आजादी के बाद भी गुलाम था गोवा, 18 जून 1946 को ‘गोवा क्रांति’ की नींव पड़ी

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आज का दिन इतिहास में गोवा क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता हैं। 18 जून 1946 को डॉ राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में गोवा के लोगों ने पुर्तग़ालियों के विरूद्ध आवाज उठाई थी।

18 जून गोवा और भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन गोवा की आजादी की लंबी लड़ाई शुरू हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप 19 दिसम्बर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा में आक्रमण कर इसे पुर्तग़ाली साम्राज्य से मुक्त करवाया और इस तरह मई 1987 में गोवा भारत का 25वां राज्य बना।।

भारत की आजादी के बाद भी गुलाम था गोवा

भारत की आजादी के 14 साल बाद भी आजाद भारत का एक हिस्सा ऐसा भी था जहां आजादी के बाद भी कई साल तक विदेशियों का शासन रहा। यह हिस्सा था देश का तटीय क्षेत्र गोवा, जो उस समय पुर्तगालियों के कब्जे में था। दरअसल 1946 में जब यह साफ हो गया कि अंग्रेज अब भारत में अधिक समय तक अपना शासन नहीं चला पाएंगे तब राष्ट्रीय नेता यह मानकर चल रहे थे कि अंग्रेजों के साथ-साथ पुर्तगाली भी गोवा छोड़कर चले जाएंगे। हालांकि स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजवादी विचारधारा में यकीन रखने वाले राममनोहर लोहिया इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते थे।

1510 में, पुर्तग़ालियों ने एक स्थानीय सहयोगी, तिमैया की मदद से सत्तारूढ़ बीजापुर सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को पराजित कर गोवा को अपने अधीन किया और यहां 450 सालों तक शासन किया। उन्होंने वेल्हा गोवा में एक स्थायी राज्य की स्थापना की। उन्होंने यहां गोवा का सामरिक महत्व देखते हुए, इसे एशिया में पुर्तग़ाल शसित क्षेत्रों की राजधानी बना दिया गया। वर्ष 1900 तक गोवा में काफी विकास हुआ, लेकिन बाद में इस क्षेत्र को हैजा, प्लेग जैसी गंभीर महामारियों ने घेर लिया था। बाद में कुछ समय तक यहां अंग्रेजों का भी राज रहा।

राम मनोहर लोहिया ने गोवा को दिलाई आजादी

गोवा में 1961 तक पुर्तग़ालियों का ही शासन था। गोवा में राष्ट्रवाद की शुरुआत तो ‘गोवा कांग्रेस समिति’ के अध्यक्ष डॉ. टी. बी. कुन्हा ने की, लेकिन इसकी स्वतंत्रता की असल नींव प्रमुख भारतीय समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया ने रखी। गोवा की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वतंत्रता सेनानी राम डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की ही थी, क्योंकि उन्होंने ही लोगों में आजादी के प्रति जोश भरा और पुर्तगालियों के विरूद्ध एकजुट होने के लिए लोगों का नेतृत्व किया। उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में सभा करने की चेतावनी दी, जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। लेकिन उनके नेतृत्व में लोगों में आजादी के प्रति जोश जाग उठा था और विरोध तेज होने लगा था।

यूं जानिए गोवा की आजादी का इतिहास

गोवा में स्वतंत्रता की मांगें तेज होने लगी थीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन के बार-बार आग्रह के बाद भी पुर्तग़ाली भारत को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। उनके इस रवैये के चलते को देखते हुए जवाहर लाल नेहरू और कृष्ण मेनन को शक्ति का उपयोग करना ही पड़ा।

वर्ष 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को पुर्तग़ाली सेना के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार रहने के आदेश मिले। 2 दिसम्बर को ‘गोवा मुक्ति’ का अभियान शुरू कर दिया। ’17 इन्फैंट्री डिवीजन’ और ’50 पैरा ब्रिगेड’ की कमान मेजर जनरल के.पी. कैंडेथ ने संभाली। वायु सेना ने 8 और 9 दिसम्बर को पुर्तग़ालियों के ठिकाने पर बमबारी की। इस अभियान में कई भारतीय सैनिक और पुर्तग़ाली मारे भी गए। इसके परिणामस्वरूप 19 दिसम्बर, 1961 को तत्कालीन पुर्तग़ाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण कर दिया। क्योंकि दमन डीप भी उस समय गोवा का हिस्सा था, तो इस तरह दमन दीव भी आजाद हुआ।

गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा

गोवा को आजादी 1961 में मिली लेकिन पूर्ण राज्य बनने में भी समय लगा। आजादी के एक साल बाद चुनाव हुए और दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। महाराष्ट्र में विलय की बात पर गोवा में जनमत संग्रह हुआ और लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया। वर्ष 1987 की 30 मई को गोवा भारत का 25वां पूर्ण राज्य बना।

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