ा अपमान होगा। भक्त माने कोई ऐसा व्यक्ति जो आंख मूंदकर हर बात में विश्वास करता हो खासकर सरकार की या किसी पार्टी विशेष की। यह लिस्ट भी पूरी कहां है इसमें आप ट्रोल, गौ रक्षक, न्यूज ट्रेडर, लिचिंग, जैसे शब्द और जोड़ सकते हैं।

sweta pachori

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